गरज आपनी आप सों -रहीम

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गरज आपनी आप सों , ‘रहिमन’ कही न जाय ।
जैसे कुल की कुलबधू, पर घर जात लजाय ॥

अर्थ

अपनी गरज की बात किसी से कही नहीं जा सकती। इज्जतदार आदमी ऐसा करते हुए शर्मिन्दा होता है, अपनी गरज को वह मन में ही रखता है। जैसे कि किसी कुलवधू को पराये घर में जाते हुए शर्म आती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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