गरुड़
गरुड़ हिन्दू धर्म के अनुसार पक्षियों के राजा और भगवान विष्णु के वाहन हैं। ये कश्यप ऋषि और विनता के पुत्र तथा अरुण के भ्राता हैं। लंका के राजा रावण के पुत्र इन्द्रजित ने जब युद्ध में राम और लक्ष्मण को नागपाश से बाँध लिया, तब गरुड़ ने ही उन्हें इस बंधन से मुक्त किया था। काकभुशुंडी नामक एक कौए ने गरुड़ को श्रीराम कथा सुनाई थी।
कथाएँ
हिन्दू धर्म तथा पुराणों में गरुड़ से सम्बन्धित कई प्रसंग मिलते हैं, जिनमे से कुछ इस प्रकार हैं-
प्रथम प्रसंग
समुद्र तटवर्ती एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उस वृक्ष की डालियों पर अनेक मुनिगण बैठा करते थे। एक बार गरुड़ भोजन करने के निमित्त उस बरगद की एक शाखा पर जा बैठे। उनके भार से शाखा टूट गयी। यह देखकर उस शाखा के निवासी वैखानस, माष, बालखिल्य इत्यादि सब इकट्ठे हो गये। मुनियों की रक्षा के निमित्त गरुड़ ने एक पांव के सहारे शाखा पर बैठकर हाथी व कच्छप का मांस खाया तथा उस सौ योजन तक विस्तृत शाखा को निषाद देश पर गिरा दिया, जो पूर्णत: नष्ट हो गया।[1]
द्वितीय प्रसंग
अमृत की खोज में निकले हुए गरुड़ ने अपनी भूख शांत करने के लिए कछुए[2] तथा हाथी[3] को चोंच में दबा रखा था तथा बैठने का स्थान खोज रहे थे। एक पुराने बरगद ने उन्हें आमन्त्रित किया। वे जिस शाखा पर बैठे, वह टूट गयी। उसी शाखा पर बालखिल्य ऋषि लटककर तपस्या कर रहे थे। गरुड़ ने हाथी और कछवे को पंजों में दबाकर वटवृक्ष की उस शाखा को चोंच में दबा लिया तथा उड़ने लगे। उन्हें भय था कि कहीं भी बैठने से ऋषि-हत्या का पाप लगेगा। उड़ते-उड़ते वे अपने पिता कश्यप के पास पहुंचे, जिन्होंने ऋषियों से प्रार्थना की कि वे शाखा का परित्याग कर दें। ऋषियों के शाखा छोड़ देने के उपरांत गरुड़ ने वह शाखा एक निर्जन पर्वत शिखर पर छोड़ दी। [4]
तृतीय प्रसंग
विष्णु क्षीर सागर में सो रहे थे। विरोचन के पुत्र एक दैत्य ने ग्राह का रूप धारण करके विष्णु का दिव्य मुकुट हर लिया था। विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया। एक बार वे गोमंत पर्वत पर बैठे बलराम से बात कर रहे थे कि गरुड़ दैत्यों को हराकर वह दिव्य मुकुट ले आया तथा उसने वह कृष्ण को पहना दिया।[5]
चतुर्थ प्रसंग
शर्त में हार के कारण विनता कद्रू की दासी बन गयी। कद्रू पुत्र नाग थे तथा विनता पुत्र गरुड़ था। कद्रू ने गरुड़ को प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करने जाते देखा तो एक दिन नागों को भी साथ ले जाने के लिए कहा। गरुड़ मान गया। सूर्य के निकट पहुंचने से पहले ही नाग ताप से आकुल हो उठे। उनके मना करने पर भी गरुड़ उन्हें सूर्य के निकट ले गया। वे झुलस गये। वापस लौटने पर कद्रू बहुत रुष्ट हुई। नागों की शांति के लिए कद्रू के कहने से गरुड़ ने रसातल से गंगाजल लाकर उन पर छिड़का।[6]
गरुड़ के अन्य नाम
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाल्मीकि रामायण, अरण्य कांड, सर्ग 35,श्लोक 27-33
- ↑ विभावसु
- ↑ सुप्रतीक
- ↑ महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 29, श्लोक 42 से 44 तक, अध्याय 30, 1 से 25 तक
- ↑ हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, 41 ।
- ↑ ब्रह्म पुराण, 159 ।-
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