नारी शक्ति पुरस्कार, 1999
नारी शक्ति पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के असाधारण योगदान और उपलब्धि को पहचानने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है। वर्ष 2014 से पहले तक इस पुरस्कार को 'स्त्री शक्ति पुरस्कार' के नाम से जाना[[ जाता था। यह पुरस्कार उन महिलाओं के लिए मान्यता का प्रतीक बन गया है, जिन्होंने अपने चुने हुए क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को पार किया है। यह पुरस्कार विज्ञान, सामाजिक कार्य, शिक्षा, खेल और कला जैसे विविध क्षेत्रों की महिलाओं को प्रदान किया जाता रहा है।
नारी शक्ति पुरस्कार के विजेता भारत में उन लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा का काम करते हैं जो अपने सपनों को हासिल करने और समाज में योगदान देने के लिए प्रयासरत हैं। पुरस्कार समारोह हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित किया जाता है और विजेताओं को भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जाता है।
प्रथम पुरस्कार आयोजन
4 जनवरी, 2001 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में पांच महिलाओं को पहला 'नारी शक्ति पुरस्कार', जिसे पहले 'स्त्री शक्ति पुरस्कार' के नाम से जाना जाता था, प्रदान किया था।
- केरल के मलप्पुरम जिले की के.वी. राबिया को शारीरिक और मानसिक विकलांग बच्चों की शिक्षा को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों के लिए 'कन्नगी स्त्री शक्ति पुरस्कार' मिला।
- तमिलनाडु के मदुरै की चिन्ना पिल्लई को माइक्रोक्रेडिट आंदोलन शुरू करने और उसका प्रसार करने और गरीबी में रहने वाली महिलाओं के जीवन में सुधार लाने के लिए 'माता जीजाबाई स्त्री शक्ति पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- राजस्थान के नागौर जिले की ब्रह्मचारिणी कमला बाई को लड़कियों के लिए स्कूल स्थापित करने के लिए 'देवी अहिल्याबाई होल्कर स्त्री शक्ति पुरस्कार' मिला।
- हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की किंकरी देवी को अवैध खनन का विरोध करने के लिए 'झांसी की रानी लक्ष्मीबाई स्त्री शक्ति पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- मध्य प्रदेश के धार जिले की कुमारी ललिता प्रदकर को 'रानी गाइदिनल्यू स्त्री शक्ति पुरस्कार' मिला।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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