एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

कायाकल्प -प्रेमचंद

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:45, 7 नवम्बर 2017 का अवतरण (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
कायाकल्प -प्रेमचंद
कायाकल्प उपन्यास का आवरण पृष्ठ
लेखक मुंशी प्रेमचंद
मूल शीर्षक कायाकल्प
प्रकाशक वाणी प्रकाशन
प्रकाशन तिथि 1928
ISBN 81-7055-190-0
देश भारत
पृष्ठ: 320
भाषा हिन्दी
विषय सामाजिक, यथार्थवादी
प्रकार उपन्यास

प्रेमचंद के 'कायाकल्प' नामक उपन्यास का प्रकाशन 1928 ई. में हुआ। प्रेमचन्द का एक नवीन प्रयोगशील किंतु शिथिल उपन्यास है।

कथानक

चक्रधर की कथा के साथ प्रेमचंद ने रानी देवप्रिया की अलौकिक कथा जोड़ दी है। चक्रधर की कथा के माध्यम द्वारा लेखक ने विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और साम्प्रदायिक समस्याएँ उठायी हैं। रानी देवप्रिया की कथा द्वारा आत्मज्ञान से विहीन जड़ विज्ञान की निरर्थकता और जन्मांतरवाद का प्रतिपादन हुआ है। इसी दूसरी कथा से 'कायाकल्प' में नवीनता दृष्टिगोचर होती है अन्यथा उसके बिना यह उपन्यास प्रेमचन्द्र के अन्य उपन्यासों की परम्परा में नहीं रखा जा सकता है। विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और साम्प्रदायिक समस्याओं के अतिरिक्त रानी देवप्रिया, ठाकुर विशालसिंह, शंखधर और यहाँ तक कि स्वयं चक्रधर की पत्नी अहल्या के जीवन-क्रम के आधार पर उपन्यास की मूल समस्या दाम्पत्य प्रेम की पवित्रता है। लौंगी का आदर्श प्रेम और पति-भक्ति और वागीश्वरी का अहल्या को उपदेश, ये दोनों बातें इसी मूल समस्या की ओर संकेत करती हैं अर्थात् साधना तथा आत्मिक संयोग के अभाव में विलास और तृष्णा पर आधारित दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं हो सकता।

परिवार पर आधारित

अपने अन्य उपन्यासों की भाँति प्रेमचंद 'कायाकल्प' में भी परिवारों को लेकर चलते है - यशोदानंदन और वागीश्वरी का परिवार, ख़्वाजा महमूद का परिवार, मुंशी व्रजधर और निर्मल का परिवार, ठाकुर विशालसिंह का परिवार, रानी देवप्रिया का परिवार और अंत में चक्रधर और अहल्या का परिवार।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 83-84।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख