अनामिका (नाट्य संस्था)

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अनामिका एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अनामिका (बहुविकल्पी)

अनामिका एक नाट्य संस्था है, जिसकी स्थापना 24 दिसम्बर, 1955 को कोलकाता में की गई थी। इस संस्था के नाटकों के 67, 8 एकांकियों के 10 और 15 रूपांतरित नाटकों के 136 प्रदर्शन हो चुके हैं। कोलकाता जैसे महानगर में इतने प्रदर्शन करने का साहस नाटक के प्रति अनुराग का प्रमाण है।

  • 1957 में हिंदी नाट्य लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए 1000 रुपए का पुरस्कार भी संस्था ने प्रदान किया।
  • 26 मई, 1958 को संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित 'अखिल भारतीय नाट्य प्रतियोगिता' में प्रथम स्थान प्राप्त करने के कारण सम्मिलित हुई।
  • आरंभिक प्रदर्शनों पर 500 रुपए प्रति प्रदर्शन का घाटा उठाते हुए भी संस्था अपने धर्म से विचलित ना हुई। घाटा क्रमशः कम होता गया। सन 1971 तक यह कमी केवल 200 रुपए की रह गई।
  • इन प्रदर्शनों का परिणाम यह हुआ कि अनामिका को करीब 1500 से दर्शक मिले, जो अपना पैसा खर्च करके नाटक देखते थे। इसमें बंगाली और गुजराती भाषा के अलावा मराठी और दक्षिण भाषी भी थे। उन प्रदर्शनों में दर्शकों की संख्या अधिक देखी गई है, जिनमें गंभीरता और गहराई अधिक थी।[1]
  • ‘आधे अधूरे’ एवं 'इंद्रजीत', 'पगला घोड़ा' को 'राम श्याम का जादू' और 'वल्लभ पुर की रूक कथा' जैसे हास्य प्रधान नाटकों से अधिक पसंद किया गया।
  • अनामिका की अधिकांश प्रस्तुतियों का निर्देशन श्यामानंद जालान और प्रतिभा अग्रवाल ने किया। 200 के लगभग महिला और पुरुषों कलाकारों के परिवार से युक्त यह संस्था रंगमंच विकास प्रतिष्ठापन और उपलब्धि की दृष्टि से निश्चय ही महत्वपूर्ण है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 14 |

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