काग्युदपा
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काग्युदपा तिब्बत में तीसरा सबसे बड़ा बौद्ध मत, इसके सदस्य 11वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध शिक्षक 'मार-पा' के शिष्य हैं। मार-पा घरेलू जीवन व्यतीत करते हुए भी बौद्ध धर्म की पुस्तकों के अनुवादक थे। उन्होंने भारत में महायोगी[1] 'नारोपा' से शिक्षा ग्रहण की थी।[2]
- काग्युदपा मत 'हठ योग' (शक्ति के योग) की कठोरतम साधना व्यवहार पर अधिक बल देता है।
- शिक्षक 'मार-पा' के प्रमुख शिष्य 'मि-ला-रास-पा' (मिलरिपा) थे, जिन्हें तिब्बत के इतिहास में महानतम संत कवि के रूप में सम्मान दिया जाता है।
- मि-ला-रास-पा ने 'स्गम-पो-पा' को शिक्षा दी, जिनके शिष्यों ने काग्युदपा मत की छह शाखाएं स्थापित की थीं।
- काग्युदपा मत की छ: शाखाएँ, जो प्रमुखत: अपने मठों के नाम से जानी जाती हैं, इनके सिद्धांतों में बहुत कम विभिन्नता है। इनमें से 'कर्मा-पा'[3] 15वीं शताब्दी के प्रारंभ से 17वीं शताब्दी तक वर्तमान प्रभुत्व वाले 'द्गे-लग्स-पा' का तिब्बत के मठों के अधिकार के लिए प्रमुख प्रतिद्वंद्वी था। उधर, भूटान में 'ब्रग-पा' बौद्ध धर्म का मुख्य मत बन गया।
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