ध्रुव तीर्थ मथुरा

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अपनी सौतेली माँ के वाक्यबाण से बिद्ध होने पर अपनी माता सुनीति के निर्देशानुसार पञ्चवर्षीय बालक ध्रुव देवर्षि नारद से यहीं यमुना तट पर मिला था । देवर्षि नारद के आदेशानुसार ध्रुव ने इसी घाट पर स्नान किया तथा देवर्षि नारद से द्वादशाक्षर मन्त्र प्राप्त किया । पुन: यहीं से मधुवन के गंभीर निर्जन एवं उच्च भूमिपर कठोर रूप से भगवदाराधनाकर भगवद्दर्शन प्राप्त किया था । यहाँ स्नान करने पर मनुष्य ध्रुवलोक में पूजित होते हैं । यहाँ श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं। । गया में पिण्ड दान करने का फल भी उसे यहाँ प्राप्त हो जाता है । यहाँ प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय के बहुत से महात्मा गुरुपरम्परा की धारा में रहते आये हैं । प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय का ब्रजमण्डल में यही एक स्थान बचा हुआ है ।

यत्र ध्रुवेन स्न्तपृमिच्छया परमं तप: ।

तत्रैत्र स्नानमात्रेण ध्रुवलोके महीयते ।।
ध्रुवतीर्थं च वसुधे ! य: श्राद्धं कुरुते नर: ।
पितृन सन्तारयेत् सर्वान् पितृपक्षे विशेषत: ।।

----आदि वराह पुराण

वास्तु

यह घाट ध्रुव टीले के नीचे स्थित है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है । यह बहुपत्रित मेहराबों व सुन्दर छज्जों से सुसज्जित है ।

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