कौरवी बोली

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कौरवी बोली ही खड़ी बोली के नाम से भी जानी जाती है। 'खड़ी बोली' नाम का प्रयोग दो अर्थों में होता है -

  1. एक तो 'मानक हिन्दी' के लिए जिसकी तीन शैलियाँ 'हिन्दी' , 'उर्दू' और 'हिन्दुस्तानी' हैं;
  2. दूसरे, उस लोक बोली के लिए जो दिल्ली - मेरठ में तथा आस पास बोली जाती है।

कौरवी या खड़ी बोली

  • मूल नाम— कौरवी
  • साहित्यिक भाषा बनने के बाद पड़ा नाम— खड़ी बोली
  • अन्य नाम— बोलचाल की हिन्दुस्तानी, सरहिंदी, वर्नाक्यूलर खड़ी बोली आदि।
  • केन्द्रकुरु जनपद अर्थात् मेरठ– दिल्ली के आसपास का क्षेत्र। खड़ी बोली एक बड़े भूभाग में बोली जाती है। अपने ठेठ रूप में यह मेरठ, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, सहारनपुर, देहरादून और अम्बाला ज़िलों में बोली जाती है। इनमें मेरठ की खड़ी बोली आदर्श और मानक मानी जाती है।
  • बोलने वालों की संख्या— 1.5 से 2 करोड़
  • साहित्य— मूल कौरवी में लोक–साहित्य उपलब्ध है, जिसमें गीत, गीत–नाटक, लोक कथा, गप्प, पहेली आदि हैं।
  • विशेषता— आज की हिंदी मूलतः कौरवी पर ही आधारित है।
  • नमूना— कोई बादसा था। साब उसके दो राण्याँ थीं। वो एक रोज़ अपनी रान्नी से केने लगा मेरे समान ओर कोइ बादसा है बी? तो बड़ी बोल्ले के राजा तुम समान ओर कोन होगा। छोटी से पुच्छा तो किह्या कि एक बिजाण सहर हे उसके किल्ले में जितनी तुम्हारी सारी हैसियत है उतनी एक ईंट लगी है। ओ इसने मेरी कुच बात नई रक्खी इसको तग्मार्ती (निर्वासित) करना चाइए। उस्कू तग्मार्ती कर दिया। ओर बड़ी कू सब राज का मालक कर दिया।

कौरवी से तात्पर्य

यहाँ 'खड़ीबोली' नाम का प्रयोग इस दूसरे अर्थ में किया जा रहा है। इस अर्थ में 'कौरवी' नाम का भी प्रयोग होता है। यह क्षेत्र पुराना, 'कुरु' जनपद है, इसी आधार पर राहुल सांकृत्यायन ने इस बोली को 'कौरवी' नाम दिया था। यों, अच्छा ही रहे यदि 'खड़ी बोली' तो मानक हिन्दी को कहा जाय, और 'कौरवी' इस बोली को।

नामकरण

'खड़ी बोली' नाम - यह नाम कैसे पड़ा, विवाद का विषय है। मुख्य मत निम्नाकित है -

  1. 'खड़ी' मूलत: 'खरी' है, और इसका अर्थ है 'शुद्ध'। लोगों ने इस बोली का साहित्य में प्रयोग करते समय जब अरबी - फ़ारसी शब्दों को निकालकर इसे शुद्ध रूप में प्रयुक्त करने का यत्न किया तो इसे 'खरी बोली' कहा गया, जो बाद में 'खड़ीबोली' हो गया।
  2. 'खड़ी' का अर्थ है जो 'खड़ी हो' अर्थात् 'पड़ी' का उलटा। पुरानी ब्रज, अवधी आदि 'पड़ी बोलियाँ' थी, अर्थात् आधुनिक काल की मानक भाषा नहीं बन सकीं। इसके विपरीत यह बोली आवश्यकता के अनुरूप खड़ी हो गई, अत: खड़ी बोली कहलाई। चटर्जी यही मानते थे।
  3. कामताप्रसाद गुरु आदि के अनुसार 'खड़ी' का अर्थ है 'कर्कश'। यह बोली ब्रज की तुलना में कर्कश है, अत: यह नाम पड़ा।
  4. ब्रज ओकारांतता - प्रधान है तो खड़ी बोली आकारांतता - प्रधान। किशोरीदास वाजपेयी के अनुसार 'आकारांतता' की 'खड़ी' पाई ने ही इसे यह नाम दिया है।
  5. विली ने 'खड़ी' का अर्थ 'प्रचलित' या 'चलती' माना, अर्थात् जो ब्रज आदि को पीछे छोड़ प्रचलित हो गई।
  6. गिलक्राइस्ट ने 'खड़ी' का अर्थ 'मानक' (Standard) या 'परिनिष्ठित' किया है।
  7. अब्दुल हक़ 'खड़ी' का अर्थ 'गँवारू' मानते हैं। इनमें कौन- सा मत ठीक है, और कौन- सा ठीक नहीं है, सनिश्चय कहना कठिन है। यों पुराने प्रयोगों से पहले मत को समर्थन मिलता है। असंभव नहीं कि इसके साहित्य में प्रयुक्त को अपने 'खरेपन' के कारण 'खरा' कहा गया हो और उसके आधार पर उसकी मुख्य आधार बोली को 'खड़ी'।
क्षेत्रीय

'खड़ीबोली' अब तो भाषा है, इसे 'बोली' क्यों कहते हैं? वस्तुत: मूलत: दिल्ली- मेरठ की बोली को ही 'खड़ी बोली' कहा गया। बाद में इसका तथा कुछ और बोलियों का आधार लेती हुई जो भाषा सामने आई, यह भी इसी नाम से पुकारी जाने लगी। इस तरह 'भाषा' हो जाने पर भी मूल नाम (खड़ीबोली) से यह छुटकारा नहीं पा सकी। खड़ी बोली (कौरवी) का विकास शौरसेनी अपभ्रंश के उत्तरी रूप से हुआ है तथा इसका क्षेत्र देहरादून का मैदानी भाग, सहारनपुर, मुज़फ़्फरनगर, मेरठ, दिल्ली नगर, गाज़ियाबाद, बिजनौर, रामपुर और मुरादाबाद हैं। इसमें लोक- साहित्य पर्याप्त मात्रा में मिलता है, जिसमें पवाड़े मुख्य रूप से उल्लेख्य हैं। कौरवी की मुख्य उपबोलियाँ पश्चिमी कौरवी, पहाड़ताली तथा बिजनौरी हैं। कौरवी का शुद्ध रूप बिजनौरी को माना जाता है।



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