पपीता

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पपीता

पपीता स्वास्थवर्धक तथा विटामिन ए से भरपूर फल होता है। पपीता ट्रापिकल अमेरिका में पाया जाता है। पपीता का वानस्पतिक नाम केरिका पपाया है। पपीता कैरिकेसी परिवार का एक महत्त्वपूर्ण सदस्य है। पपीता एक बहुलिडीस पौधा है तथा मुरकरटय से तीन प्रकार के लिंग नर, मादा तथा नर व मादा दोनों लिंग एक पेड़ पर होते हैं। पपीता के पके व कच्चे फल दोनों उपयोगी होते हैं। कच्चें फल से पपेन बनाया जाता है। जिसका सौन्दर्य जगत् में तथा उद्योग जगत् में व्यापक प्रयोग किया जाता है। पपीता एक सदाबहार मधुर फल है, जो स्वादिष्ट और रुचिकर होता है। यह हमारे देश में सभी जगह उत्पन्न होता है। यह बारहों महीने होता है, लेकिन यह फ़रवरी-मार्च और मई से अक्टूबर के मध्य विशेष रूप से पैदा होता है। इसका कच्चा फल हरा और पकने पर पीले रंग का हो जाता है। पका पपीता मधुर, भारी, गर्म, स्निग्ध और सारक होता है। पपीता पित्त का शमन तथा भोजन के प्रति रुचि उत्पन्न करता है।

पपीते की प्रकृति

पपीता बहुत ही जल्दी बढ़नेवाला पेड़ है। साधारण ज़मीन, थोडी गरमी और अच्छी धूप मिले तो यह पेड़ अच्छा पनपता है, पर इसे अधिक पानी या ज़मीन में क्षार की ज़्यादा मात्रा रास नहीं आती। इसकी पूरी ऊँचाई क़रीब 10-12 फुट तक होती है। जैसे-जैसे पेड़ बढ़ता है, नीचे से एक एक पत्ता गिरता रहता है और अपना निशान तने पर छोड़ जाता है। तना एकदम सीधा हरे या भूरे रंग का और अन्दर से खोखला होता है। पत्ते पेड़ के सबसे ऊपरी हिस्से में ही होते हैं। एक समय में एक पेड़ पर 80 से 100 फल तक भी लग जाते हैं।

पपीता

पेड़ के ऊपर के हिस्से में पत्तों के घेरे के नीचे पपीते के फल आते हैं ताकि यह पत्तों का घेरा कोमल फल की सुरक्षा कर सके। कच्चा पपीता हरे रंग का और पकने के बाद हरे पीले रंग का होता है। पपीते का फल थोड़ा लम्बा व गोलाकार होता है तथा गूदा पीले रंग का होता है। गूदे के बीच में काले रंग के बीज होते हैं। आजकल नयी जातियों में बिना बीज के पपीते का आविष्कार भी किया गया है। एक पपीते का वजन 300, 400 ग्राम से लेकर 1 किलो ग्राम तक हो सकता है।
पपीते के पेड़ नर और मादा अलग होते हैं लेकिन कभी-कभी एक ही पेड़ पर दोनों तरह के फूल खिलते हैं। हवाईयन और मेक्सिकन पपीते बहुत प्रसिद्ध हैं। भारतीय पपीते भी अत्यन्त स्वादिष्ट होते हैं। अलग-अलग किस्मों के अनुसार इनके स्वाद में थोड़ी बहुत भिन्नता हो सकती है।[1]

किस्में

पपीते की मुख्य किस्मों का विवरण निम्नवत है-

पूसा डोलसियरा

यह अधिक ऊपज देने वाली पपीते की गाइनोडाइसियश प्रजाति है। जिसमें मादा तथा नर-मादा दो प्रकार के फूल एक ही पौधे पर आते हैं पके फल का स्वाद मीठा तथा आकर्षक सुगंध लिये होता है।

पूसा मेजेस्टी

यह भी एक गाइनोडाइसियश प्रजाति है। इसकी उत्पादकता अधिक है, तथा भंडारण क्षमता भी अधिक होती है।

पपीते का फूल

पूसा जाइन्ट

यह बहुत अधिक वृद्धि वाली मानी जाती है। नर तथा मादा फूल अलग-अलग पौधे पर पाये जाते हैं। पौधे अधिक मज़बूत तथा तेज़ हवा से गिरते नहीं हैं।

पूसा ड्रवार्फ

यह छोटी बढ़वार वाली डादसियश किस्म कही जाती है।जिसमें नर तथा मादा फूल अलग अलग पौधें पर आते हैं। फल मध्यम तथा ओवल आकार के होते हैं।

