अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव

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अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव हिन्दी और रूसी, दोनों भाषाओं के अच्छे जानकार थे। हिन्दी की कई प्रसिद्ध रचनाओं का उन्होंने रूसी भाषा में अनुवाद किया था। प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक ग्रंथ 'रामचरितमानस' का भी आपने रूसी अनुवाद किया।

अनुवाद कार्य

हिन्दी और रूसी, इन दोनों भाषाओं पर समान अधिकार होने के कारण, अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव हिन्दी रचनाओं का रूसी भाषा में आसानी से अनुवाद कर देते थे। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उनकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने 'श्री रामचरितमानस' का पद्यानुवाद रूसी भाषा में किया। इसके अलावा उन्होंने मुंशी प्रेमचंद की कुछ रचनाओं का भी रूसी भाषा में अनुवाद किया था।[1]

कवि

अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव ने भारत-रूस की सांस्कृतिक मैत्री की सबसे मजबूत आधारशिला रखी। वे रूस के एक प्रमुख कवि भी थे।

'रामचरितमानस' का रूसी अनुवाद

यहाँ यह जानना भी रुचिकर होगा कि अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव को 'रामचरितमानस' का रूसी भाषा में अनुवाद करने की प्रेरणा भारतीय सैनिकों के 'रामचरितमानस' के अध्ययन से मिली। हुआ यह कि वे एक बार किसी कार्य से अपने मित्र के साथ ईरान-अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर गये। वहाँ उन्होंने कुछ भारतीय सैनिकों को, जो कि तत्कालीन ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों से तंग आकर छिपे थे और उसके खिलाफ संघर्ष छेड़ने की योजना बना रहे थे, उन्हें सायंकाल 'रामचरितमानस' का अध्ययन करते हुए पाया। बाद में उन्हें पता चला कि यह पुस्तक भारतीय मानस की श्रद्धा का केन्द्र है। साम्यवादी देशों में इसकी लोकप्रियता देखकर स्टालिन ने दूसरे विश्व युद्ध के समय शिक्षाविद अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव को इसका रूसी भाषा में अनुवाद का कार्य सौंपा गया। इस अनुवाद की पूरी अवधि साढ़े दस वर्षों की रही। वरान्निकोव के सम्पादन में हिन्दी-रूसी कोश का भी निर्माण हुआ।[1]

पुरस्कार व सम्मान

  • 'रामचरितमानस' के सफल अनुवाद हेतु वरान्निकोव को रूस का सर्वोच्च सम्मान 'ऑर्डर ऑफ़ लेनिन' भी प्राप्त हुआ। उनकी मान्यता थी कि- "जो लोग हिन्दी को कठिन भाषा मानते हैं, वे हिन्दी से सही ढंग से परिचित नहीं हैं।"
  • हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' है, जिसमें विश्व भर से हिन्दी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिन्दी प्रेमी शामिल होते हैं। 'दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन' वर्ष 2015 में 10 सितम्बर से 12 सितम्बर तक भारत में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित हुअा था। इस सम्मेलन में कई सभागारों का निर्माण किया गया था, जिसमें से एक का नाम महान् रूसी और हिन्दी विद्वान् 'अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव' के नाम पर भी रखा गया था।


इन्हें भी देखें: विश्व हिन्दी सम्मेलन एवं विश्व हिन्दी सम्मेलन 2015

समाधि

अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव की समाधि आज भी उनके गांव कापोरोव, जो कि सेंट पीटर्सबर्ग के उत्तर में है, स्थित है। उनकी समाधि पर 'रामचरितमानस' का निम्न दोहा अंकित हैं-

'भलो भलाई पै लहहिं, लहै निचाई नीच।
सुधा सराही अमरता, गरल सराही मीच॥'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 दैनिक भास्कर, मंगलवार, 8 सितम्बर, 1015

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