किंदम एक ऋषि थे, जिनका उल्लेख महाभारत में हुआ है। महाराज पाण्डु के द्वारा अज्ञानतावश किंदम तथा उनकी पत्नी का वध उस समय हो गया, जब वे दोनों प्रणय क्रिया कर रहे थे। अपनी मृत्यु से पूर्व किंदम ऋषि ने महाराज पाण्डु को यह शाप दिया कि यदि काम के वशीभूत होकर उन्होंने अपनी पत्नी के साथ सहवास किया तो वे मृत्यु को प्राप्त होंगे।
पाण्डु को शाप
एक बार हस्तिनापुर के राजा पाण्डु वन में घूम रहे थे। तभी उन्हें हिरनों का एक जोड़ा दिखाई दिया। पाण्डु ने निशाना साधकर उन पर पाँच बाण मारे, जिससे हिरन घायल हो गए। वास्तव में वह हिरन किंदम नामक एक ऋषि थे, जो अपनी पत्नी के साथ प्रणय विहार कर रहे थे। तब किंदम ऋषि ने अपने वास्तविक स्वरूप में आकर पाण्डु को शाप दिया कि तुमने अकारण मुझ पर और मेरी तपस्नी पत्नी पर बाण चलाए हैं, जब हम विहार कर रहे थे। अब तुम जब कभी भी अपनी पत्नी के साथ सहवास करोगे तो उसी समय तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी तथा वह पत्नी तुम्हारे साथ सती हो जाएगी।
मृत्यु
इतना कहकर किंदम ऋषि ने अपनी पत्नी के साथ प्राण त्याग दिए। ऋषि की मृत्यु होने पर पाण्डु को बहुत दु:ख हुआ। ऋषि की मृत्यु का प्रायश्चित करने के उद्देश्य से महाराज पाण्डु ने सन्न्यास लेने का विचार किया। जब उनकी कुंती व माद्री को यह पता चला तो उन्होंने पाण्डु को समझाया कि वानप्रस्थाश्रम में रहते हुए भी आप प्रायश्चित कर सकते हैं। पाण्डु को यह सुझाव ठीक लगा और उन्होंने वन में रहते हुए ही तपस्या करने का निश्चय किया। पाण्डु ने ब्राह्मणों के माध्यम से यह संदेश हस्तिनापुर भी भेज दिया। यह सुनकर हस्तिनापुरवासियों को बड़ा दु:ख हुआ। तब भीष्म ने धृतराष्ट्र को राजा बना दिया। उधर पाण्डु अपनी पत्नियों के साथ गंधमादन पर्वत पर जाकर ऋषि-मुनियों के साथ साधना करने लगे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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