पूसा नन्हा

इस प्रजाति का पौध बहुत छोटे होते हैं। तथा यह गृहवाटिका के लिए अधिक उपयोगी होती है। साथ साथ सफल बागवानी के लिए भी उपयुक्त है।

कोयम्बर-1

पौधा छोटा तथा डाइसियरा होता है। फल मध्य आकार के तथा गोलाकार होते हैं।

कोयम्बर-3

यह एक गाइनोडाइसियश प्रजाति है। पौधा लम्बा, मज़बूत तथा मध्य आकार का फल देने वाला होता है। पके फल में शर्करा की मात्रा अधिक होती है। तथा गूदा लाल रंग का होता है।

हनीइयू (मधु बिन्दु)

इस पौधे में नर पौधों की संख्या कम होती है, तथा बीज के प्रकरण अधिक लाभदायक होता है। इसका फल मध्यम आकार का बहुत मीठा तथा ख़ुशबू लिए होता है।

पपीते का पेड़

कूर्गहनि डयू

यह गाइनोडाइसियश जाति है। इसमें नर पौधे नहीं होते हैं। फल का आकार मध्यम तथा लम्बवत गोलाकार लिए होता है। गूदे का रंग नारंगी पीला लिए होता है।

वाशिगंटन

यह अधिक उपज देने वाली विभिन्न जलवायु में उगाई जाने वाली प्रजाति है। इस पौधे की पत्तियों के डंठल बैगनी रंग के होते हैं। जो इस किस्म की पहचान कराते हैं। यह डाइसियन किस्म हैं फल मीठा दूदा पीला तथा अच्छी सुगंध वाला होता है।

पन्त पपीता-1

इस किस्म का पौधा छोटा तथा तथा डाइसियरा होता है। फल मध्यम आकार के गोल होते हैं। फल मीठा तथा सुगंधित तथा पीला गूदा लिए होता है। यह पककर खाने वाली अच्छी किस्म है तथा तराई एवं भावर जैसे क्षेत्र में उगाने के लिए अधिक उपयोगी है।[2]

रासायनिक तत्व

पपीते में विटामिन ए, बी और सी, तीनों ही भरपूर मात्रा में होते हैं। इसके फायबर आपकी आँखों और त्वचा के लिए बहुत ही अच्छे होते हैं। इसमें मौजूद प्रतिरोधक प्रदूषण के खतरनाक असर से बचाते हैं।

  • पपीते में पानी का अंश 89.6 प्रतिशत होता है, जबकि प्रोटीन 0.5 प्रतिशत, चर्बी 0.1 प्रतिशत, कार्बोदित पदार्थ 9 प्रतिशत, क्षार तत्त्व 0.5 प्रतिशत, कैल्शियम 0.01 प्रतिशत और फॉस्फोरस 0.01 प्रतिशत होता है। इसमें लौह तत्त्व 0.4 मि.ग्रा./100 ग्राम पाया जाता है।
  • पपीते में विटामिन 'ए' अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है, अर्थात्‌ इसमें विटामिन 'ए' 2025 आं.रा.इ. (अंतराष्ट्रीय ईकाई)/100 ग्राम होता है तथा विटामिन 'सी' 46 से 136 मि.ग्रा./100 ग्राम पाया जाता है। पपीते में स्थित कुल शर्करा का आधा भाग ग्लूकोज़ के रूप में और आधा फल शर्करा के रूप में होता है।
  • आम के बाद सबसे अधिक विटामिन 'ए' पपीते में ही होता है। जैसे-जैसे यह पकता जाता है, वैसे-वैसे इसमें विटामिन 'सी' की मात्रा बढ़ती जाती है।
  • वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि कच्चे पपीते में विटामिन 'सी' 40 से 90 मि.ग्रा., अधपके पपीते में 50 से 90 मि.ग्रा. और पके पपीते में 60 से 140 मि.ग्रा. होता है। इसमें शर्करा और विटामिन 'सी' मई से अक्टूबर महीने तक अधिक होता है। पपीते में विटामिन 'बी1' व 'बी2' भी किंचित मात्रा में होता है।

