ताम्रपर्णी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
ताम्रपर्णी एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- ताम्रपर्णी (बहुविकल्पी)

ताम्रपर्णी 'सिंहलद्वीप' या श्रीलंका' का प्राचीन नाम है, जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। सम्राट अशोक को सर्वाधिक सफलता भी 'ताम्रपर्णी' में ही प्राप्त हुई थी। ताम्रपर्णी का राजा तिस्स, अशोक से इतना प्रभावित था कि उसने भी अशोक के समान ही 'देवानांप्रिय' की उपाधि धारण कर ली। अपने दूसरे राज्याभिषेक में उसने अशोक को विशेष निमंत्रण भेजा था, जिसके फलस्वरूप सम्भवतः अशोक का पुत्र महेंद्र 'बोधिवृक्ष' की पौध लेकर वहाँ पहुँचा। श्रीलंका में यह बौद्ध धर्म का पदार्पण था।[1]

इतिहास

बौद्ध ग्रंथ महावंश[2] के अनुसार भारत के लाटदेश का निवासी कुमार विजय जलयान से सिंहल देश पहुँचकर वहाँ ताम्रपर्णी नामक स्थान पर उतरा था। यह वही दिन था, जब कुशीनगर में महात्मा बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था। महावंश[3] में राजकुमार विजय द्वारा ताम्रपर्णी नगर के बसाए जाने का उल्लेख है। इसके अनुसार जब विजय और उसके साथी नौका से भूमि पर उतरे, तो थकावट के कारण भूमि पर हाथ टेक कर बैठ गए। ताम्र वर्ण की मिट्टी के स्पर्श से उनके हाथ तांबे के पत्र से हो गए, इसीलिए उस प्रदेश और द्वीप का नाम ताम्रपर्णी[4] हुआ।

विद्वान् विचार

17वीं शती में अंग्रेज़ी भाषा के कवि मिल्टन ने 'पैरेडाइज लॉस्ट' नामक महाकाव्य में ताम्रपर्णी को 'टाप्रोवेन' लिखा है'[5] कुछ विद्वानों के मत में श्रीलंका-भारत के बीच के समुद्र में स्थित द्वीप ही ताम्रपर्णी है। ताम्रपर्णी के 'शिरीषवस्तु' नामक 'यक्षनगर' का उल्लेख 'बलाहाश्व' जातक में है-

'अतीते तंबपष्णि द्वीपे सिरीसवत्थुं नाम यक्खनगरं अहोसि।'


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 394 |
  2. महावंश 6, 47
  3. महावंश 7, 39
  4. तंब-पण्णी
  5. From India’s golden chersonese and ulmost Indian iste of Taprobane. dusk faces with white sitken turbans wreathed

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख