केशलुंचन
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केशलुंचन जैन मुनियों द्वारा पालन किए जानेवाले 28 मूल गुणों में एक है। केशलुंचन अर्थात् केशों का लोंच करने[1] को तप कहा गया है।
बौद्ध साधुओं को भी उस्तरा आदि रखने का निषेध है, इसलिये कम से कम दो और अधिक से अधिक चार महीने में वे अपने सिर, दाढ़ी और मूछों के बाल अपने हाथ से उखाड़ते हैं, जिसे पंचमुष्टिलोंच कहा जाता है। केशलोंच का बड़ा माहात्म्य माना गया है और इस अवसर पर भक्तों का मेला लग जाता है।
केशलोंच और ब्रह्मचर्यपालन को निग्रंथ धर्म में अत्यंत कठिन बताया है, तथा इनका पालन करने में मुनियों को अत्यंत सावधान रहने का उपदेश है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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