कुमार गंधर्व
कुमार गंधर्व
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पूरा नाम | शिवपुत्र सिद्धरामैया कोमकाली |
जन्म | 8 अप्रॅल, 1924 |
जन्म भूमि | धारवाड़, कर्नाटक |
मृत्यु | 12 जनवरी, 1992 |
मृत्यु स्थान | देवास, मध्य प्रदेश |
संतान | मुकुल (पुत्र), कलापिनी (पुत्री) |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | शास्त्रीय गायन |
मुख्य रचनाएँ | उड़ जाएगा हंस अकेला..., बोर चेता.., झीनी-झीनी चदरिया..., सुनता है गुरु ज्ञानी... आदि। |
विषय | शास्त्रीय संगीत |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म विभूषण |
प्रसिद्धि | हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | लोक संगीत को शास्त्रीय से भी ऊपर ले जाने वाले कुमार जी ने कबीर को जैसा गया वैसा कोई नहीं गा सकेगा। |
पंडित कुमार गंधर्व (अंग्रेज़ी: Kumar Gandharva, जन्म: 8 अप्रॅल, 1924; मृत्यु: 12 जनवरी, 1992) भारत के सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक थे, जिनका वास्तविक नाम 'शिवपुत्र सिद्धरामैया कोमकाली' है।
जीवन परिचय
कुमार गंधर्व का जन्म कर्नाटक के धारवाड़ में 8 अप्रॅल 1924 को हुआ। और पुणे में प्रोफेसर देवधर और अंजनी बाई मालपेकर से संगीत की शिक्षा पाई। शिवपुत्र जन्म जात गायक थे। दस वर्ष की आयु से ही संगीत समारोहों में गाने लगे थे और ऐसा चमत्कारी गायन करते थे कि उनका नाम कुमार गंधर्व पड़ गया।[1]
विवाह
कुमार गंधर्व जी ने विवाह अप्रॅल 1947 में भानुमती जो स्वयं एक अच्छी गायिका थीं, से किया और देवास, मध्य प्रदेश आ गये। यहाँ आने के बाद वे इन्दौर गये और इन्दौर वे गाना गाने नहीं मालवा की समशीतोष्ण जलवायु में स्वास्थ लाभ करने आए थे। उन्हें टी .बी थी जिसका उन दिनों कोई पक्का इलाज़ नहीं था। लेकिन जिस दिन वे इंदौर उतरे वह हाल ही आज़ाद हुए भारत का सबसे काला दिन था। 30 जनवरी, 1948 में, दिल्ली में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी की हत्या कर दी थी। मालवा में स्वास्थ्य लाभ के जीवन की शुरुआत शुभ मुहुर्त में नहीं हुई थी।
पत्नी भानुमती
कुमार जी की पत्नी भानुमती ख़ुद एक गायिका थीं। लेकिन देवास के एक स्कूल में पढ़ा कर गायक पति का इलाज और घर चलाती थीं। जितनी सुन्दर थीं उतनी ही कुशल गृहणी नर्स थीं। कुमार जी स्वस्थ होकर फिर से वह नई तरह का गायन कर सके इसका श्रेय भानुताई को ही दिया जाना चाहिए।
नये कुमार गंधर्व
जिस घर में कुमार जी स्वास्थ लाभ कर रहे थे, तब वह देवास के लगभग बाहर था, और वहां हाट लगा करता था। कुमार जी ने वहीं बिस्तर पर पड़े पड़े मालवी के खांटी स्वर महिलाओं से सुने। वहीं पग- पग पर गीतों से चलने वाले मालवी लोक जीवन से उनका साक्षात्कार हुआ। संगीत वे सीखे हुए थे और शास्त्रीय गायन में उनका नाम भी था। लेकिन स्वस्थ होते हुए और नया जीवन पाते हुए उनमें एक गायक का भी जन्म हुआ। सन 1952 के बाद जब वे ठीक होकर गाने लगे तो पुराने कुमार गन्धर्व नहीं रह गये थे।
मालवा की मिट्टी में संगीत की सुगंध
एक दिन मामा मजूमदार के घर छोटी सी महफ़िल में गाते हुए उन्होंने अचानक कहा "अब मुझे गाना आ गया"। वह हमारे मालवा के अन्यतम गायक कुमार गंधर्व का जन्म था। उन्हें बचपन से सुनने वाले वामन हरी देशपांडे ने उन दिनों के बारे में लिखा है-
"न जाने देवास की ज़मीन में कैसा जादू है। मुझे वहाँ की मिट्टी में संगीत की सुगंध प्रतीत हुई।"
मालवा के लोक जीवन से कुमार जी के साक्षात्कार पर देशपांडे ने लिखा, "बिस्तर पर पड़े-पड़े वे ध्यान से आसपास से उठने वाले ग्रामवासियों के लोकगीतों के स्वरों को सुना करते थे। वे उन लोकगीतों और लोक धुनों की और आकर्षित होते चले गये। इसमें से एक नये विश्व का दर्शन उन्हें प्राप्त हुआ।"
- कालिदास के बाद कुमार गन्धर्व मालवा के सबसे दिव्य सांस्कृतिक विभूति हैं।
भानुमती का निधन
सन 1961 में दूसरे पुत्र को जन्म देते हुए भानुमती का निधन हो गया। कुमार जी ने अपने नये घर का नाम भानुकुल रखा। फिर वसुंधरा जी से दूसरा विवाह किया। भानुमती से हुआ मुकुल गंधर्व, और वसुंधरा की हुई कलापिनी, दोनों ही गायक गायिका हैं।
निधन
68 वर्ष की उम्र में 12 जनवरी, 1992 में देवास में उनका निधन हो गया। लोक संगीत को शास्त्रीय से भी ऊपर ले जाने वाले कुमार जी ने कबीर को जैसा गया वैसा कोई नहीं गा सकेगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Pandit Kumar Gandharva (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल) culturalindia.net। अभिगमन तिथि: 9 अप्रॅल, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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