नमाज़
इस्लाम धर्म में नमाज़ की हैसिअत सामूहिक है और इस कारण मस्जिद में समूह के साथ नमाज़ पढ़ना सबसे उत्तम धर्म है, यद्यपि घर पर अकेले भी पढ़ी जा सकती है। संसार भर के मुसलमान नमाज़ें अरबी भाषा में पढ़ते हैं, अज़ाँ अरबी भाषा में दी जाती है तथा खुतबा भी अरबी भाषा में पढ़ते हैं, जिसका अनुवाद कभी-कभी स्थानीय भाषा में कर दिया जाता है। इससे ज्ञात होता है कि मुसलमानों की धार्मिक भाषा अरबी है और इस सहभाषा के कारण संसार के सब मुसलमानों के मध्य एक विशेष प्रकार का संबंध स्थापित है।
नमाज़ (सलात् प्रार्थना)—प्रत्येक मुसलमान का नित्य कर्म है जिसका न करने वाला पापभोगी होता है। कहा है—
सलात् और मध्य सलात् के लिए सावधान रहो। नम्रतापूर्वक परमेश्वर के लिए खड़े हो। यदि ख़तरे में हो तो पैदल या सवार ही (उसे पूरा कर लो) पुनः जब शान्त हो.....तो प्रभु को स्मरण करो।[1]
'नमाज़ का स्थान इस्लाम में वही है जो हिन्दू धर्म में संध्या या ब्रह्म–यज्ञ का। यद्यपि क़ुरान में 'पंचगाना' या पाँच वक़्त की नमाज़ का वर्णन कहीं पर भी नहीं आया है। वह एक प्रकार से सर्वमान्य है। पंचगाना नमाज़ है—
- 'सलातुल्फज़' (प्रातः प्रार्थना) यह उषाकाल ही में करना पड़ती है।
- 'सलातु–ज्जोहन' (मध्याह्नोत्तर तृतीय पहरारम्भिक प्रार्थना)—यह दोपहर के बाद तीसरे पहर के प्रारम्भ में होती है।
- 'सलातुल्–अस्र। (मध्याह्नोत्तर चतुर्थ पहरारम्भिक प्रार्थना)—यह चौथे पहर के आरम्भ में होती है।
- 'मलातुल्—मग्रिब' (सान्ध्य प्रार्थना)—यह सूर्यास्त् के बाद तुरन्त होती है।
- 'सलातुल्—इशा' (रात्रि प्रथमयाम प्रार्थना)—रात्रि में पहले पहर के अन्त में होती है।
इनके अतिरिक्त अधिक श्रद्धालु पुरुष, 'सलातुल्लैल' (निशीय प्रार्थना) और 'सलातुज्जुहा'। (दिवा प्रथमयाम प्रार्थना) भी करते हैं जो क्रमशः रात के चौथे पहर के आरम्भ तथा पहर भर दिन चढ़े की जाती है। नमाज़ के लिए खड़ा होने से पहले निम्न क्रम से 'वजू' (अंग–शुद्धि) करनी चाहिए-
- दोनों कलाई धोना
- दातवन या केवल जल से मुख धोना
- पानी से नाक का भीतरी भाग धोना
- चेहरा धोना
- कोहनी तक हाथ धोना
- दोनों भीगे हाथ मिलाकर तर्जनी, मध्यमा और अनामिका से सिर पोछना।
- गुल्फ पर्यन्त पैर धोना, पहले दाहिना, फिर बायाँ।
जल न मिलने पर अथवा बीमार होने पर शुद्ध सूखी मिट्टी हाथ में लगाकर सिर, मुख और करपृष्ठ पर फिरा देना चाहिए। इसे अरबी में 'तयस्सुम्' कहते हैं। शुद्धि के विषय में क़ुरान इस प्रकार से कहता है- "हे विश्वासियों (मुसलमानों) ! जब तक जो कुछ तुम कहते हो, उसे नहीं समझते, तुम नशे में हो या यात्रा में न होने पर भी अशुद्ध हो, तब तक नमाज़ में न जाओ, जब तक की तुम स्नान न कर लो।"
नमाज़ के प्रकार
नमाज़ के दो प्रकार हैं, जिन्हें फ़र्ज़ (वैयक्तिक) और सुन्नत (सामूहिक) कहते हैं। 'इलाम' (नमाज़ पढ़ाने वाले अगुवा) के पीछे पढ़े जाने वाले भाग को 'सुन्नत' और अकेले पढ़े जाने वाले भाग को 'फ़र्ज़' कहते हैं। समूह के साथ 'नमाज़' पढ़ने में जो किसी कारण असमर्थ हैं, उसके लिए 'सुन्नत' भी 'फ़र्ज़' हो जाती है। प्रत्येक नमाज़ कुछ 'रक़ात' पर निर्भर है। जितना जप करके एक बार भूमि में सिर रख नमन किया जाता है, उसे 'रक़ात' कहते हैं।
- सवेरे की नमाज़ में दो 'रक़ात' सामूहिक और दो वैयक्तिक हैं।
- एक बजे की नमाज़ अपेक्षाकृत कुछ लम्बी होती है। इससे पहिले चार या दो 'रक़ात' वैयक्तिक, मध्य में चार 'रक़ात' सामूहिक और अन्त में दो 'रक़ात' वैयक्तिक जपने पड़ते हैं। शुक्रवार के दिन की बड़ी साप्ताहिक नमाज़ इसी समय पड़ती है। किन्तु इसमें चार 'रक़ात' सामूहिक के स्थान पर दो ही पढ़ना पड़ता है। बाक़ी दो स्थान पर 'इमाम' का 'ख़ुत्वा' या उपदेश होता है, जिसे सब लोग सावधान हो सुनते हैं।
- चार बजे की नमाज़ में चार 'रक़ात' पढ़ी जाती हैं।
- शाम की नमाज़ में चार 'रक़ात' वैयक्तिक पढ़ने के अनन्तर दो 'रक़ात' सामूहिक पढ़ना पड़ता है।
- नौ बजे रात को नमाज़ में चार 'एक़ात' वैयक्तित्क पुनः दो 'एक़ात' सामूहिक, पीछे फिर 'चत्र' नामक तीन–तीन 'रक़ात' वैयक्तिक पढ़ी जाती हैं।
- निशीय–प्रार्थना में आठ 'रक़ात' वैयक्तिक होती है।
ईद की नमाज़- जो कि वर्ष में एक बार ही पढ़ी जाती है—में दो 'रक़ात' सामूहिक होती है, फिर उपदेश होता है। "निस्सन्देह 'सलात्' (नमाज़) कुकर्म और निर्लज्जता से रोकती है, ईश्वर का स्मरण सर्वश्रेष्ठ है।" [2]
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