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<h4>[[कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</h4>
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[घूँघट से मरघट तक -आदित्य चौधरी|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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[[चित्र:4-crow-meeting.jpg|100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2012]]
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<center>[[कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी|कौऔं का वायरस]]</center>
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<center>[[सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी|सत्ता का रंग]]</center>
 
[[चित्र:Shershah-suri.jpg|border|right|140px|link=सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी]]
 
 
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    [[शेरशाह सूरी]] जब [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठा तो कहते हैं कि सबसे पहले वह शाही बाग़ के तालाब में अपना चेहरा देखकर यह परखने गया कि उसका माथा बादशाहों जैसा चौड़ा है या नहीं !
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        यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ऍमिग्डाला (Amygdala) कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ऍमिग्डाला की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब इमोशनल इंटेलीजेन्स में बहुत अच्छी तरह समझाया है। [[कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी|...पूरा पढ़ें]]
जब शेरशाह से पूछा गया "आपके बादशाह बनने पर क्या-क्या किया जाय ?"
 
तब शेरशाह ने कहा "वही किया जाय जो बादशाह बनने पर किया जाता है!"
 
एक साधारण से ज़मीदार परिवार में जन्मा ये 'फ़रीद' जब [[हुमायूँ]] को हराकर 'बादशाह शेरशाह सूरी' बना तो उसने सबसे पहले यही सोचा कि उसका आचरण बिल्कुल बादशाहों जैसा ही हो। शेरशाह ने सड़कें, सराय, प्याऊ आदि विकास कार्य तो किए, लेकिन [[हिंदू|हिंदुओं]] पर लगने वाले कर '[[जज़िया]]' को नहीं हटाया, क्योंकि अफ़ग़ानी सहयोगियों को ख़ुश रखना ज़्यादा ज़रूरी था। [[सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी|पूरा पढ़ें]]
 
 
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| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] →
 
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] →
| [[घूँघट से मरघट तक -आदित्य चौधरी|घूँघट से मरघट तक]]  
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| [[सफलता का शॉर्ट-कट -आदित्य चौधरी]]
| [[भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016|शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र]]  
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| [[शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र -आदित्य चौधरी|शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र]]
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| [[शर्मदार की मौत -आदित्य चौधरी|शर्मदार की मौत]]
 
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* [http://adityachaudhary.com अधिक जानकारी के लिए देखें- adityachaudhary.com]
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भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी

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कौऔं का वायरस

         यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ऍमिग्डाला (Amygdala) कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ऍमिग्डाला की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब इमोशनल इंटेलीजेन्स में बहुत अच्छी तरह समझाया है। ...पूरा पढ़ें

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