द्रोणाचार्य पुरस्कार
द्रोणाचार्य पुरस्कार 1985 में प्रारंभ किये गये थे। यह पुरस्कार खिलाड़ियों और टीमों को प्रशिक्षण प्रदान करने में उत्कृष्ट कार्य करने वाले जाने माने खेल प्रशिक्षकों को प्रदान किये जाते हैं। द्रोणाचार्य पुरस्कार के अंतर्गत गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा, प्रमाणपत्र, पारंपरिक पोशाक और पाँच लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है। हर साल अधिकतम 5 खिलाड़ियों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
कोच के लिये प्रेरणा
जब भी किसी स्टार खिलाड़ी की बात होती है तो उसमें एक मुद्दा ज़रूर उठता है और वह है कोच। एक कोच ही होता है जो एक आम इंसान को एक खिलाड़ी में तब्दील करता है और उस खिलाड़ी को रोज़ बेहतर करने की होड़ में लग जाता है। भारत में एक कोच के योगदान को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है क्योंकि इन्हीं योगदान से आज भारत के पास ऐसे एथलीट हैं जिन्होंने वतन का सर हमेशा उंचा किया है। यह अवार्ड कोच के लिए प्रेरणा का पात्र भी बन जाता है और उन्हें अपने प्रदर्शन को और बेहतर करने की प्रेरणा भी दे जाता है। यह खिताब राष्ट्रीय खेल दिवस यानी 29 अगस्त को दिया जाता है। यह दिन मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस खिताब के साथ अर्जुन पुरस्कार, राजीव गाँधी खेल रत्न (अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न और ध्यानचंद पुरस्कार को जोड़कर नेशनल स्पोर्ट्स अवार्ड बनाए गए हैं।
नामकरण
द्रोणाचार्य पुरस्कार को एतिहासिक पात्र द्रोणाचार्य के नाम पर रखा गया है जिन्होंने कौरव और पांडव को युद्ध नीति सिखाई थी। यह नीति उन्होंने महाभारत के समय अपने शिष्यों को सिखाई ताकि वह अपनी हर मुश्किल का सामना कर सकें। इस ख़िताब को ‘द्रोणाचार्य अवार्ड फोर आउटस्टैंडिंग कोचेस इन स्पोर्ट्स एंड गेम्स’ कहा जाता है। यह उन कोचों को दिया जाता है जिन्होंने 4 सालों में अपने खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दी है। खिताब के हकदारों को मिनिस्ट्री ऑफ़ यूथ अफेयर्स एंड स्पोर्ट्स द्वारा चुना जाता है। एमवाईएएस, नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन, इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन, स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया और राज्य सरकार से सम्बंधित कोचों का चुनाव करती है।
पुरस्कार
विजेता को द्रोणाचार्य की काँस्य की मूर्ती दी जाती है और साथ ही एक प्रमाण पत्र के साथ 10 लाख रुपए का इनाम भी दिया जाता है। पहले यह राशि 5 लाख रुपए थी लेकिन इसे 2020 में बढ़ाकर 10 लाख कर दिया गया। एक साल में ज़्यादा से ज़्यादा 5 द्रोणाचार्य खिताब दिए जाते हैं जिनमें दो लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड भी शामिल होते हैं।
प्रथम द्रोणाचार्य पुरस्कार
पहला द्रोणाचार्य खिताब सन 1985 में दिया गया था और इसे रेसलिंग कोच भालचंद्र भास्कर भागवत ने जीता था। भागवत के साथ कोच ओएम नाम्बियार को भी सम्मानित किया गया था, जिन्होंने पी. टी. उषा जैसी दिग्गज को बनाया और साथ ही बॉक्सिंग हेड कोच ओ. एम. प्रकाश भारद्वाज को भी यह इज्ज़त दी गई थी।
वहीं द्रोणाचार्य खिताब को जीतने वाली महिला रेनू कोहली थीं। उन्होंने यह खिताब 2002 में अपने नाम किया था।
साल 2020 में यह खिताब पूर्व हॉकी कप्तान और कोच जूड फेलिक्स को दिया गया था। साथ ही पिस्टल शूटिंग कोच जसपाल राणा, पैरा-बैडमिंटन कोच गौरव खन्ना, वुशु कोच कुलदीप हन्डू और मलखंभ कोच योगेश मालवीय को भी इस पुरस्कार से नवाज़ा गया है।
क्यूबा के ब्लास इग्लेसियस फर्नांडीज पहले विदेशी कोच हैं जिन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। फर्नांडीज को यह खिताब साल 2012 में दिया गया था। फर्नांडीज पूर्व बॉक्सिंग कोच हैं जो भारतीय बॉक्सिंग से 1990 में जुड़े थे और उन्होंने विजेंदर सिंह और डिंको सिंह जैसे महशूर मुक्केबाज़ भारत को दिए हैं।
द्रोणाचार्य लाइफटाइम पुरस्कार
2011 से भारत सरकार ने द्रोणचार्य लाइफटाइम पुरस्कार भी जारी कर दिए। यह सम्मान उन्हें दिया जाता है जिन कोचों ने भारतीय खेल को 20 या उससे ज़्यादा सालों तक सर्विस दी है। इस खिताब को जीतने वाले दिग्गज को 15 लाख रुपए और द्रोण के पुतले के साथ सर्टिफिकेट भी दिया जाता है। द्रोणचार्य लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार पहली बार एथलेटिक्स कोच कुंतल रॉय और हॉकी कोच राजिंदर सिंह को दिया गया था।
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