गुण

  • पपीता खाने से धातु संबंधी विकार एवं वीर्य की कमी दूर होती है। यह पाचन शक्ति को सुधारता है तथा पेट के विकारों को दूर करता है। कच्चा पपीता खाने से कफ-वात की वृद्धि होती है, लेकिन यह अजीर्ण, यकृत विकार, बवासीर आदि रोगों के लिए गुणकारी होता है।
  • पपीते के रस में 'पॅपेइन' नामक एक तत्त्व पाया जाता है, जो आहार को पचाने में अत्यंत मददगार साबित होता है। इसमें दस्त और पेशाब साफ़ लाने का गुण है। जिन लोगों को कब्ज की शिकायत हमेशा बनी रहती है, उन्हें पपीते का नियमित सेवन करना चाहिए।
  • पपीता नेत्र रोगों में हितकारी होता है, क्योंकि इसमें विटामिन 'ए' प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसके सेवन से रतौंधी (रात को न दिखाई देना) रोग का निवारण होता है और आँखों में ज्योंति बढ़ती है। पपीता से रक्तशुद्धि, पीलिया रोग का निवारण, अनियमित मासिक धर्म में हितकारी तथा सौंदर्य वृद्धि में सहायक होता है।
  • कच्चे पपीते को काटकर चेहरे पर रगड़ने से चेहरे के कील, कालिमा, मैल व अन्य दाग-धब्बे दूर हो जाते हैं। इससे त्वचा में निखार आता है और वह कोमल व लावण्ययुक्त हो जाती है। चेहरे पर मुँहासे हों तो कच्चे पपीते का गूदा मलें। कुछ दिनों के प्रयोग से मुँहासे दूर हो जाएँगे और त्वचा में निखार आ जाएगा।
  • त्वचा रोगों के लिए तो पपीता एक उत्तम औषधि है। अगर आप खाज-खुजली, दलद आदि से परेशान हों तो कच्चे पपीते का दूध निकालकर उन पर लगाएँ। इससे खाज-खुजली से छुटकारा मिलेगा और त्वचा कोमल व चमकीली हो जाएगी।
पपीते
  • कृमि रोग से छुटकारा पाने के लिए कच्चे पपीते का रस पीना चाहिए। यह कृमिनाशक दवा है। यकृत के लिए भी यह लाभदायक होता है। जिन स्त्रियों का मासिक धर्म अनियमित हो, उन्हें कच्चे पपीते का रस बनाकर कुछ दिनों तक नियमित पीना चाहिए। इससे मासिक स्राव साफ़ और नियमित हो जाएगा।
  • पपीते में पाया जाने वाला पॅपेइन तत्त्व पाण्डुरोग तथा प्लीहावृद्धि में उपयोग सिद्ध होता है। पपीते में आर्जिनाइन नामक एक तत्त्व पाया जाता है, जो स्त्रियों का बाँझपन दूर करने में सहायक होता है। पपीते का रस 200 मि.ग्रा. से 300 मि.ली. तक सेवन करना चाहिए।
  • पपीते में पाए जाने वाले विविध एंजाइमों के कारण कैंसर रोग से बचाव होता है, विशेषकर आंतों के कैंसर से।
  • पेट में कीड़ें हों तो कच्चे पपीते का रस 20 ग्राम सुबह-शाम पीएं। इससे पेट के कीड़ों का नाश हो जाता है।   
  • यकृत या प्लीहावृद्धि में कच्चे पपीते को जीरा, काली मिर्च तथा सेंधा नमक का चूर्ण छिड़क कर खाने से लाभ होता है।
  • सेंधा नमक, जीरा और नीबू का रस मिलाकर पपीते का नियमित सेवन करने से मंदाग्नि, कब्ज, अजीर्ण तथा आंतों की सूजन में काफ़ी लाभ होता है।
  • दाँतों से ख़ून जाता हो या दाँत हिलते हों तो पपीता खाने से ये दोनों शिकायतें दूर हो जाती हैं।
  • बवासीर में प्रतिदिन सुबह ख़ाली पेट पपीता खाएँ, इससे कब्ज दूर होगी। शौच साफ़ होगा और बवासीर से छुटकारा मिलेगा, क्योंकि बवासीर का मूल कारण कब्ज ही है।
  • पपीते में पपेन नामक पदार्थ पाया जाता है जो मांसाहार गलाने के काम आता है। भोजन पचाने में भी यह अत्यंत सहायक होता है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौष्टिक पपीता (एच टी एम) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 22 अगस्त, 2010
  2. पपीता स्वास्थवर्धक तथा विटामिन ए से भरपूर फल (हिन्दी) एग्रोपीड़िया। अभिगमन तिथि: 22 अगस्त, 2010
  3. पपीता- विटामिन 'ए' का ख़ज़ाना (एच टी एम) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 22 अगस्त, 2010

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