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जगदीप

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जगदीप
जगदीप
पूरा नाम सैय्यद इश्तियाक अहमद जाफ़री
प्रसिद्ध नाम जगदीप
जन्म 19 मार्च, 1939
जन्म भूमि दतिया, मध्य प्रदेश
मृत्यु 8 जुलाई, 2020
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी नशीम बेगम
संतान पुत्र- जावेद जाफ़री, नावेद जाफ़री; पुत्री- मुस्कान जाफ़री
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र अभिनय
मुख्य फ़िल्में 'शोले', 'फिर वही रात', 'कुरबानी', 'शहनशाह', 'अंदाज़अपना-अपना' आदि।
प्रसिद्धि हास्य अभिनेता
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जगदीप ने कई फ़िल्मों में हास्य किरदार निभाए। हालांकि, फ़िल्म 'शोले' में उनके किरदार 'सूरमा भोपाली' को दर्शकों ने इतना पसंद किया गया कि वे दर्शकों के बीच इसी नाम से लोकप्रिय हो गये।
अद्यतन‎

सैय्यद इश्तियाक अहमद जाफ़री (अंग्रेज़ी: Syed Ishtiaq Ahmed Jafri, जन्म- 19 मार्च, 1939, दतिया, मध्य प्रदेश; मृत्यु- 8 जुलाई, 2020, मुम्बई, महाराष्ट्र) भारतीय सिनेमा के मशहूर हास्य अभिनेता थे। उन्होंने अपने हास्य अभिनय से दर्शकों में काफ़ी लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में फ़िल्म 'अफसाना' से की थी। जगदीप ने 400 से अधिक फ़िल्मों काम किया। उन्हें लोग उनके वास्तविक नाम से न जानकर 'जगदीप' नाम से जानते हैं। वे साल 1975 में आई मशहूर फिल्म 'शोले' में 'सूरमा भोपाली' के किरदार से काफी चर्चा बटोरने में कामयाब रहे थे।

परिचय

हिन्दी सिनेमा जगत् के प्रसिद्ध हास्य कलाकार जगदीप का जन्म 19 मार्च, 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया ज़िले में हुआ। उनका पूरा नाम सैय्यद इश्तियाक अहमद जाफ़री है। उनको दो बेटे जावेद जाफ़री और नावेद जाफ़री भी हास्य कलाकार हैं, जिन्होंने ‘बूगी-बूगी’ जैसे लोकप्रिय कार्यक्रम को होस्ट किया था।

फ़िल्मी कॅरियर

अपने हाव भाव से दर्शकों को हंसाने वाले जगदीप ने उस दौर में काम किया, जब फ़िल्म उद्योग में महमूद, जॉनी वॉकर, घूमल, केश्टो मुखर्जी जैसे हास्य कलाकार मौज़ूद थे। जगदीप ने अपने फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में बी. आर. चोपड़ा की फ़िल्म अफसाना से की। इसके बाद चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में ही उन्होंने 'लैला मजनूं' में काम किया। उसके बाद उन्हें के. ए. अब्बास, विमल राय ने भी मौके दिए। जगदीप ने हास्य भूमिका विमल राय की फ़िल्म 'दो बीघा जमीन' से करने शुरू किए थे इस फ़िल्म ने उन्हें एक नई पहचान दी। इसके बाद उन्होंने बहुत सी कामयाब फ़िल्मों में काम किया। अपने हास्य अभिनय से उन्होंने दर्शकों के दिल में अपने लिए जगह बना ली और फ़िल्म जगत् में सफलता हासिल की।

प्रमुख फ़िल्में

400 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में काम कर चुके जगदीप ‘शोले’, फिर वही रात, कुरबानी, शहनशाह, अंदाज़अपना-अपना जैसी फ़िल्मों में काम कर चुके हैं। साल 1957 में आयोजित ‘बाल फ़िल्म समारोह’ के अंतिम दौर के लिए चुनी गयीं 3 फ़िल्में ‘मुन्ना’ (1954), ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ और ‘हम पंछी एक डाल के’ (1957) में जगदीप ने अहम भूमिका निभाई।

