तकाजी शिवशंकरा पिल्लै
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पूरा नाम | तकाजी शिवशंकरा पिल्लै |
जन्म | 17 अप्रॅल, 1912 |
जन्म भूमि | त्रावणकोर (आज का केरल) |
मृत्यु | 10 अप्रॅल, 1999 |
मृत्यु स्थान | केरल |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | मलयालम साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | ‘झरा हुआ कमल’, ‘दलित का बेटा’, ‘दो सेर ध्यान’, ‘चेम्मीन’, ‘ओसेप के बच्चे’ आदि। |
भाषा | मलयालम |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी, 1957 |
प्रसिद्धि | मलयालम साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | मलयालम साहित्य में तकाजी शिवशंकरा पिल्लै से पूर्व मध्यम वर्ग के लोगों की ही प्रधानता थी। तकाजी ने निर्धन वर्ग को अपने कथा साहित्य का माध्यम बनाकर मलयालम साहित्य की दिशा ही बदल दी। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
तकाजी शिवशंकरा पिल्लै (अंग्रेज़ी: Thakazhi Sivasankara Pillai, जन्म- 17 अप्रॅल, 1912; मृत्यु- 10 अप्रॅल, 1999) मलयालम में रचना करने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनकी गिनती मलयालम के अग्रणी श्रेणी के लेखकों में की जाती है। तकाजी शिवशंकरा पिल्लै ने अपने लेखन के माध्यम से ग़रीब लोगों की समस्याओं को प्रमुख रूप से समाज के समक्ष रखा। अपने कहानी संग्रहों में उन्होंने व्यक्ति को अपने समय की विषम परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए प्रस्तुत किया है। तकाजी शिवशंकरा पिल्लै के द्वारा रचित उपन्यास 'चेम्मीन' के लिये उन्हें सन 1957 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' और फिर सन 1984 में 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
परिचय
तकाजी शिवशंकरा पिल्लै का जन्म 17 अप्रॅल, 1917 में त्रावणकोर (आज का केरल) में हुआ था। उनका वास्तविक नाम के. के. शिवशंकर पिल्लै था। उनकी आरंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। इसके बाद सातवीं कक्षा तक की पढ़ाई गांव से 12 किलोमीटर दूर समुद्र तट पर स्थित अंपलप्पुषा स्कूल में हुई। यहां पर अरय समुदाय से उनका परिचय हुआ। आर्यों का जीवन यापन मतवारी से चलता था। सन 1950 में उनकी मां और उससे भी पहले पिता की भी मृत्यु हो गई थी।
तकाजी शिवशंकरा पिल्लै ने अपने 26 उपन्यासों तथा 20 कहानी-संग्रहों में आज के मनुष्य को अपने समय की परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए दिखाया है। उनके उपन्यासों के किसान-चरित्र भाग्य में भरोसा करने वाले नहीं हैं, वे अपने विरुद्ध किए जाने वाले दुर्व्यवहार का मुकाबला करते हैं। तकाजी शिवशंकर ने अपने लेखन के माध्यम से ग़रीब लोगों की समस्याओं को प्रमुख रूप से समाज के समक्ष रखा था।
लेखन विषय
तकाजी शिवशंकरा पिल्लै ने कथा साहित्य में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने समाज के उच्च और धनी वर्ग की अपेक्षा कमज़ोर वर्ग के लोगों की समस्याआं की ओर अधिक ध्यान दिया। जब वे लेखन में निर्धन वर्ग को समस्या को सामने रखते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि पूरा समाज ही एक नायक के रूप में काम कर रहा है।
रचनाएँ
मलयालम साहित्य में तकाजी शिवशंकरा पिल्लै से पूर्व मध्यम वर्ग के लोगों की ही प्रधानता थी। तकाजी ने निर्धन वर्ग को अपने कथा साहित्य का माध्यम बनाकर मलयालम साहित्य की दिशा ही बदल दी। उनका कथा साहित्य भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी में भी अनूदित हो चुका है। उनके उपन्यासों में प्रमुख हैं-
- ‘झरा हुआ कमल’
- ‘दलित का बेटा’
- ‘दो सेर ध्यान’
- ‘चेम्मीन’
- ‘ओसेप के बच्चे’
पुरस्कार
- ‘चेम्मीन’ जो मछुआरों के जीवन पर आधारित है, उसे 1957 में साहित्य अकादमी से पुरस्कृत है।
- तकाजी शिवशंकरा पिल्लै को 1984 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर 1996 में एक फ़िल्म भी बनाई गई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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