उद्धार
उद्धार समुद्र पर दुर्घटना के समय लोगों की जान बचाने या माल बचाने को कहते हैं। भूमि पर अग्नि से जान अथवा माल बचाने को भी उद्धार (सैलवेज) कह सकते हैं, परंतु इस संबंध में यह शब्द बहुत प्रचलित नहीं है। समुद्र पर उद्धार के दो विभाग हैं : (1) नागरिक, (2) सैनिक।
नागरिक उद्धार-जान और माल के उद्धार के लिए ब्रिटिश सरकार ब्रिटिश जहाजों से पारितोषिक दिलाती है और इसलिए मामला बहुधा कचहरियों तक पहुँचता है। इंग्लैंड में नाविक कचहरियों (ऐडमिरैल्टी कोर्ट) में ये मामले तय किए जाते हैं। वहाँ की परिभाषा है कि समुद्र की जोखिम से जान या माल बचाना उद्धार है। भूमि पर अग्नि से जान या माल बचाने पर सरकार पारितोषिक नहीं दिलाती; हाँ, मालिक से संविदा (एकरार) हो गया हो तो बात दूसरी है। नियम है कि बचाए गए माल से पहले उद्धार का पारितोषिक देकर ही शेष धन अन्य विषयों पर व्यय किया जा सकता है। जब बचाया गया माल पारितोषिक के लिए पर्याप्त नहीं होता तो ब्रिटिश सरकार मरकैंटाइन मैरीन फंड से अंशत: या पूर्णतया पारितोषिक दिला सकती है। साथ ही यह भी नियम है कि जहाज का जो अधिकारी जान बचाने में सहायता नहीं करता वह दंडनीय है। जो सेवा कर्तव्य (ड्यूटी) के रूप में की जाती है उसके लिए पारितोषिक नहीं मिलता। जहाजों के सभी कर्मचारियों का कर्तव्य है कि यात्रियों और माल को बचाएँ।
पारितोषिक की मात्रा इसपर निर्भर रहती है कि बचाया गया माल कितनी जोखिम में था, उसका मूल्य क्या था, बचानेवाले ने कितनी जोखिम उठाई, कितना परिश्रम किया, कितनी चातुरी अथवा योगयता की आवश्कता थी, कितने मूल्य के यंत्रों का उपयोग किया गया, इत्यादि। असावधानी से काम करने पर पारितोषिक अंशत: या पूर्णतया रोक लिया जा सकता है। यदि एक जहाज दूसरे को बचाता है तो बचानेवाले जहाज के मालिकों को पारितोषिक का लगभग तीन चौथाई मिलता है। शेष का लगभग एक तिहाई कप्तान को मिलता है। इसके बाद बचा भाग अधिकारियों और कर्मचारियों में उनकी स्थिति के अनुसार बाँट दिया जाता है। परंतु जहाँ बचानेवाले जहाज को कोई क्षति पहुँचती है वहाँ मालिकों को अधिक मिलता है।[1]
सैनिक उद्धार-युद्धकाल में बैरी से अपने देश के जीते गए जहाज को छीन लाने तथा इसी प्रकार के अन्य जोखिम के कामों के लिए पारितोषिक मिल सकता है, जिसके लिए ब्योरेवार नियम बने हैं। पारितोषिक जहाज के मूल्य के आठवें या छठे भाग तक मिल सकता है।[2]
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