जगदीप ('सूरमा भोपाली' की भूमिका में, फ़िल्म 'शोले')

यादगार भूमिका

जगदीप ने कई फ़िल्मों में हास्य किरदार निभाए। हालांकि, फ़िल्म 'शोले' में उनके किरदार 'सूरमा भोपाली' को दर्शकों ने इतना पसंद किया गया कि वे दर्शकों के बीच इसी नाम से लोकप्रिय हो गये। शोले का सूरमा भोपाली हमेशा से ही लोगों के जेहन में मौज़ूद रहने वाला चरित्र रहा है। आज भी अगर लोग उनको याद करते हैं तो शोले में निभाया गया यह किरदार कभी नहीं भूलते। सूरमा भोपाली का किरदार इतना चर्चित हुआ कि इसी नाम से जगदीप ने एक फ़िल्म का निर्देशन भी कर दिया था।

मां की शिक्षा

अभिनेता जगदीप ने एक बार बताया था कि- "मैंने जिंदगी से बहुत कुछ सीखा है। मेरी मां ने मुझे समझाया था। एक बार बॉम्बे में बहुत तेज तूफान आया था। सब खंभे गिर गए थे। हमें अंधेरी से जाना था। उस तूफान में हम चले जा रहे थे। एक टीन का पतरा आकर गिरा और मेरी मां के पैर में चोट लगी। बहुत खून निकल रहा था। ये देख मैं रोने लगा। तब मेरी मां ने तुरंत अपनी साड़ी फाड़ी और उसे बांध दिया। तूफान चल रहा था। मैंने कहा कि यहीं रुक जाते हैं, ऐसे में कहां जाएंगे। तब उन्होंने एक शेर पढ़ा था। उन्होंने कहा था[1]-

वो मंजिल क्या जो आसानी से तय हो, वो राह ही क्या जो थककर बैठ जाए।

पूरी जिंदगी मुझे ये ही शेर समझ में आता रहा कि 'वो राह ही क्या जो थककर बैठ जाए' तो अपने एक-एक कदम को एक मंजिल समझ लेना चाहिए, छलांग नहीं लगानी चाहिए, गिर जाओगे'।

मृत्यु

एक हास्य अभिनेता के रूप में प्रसिद्धि पा चुके जगदीप का निधन 81 साल की उम्र में 8 जुलाई, 2020 को हुआ। बढ़ती उम्र से होने वाली दिक्कतों के चलते उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। रात 8.40 पर उनका निधन मुंबई स्थित अपने घर पर हुआ।

अमिताभ बच्चन ने जगदीप को श्रृद्धांजलि देते हुए अपने ब्लॉग में लिखा- "बीती रात हमने एक और नगीना खो दिया। जगदीप... कॉमिडी में अद्भुत काबिलियत रखने वाले, गुजर गए। अदाकारी का उनका विलक्षण अंदाज़था। मुझे कई फिल्मों में उनके साथ काम करने का सम्मान हासिल हुआ। दर्शकों की नजरों में जो प्रमुख हैं, उनमें 'शोले' और 'शहंशाह' शामिल हैं। वो एक विनम्र शख्सियत थे, जिन्हें लाखों लोगों का प्यार मिला। मेरी दुआएं और प्रार्थनाएं उनके लिए"।

अमिताभ ने आगे लिखा- "जगदीप, स्क्रीन नाम अपनाना बेहद गरिमाशाली बात थी, जो इस देश की विभिन्नता में एकता की भावना को जाहिर करता है। उस दौर में कई लोगों ने ऐसा किया था... विशेष शख्सियत दिलीप कुमार, मधुबाला, मीना कुमारी, जयंत (अमजद ख़ान के पिता) और भी बहुत सारे... । अमिताभ बच्चन ने 1988 में आई जगदीप की डायरेक्टोरियल फिल्म 'सूरमा भोपाली' में गेस्ट अपियरेंस भी किया था।[2]


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