उग्रतारा
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उग्रतारा देवी भगवती का ही एक अन्य नाम है। इनके नेत्र रक्त वर्ण और वस्त्र काले रंग के हैं। मतंग की पत्नी के रूप में अवतार लेने से इन्हें 'मातंगी' संज्ञा भी प्राप्त है।
कथा
देवी उग्रतारा की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार कही गई है-
- शुंभ और निशुंभ नाम के राक्षसों ने एक बार देवताओं के यज्ञ का अंश चुरा लिया और दिक्पाल बनकर सारी सृष्टि पर अत्याचार करने लगे।
- दोनों राक्षसों के अत्याचारों से दु:खी देवता हिमालय स्थित मतंग ऋषि के आश्रम में एकत्र हुए।
- ऋषि के परामर्श से उन्होंने महामाया भगवती का स्तवन किया, जिससे तुष्ट हो भगवती मतंग ऋषि की पत्नी के रूप में अवतरित हुईं। इन्हें ही 'उग्रतारा' कहा जाता है।
- मतंग की पत्नी के रूप में अवतार लेने से इन्हें 'मातंगी' संज्ञा भी प्राप्त है।
- उग्रतारा के शरीर से एक दिव्य तेज निकला, जिससे शुंभ-निशुंभ राक्षसों का नाश संभव हुआ।
- देवी उग्रतारा खड्ग, चामर, करपालिका और खर्पर लिए चतुर्भुजा, कृष्णवर्णा, सिर पर आकाश भेदी जटा, छाती पर सीप का हार और मुंडमालधारिणी थीं। इनके नेत्र रक्त वर्ण और वस्त्र काले रंग के थे। इनका बायाँ पैर शव के वक्ष पर तथा दायाँ सिंह की पीठ पर था।[1]
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