किशोरीदास वाजपेयी
किशोरीदास वाजपेयी
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पूरा नाम | किशोरीदास वाजपेयी |
जन्म | 1898 ई. |
जन्म भूमि | कानपुर, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 1981 |
कर्म-क्षेत्र | साहित्यकार एवं व्याकरणाचार्य |
मुख्य रचनाएँ | ‘ब्रजभाषा का व्याकरण’, ‘हिन्दी निरुक्त’, ‘अच्छी हिन्दी’, ‘हिन्दी शब्दानुशासन’, ‘भारतीय भाषाविज्ञान’ आदि |
भाषा | हिंदी, संस्कृत |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | किशोरीदास वाजपेयी जी ने 'सुदामा' नाम से नाटक भी लिखा। 'तरंगिणी' नामक संग्रह में उनकी ब्रज-कविताएं और दोहे संकलित हैं। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
किशोरीदास वाजपेयी (अंग्रेज़ी: Kishori Das Vajpeyi, जन्म: 1898 - मृत्यु: 1981) हिन्दी और संस्कृत के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं व्याकरणाचार्य थे। संस्कृत और हिन्दी के विद्वान, व्याकरण के पंडित, हिन्दी के आधुनिक पाणिनी की तरह जिन्हें डॉ. रामविलास शर्मा, राहुल सांकृत्यायन आदि मानते थे, वे स्वतंत्र वृत्ति से कनखल में अत्यन्त आर्थिक कष्ट में जीवनयापन करते रहे। कुछ समय के लिए उन्होंने शिक्षक का कार्य किया, और नागरी प्रचारिणी सभा के कोश विभाग में भी रहे। वे स्वाभिमानी और अक्खड़ स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे। 1978 में मोरारजी देसाई ने मंच से नीचे उतरकर उत्तर प्रदेश का सम्मान उन्हें दिया। उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं: ‘ब्रजभाषा का व्याकरण’, ‘हिन्दी निरुक्त’, ‘अच्छी हिन्दी’, ‘हिन्दी शब्दानुशासन’, ‘भारतीय भाषाविज्ञान’, ‘हिन्दी वर्तनी और शब्द विश्लेषण’, आदि। उनके कार्य का महत्व इसलिए है कि भाषाविज्ञान को उन्होंने शुद्ध भारतीय दृष्टि से लिया है। अंग्रेज़ी की कोई भी छाप उनके लेखन पर नहीं है। किशोरीदास वाजपेयी ने जीवनपर्यंत हिन्दी को स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किये थे। किशोरीदास वाजपेयी को हिन्दी का प्रथम वैज्ञानिक भी कहा जाता है।
जीवन परिचय
आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का जन्म सन् 1898 में रामनगर, कानपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इन्होंने लाहौर से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आचार्य वाजपेयी के जीवन पर आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के कृपापूर्ण प्रोत्साहन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आचार्य द्विवेदी ने हिन्दी भाषा के व्याकरण सम्मत परिष्कार का जो आंदोलन चलाया था, उस रथ की लगाम को वाजपेयीजी जीवनपर्यंत थामे रहे। वाजपेयी पहले ऐसे भाषाविद् थे, जिन्होंने हिन्दी व्याकरण के अंग्रेज़ी आधार को अस्वीकार कर उसे संस्कृत के आधार पर प्रतिष्ठित किया। संस्कृत का आधार स्वीकार करते हुए उन्होंने हिन्दी भाषा की जो अपनी मूल प्रकृति है, उसकी न केवल रक्षा की, बल्कि उसका वैज्ञानिक आधार दृढ़ता से प्रतिपादित भी किया। कुछ सहृदय एवं मूल्यांकन करने वाले विद्वानों में उन्हें 'हिन्दी का पाणिनि' तक घोषित किया है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने कह-कहकर उनसे 'हिंदी शब्दानुशासन' लिखवा लिया। वाजपेयी जी ने 'सुदामा' नाम से नाटक भी लिखा। 'तरंगिणी' नामक संग्रह में उनकी ब्रज-कविताएं और दोहे संकलित हैं। वाजपेयी जी ने 'ब्रजभाषा व्याकरण' नामक एक उत्तम ग्रंथ भी लिखा था। इसमें केवल व्याकरण ही नहीं, ब्रजभाषा के उद्भव, विकास और उसके स्वरूप का भी गहन अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने कुछ समसामयिक विषयों पर भी पुस्तकें लिखी हैं। जैसे 'कांग्रेस का इतिहास' और 'नेताजी सुभाषचंद्र बोस'। एक अन्य पुस्तक में उन्होंने अपने साहित्यिक संस्मरण भी लिखे। 'हिन्दी शब्दानुशासन' तो उनके जीवन का मुख्य ग्रंथ है ही। इसके अतिरिक्त इसी विषय पर उनकी एक और कृति 'राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण' भी है। वाजपेयी जी के भाषा-शास्त्रीय स्वरूप को जानने के लिए उनकी अन्य पुस्तक 'भारतीय भाषा-विज्ञान' का अध्ययन भी आज की पीढ़ी के लिए कम महत्त्व का नहीं।[1]
प्रमुख पुस्तकें
- अच्छी हिन्दी
- अच्छी हिन्दी का नमूना
- हिन्दी शब्दानुशासन
- लेखन कला
- ब्रजभाषा का व्याकरण
- राष्टभाषा का प्रथम व्याकरण
- हिन्दी शब्द मीमांसा
- हिन्दी की वर्तनी तथा शब्द विश्लेषण
- भारतीय भाषा विज्ञान
- सहित्य जीवन के अनुभव और संस्करण
- संस्कृति के पाँच अध्याय
- मानव धर्म मीमांसा
- द्वापर की राज्य क्रांति
- कांग्रेस का संक्षिप्त इतिहास।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आचार्य किशोरीदास वाजपेयी (हिंदी) हिन्दी भवन। अभिगमन तिथि: 31 मार्च, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
- हिन्दी के पाणिनि - आचार्य किशोरीदास वाजपेयी
- आचार्य किशोरीदास वाजपेयी के नाम पत्र / रामधारी सिंह 'दिनकर'
- किशोरीदास वाजपेयी की याद में हरिद्वार में पत्रकार भवन
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