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<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|भारत की जाति-वर्ण व्यवस्था]]</center>
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[[चित्र:Bharat-Ek-Khoj.jpg|right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015]]
 
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        एक राजा जिसका नाम चंद्रप्रभा था, [[पिण्ड (श्राद्ध)|पिंडदान]] करने नदी के किनारे पहुँचा। पिंड को हाथ में लेकर वह नदी में प्रवाहित करने को ही था कि नदी से तीन हाथ पिंड लेने को निकले। राजा आश्चर्य में पड़ गया। ब्राह्मण ने कहा: राजन! इन तीन हाथों में से एक हाथ किसी सूली पर चढ़ाए व्यक्ति का है क्योंकि उसकी कलाई पर रस्सी से बांधने का चिह्न बना है, दूसरा हाथ किसी ब्राह्मण का है क्योंकि उसके हाथ में दूब (घास) है और तीसरा किसी राजा का है क्योंकि उसका हाथ राजसी प्रतीत होता है साथ ही उसकी उंगली में राजमुद्रिका है।” [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|पूरा पढ़ें]]
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          एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी, 6 लाख 38 हज़ार से अधिक गाँवों और क़रीब 18 सौ नगर-क़स्बों वाले हमारे देश में क़रीब 35 करोड़ छात्राएँ-छात्र हैं। जो 16 लाख से अधिक शिक्षण संस्थानों और 700 विश्वविद्यालयों में समाते हैं। दु:खद यह है कि विश्व के मुख्य 100 शिक्षण संस्थानों में किसी भी भारतीय शिक्षण संस्थान का नाम-ओ-निशां नहीं है। [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|पूरा पढ़ें]]
 
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13:58, 8 जुलाई 2015 का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी
भारत की जाति-वर्ण व्यवस्था
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          एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी, 6 लाख 38 हज़ार से अधिक गाँवों और क़रीब 18 सौ नगर-क़स्बों वाले हमारे देश में क़रीब 35 करोड़ छात्राएँ-छात्र हैं। जो 16 लाख से अधिक शिक्षण संस्थानों और 700 विश्वविद्यालयों में समाते हैं। दु:खद यह है कि विश्व के मुख्य 100 शिक्षण संस्थानों में किसी भी भारतीय शिक्षण संस्थान का नाम-ओ-निशां नहीं है। पूरा पढ़ें

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