चरनदास
चरनदास
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पूरा नाम | चरनदास |
जन्म | 1703 ई. |
जन्म भूमि | मेवात (राजपूताना) |
मृत्यु | 1782 ई. |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
अभिभावक | पिता- मुरलीधर, माता- कुंजो |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'ब्रज चरित', 'अष्टांग योग वर्णन', 'योग संदेह सागर', 'ज्ञान स्वरोदय', 'पंचोपनिषद्', 'जागरण माहात्म्य', 'दानलीला' 'मटकी लीला', 'माखन चोरी लीला' आदि। |
विषय | चरनदास की समस्त रचनाओं का प्रमुख विषय-योग, ज्ञान, भक्ति, कर्म और कृष्ण चरित का दिव्य सांकेतिक वर्णन है। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | चरनदास के शिष्यों की कुल संख्या 52 बतायी जाती है, जिन्होंने विभिन्न स्थानों पर पंथ का प्रचार किया था। सहजोबाई और दयाबाई इनकी प्रसिद्ध शिष्याएँ थीं। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
चरनदास प्रसिद्ध संत और योगध्यान साधक थे। इन्होंने एक सम्प्रदाय की स्थापना की थी, जिसे 'चरनदासी सम्प्रदाय' कहा जाता है। चरनदान ने धर्मोपदेश अनेक हिन्दी कविता ग्रन्थों में दिये हैं और रचनाएँ की हैं।
परिचय
चरनदास का जन्म मेवात (राजपूताना) के डेहरा नामक ग्राम में भाद्रपद शक्ल तृतीय, मंगलवार के दिन सन 1703 ई. में एक ढूसर वैश्य कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का कुंजो था। मिश्र बंन्धुओं ने इन्हें पण्डितपुर निवासी ब्राह्मण कहा है। मेवात के ढूसर अपने को वधूसर (भार्गव) ब्राह्मण कहते हैं, कदापित् इसीलिए मिश्र बंधुओं को उपर्युक्त भ्रम हुआ था।[1]
गुरु
चरनदास ने अपने गुरु का नाम शुकदेव बताया है और इन्हें भागवत के व्याख्याता व्यास पुत्र शुकदेव मुनि से अभिन्न माना है; किंतु कहा जाता है कि इनके गुरु मुज़फ़्फ़रनगर के समीपवर्ती शुकताल गाँव के निवासी कोई सुखदेव सा सुखानंद थे।
रचनाएँ
चरनदास की कुल 21 रचनाएँ बतायी जाती हैं। इनमें 15 का एक संग्रह वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित हुआ था। नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ से इनकी प्राय: सभी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
'ब्रज चरित', 'अमरलोक अखण्ड धाम वर्णन', 'धर्म जहाज वर्णन', 'अष्टांग योग वर्णन', 'योग संदेह सागर', 'ज्ञान स्वरोदय', 'पंचोपनिषद्', 'भक्ति पदार्थ वर्णन', 'मनविकृत करन गुटकासार', 'ब्रह्मज्ञान सागर', 'शब्द और भक्ति सागर', इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ है। इनके अतिरिक्त 'जागरण माहात्म्य', 'दानलीला' 'मटकी लीला', 'कालीनाथ-लीला' 'श्रीधर ब्राह्मण लीला', 'माखन चोरी लीला', 'कुरूक्षेत्र लीला', 'नासकेत लीला' और 'कवित्त' अन्य रचनाएँ हैं, जो इन्हीं की कृतियाँ मानी जाती हैं।[1]
रचनाओं का विषय
चरनदास की समस्त रचनाओं का प्रमुख विषय-योग, ज्ञान, भक्ति, कर्म और कृष्ण चरित का दिव्य सांकेतिक वर्णन है। भागवत पुराण का ग्यारहवाँ स्कंध इनकी रचनाओं का प्रेरणा स्त्रोत है। समंवयात्मक दृष्टिकोण होते हुए भी इन्होंने योग साधना पर अधिक बल दिया है। इसीलिए रामदास गौड़ ने उनके सम्प्रदाय को योगमत के अंतर्गत रखा है। विल्सन महोदय ने इसे वैष्णव पंथ माना है, जो गोकुलस्थ गोस्वामियों के महत्त्व को कम करने के लिए प्रवर्तित हुआ था। पीताम्बर दत्त बड़श्वाल ने प्रेमानुभुति की प्रगाढ़ता के कारण इसे निर्गुण संत सम्प्रदाय के अंतर्गत रखना ही उचित माना है। परशुराम चतुर्वेदी ने इसे ज्ञान, भक्ति, योग का समंवय करने वाला पंथ कहा है। समन्वयात्मक दृष्टिकोण होने पर भी इनका मूल स्वर संतों का ही है। इनमें काव्य रचना की अच्छी क्षमता थी और इनकी रचनाएँ सामान्य संतों से उत्कृष्ट है।
शिष्य
चरनदास के शिष्यों की कुल संख्या 52 बतायी जाती है, जिन्होंने विभिन्न स्थानों पर पंथ का प्रचार किया था। सहजोबाई और दयाबाई इनकी प्रसिद्ध शिष्याएँ थीं।
निधन
चरनदास की मृत्यु अगहन सुदी 4, सन 1782 ई. में दिल्ली में हुई थी। यहीं इन्होंने अपना संत जीवन व्यतीत किया था।[2][1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 182 |
- ↑ सहायक ग्रंथ- उत्तरी भारत की संत परम्परा: परशुराम चतुर्वेदी; हिन्दी काव्य में निर्गुण सम्प्रदाय: पीताम्बर दत्त बड़श्वाल; संतबानी संग्रह (पहिला भाग), बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग; चरनदास जी की बानी (भाग पहला और भाग दूसरा), बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग
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