अनौपम्या बाणासुर की पत्री का नाम था।[1] उसकी सास तथा ननद ने उसका तिरस्कार कर दिया था, तब देवर्षि नारद ने उसे एक मंत्र की दीक्षा प्रदान की, जिससे वह सबको प्रसन्न करने में सफल हो सकी।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 23 |
- ↑ मत्स्यपुराण 187.25-52