प्रचेता

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प्रचेता एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- प्रचेता (बहुविकल्पी)

प्रचेता पुरा काल में दक्ष प्रजापति के जनक थे, जिन्होंने प्राणियों की सृष्टि की है। ब्रह्मपुराण में प्रचेतागणों की कथा कई स्थानों पर आती है। सोमदेव की प्रार्थना पर ही वायु और अग्नि देव ने अपना क्रोध शांत किया था, क्योंकि इनके क्रोध से वृक्ष टूटते जा रहे थे और अग्नि में स्वाहा होते जा रहे थे। इस कारण से पृथ्वी पर से सभी वृक्षों के नष्ट होने का भय उत्पन्न हो गया था।

सोमदेव की प्रार्थना

प्रचेतागण धनुर्वेद विद्या में पारंगत थे। उन्होंने दस सहस्र वर्ष तक समुद्र के जल में तपस्या की थी। पृथ्वी को असुरक्षित समझ पेड़-पौधों ने सब ओर से उसे आवृत्त कर लिया। घनघोर अरण्यमयी पृथ्वी पर वायु का अभाव होने से प्राणियों की हानि होने लगी। प्रचेताओं ने जब यह जाना, तो क्रोधित हो उन्होंने अग्नि और वायु की सृष्टि कर डाली। वृक्षों को प्रबल वायु तोड़ देती थी, वे टूटकर गिरते थे, और सूखने पर अग्नि में स्वाहा हो जाते थे। जब वृक्षों का टूटना, गिरना, सूखना और स्वाहा होने का क्रम नहीं रुका, तो थोड़े-से ही वृक्ष रह गये। तब सोम देव ने प्रचेताओं से कहकर वायु और अग्नि को शान्त किया।

दक्ष का जन्म

सोम देव की प्रेरणा से वृक्ष कन्या 'मारिषा' को प्रचेताओं ने पत्नी के रूप में ग्रहण कर लिया। सोम ने कहा प्रचेताओं और सोम के आधे-आधे तेज़ से मारिषा दक्ष प्रजापति को जन्म देगी। दक्ष प्रजापति ने चार पैर वाले, दो पैर वाले तथा अन्य प्रकार के प्राणियों की सृष्टि की। दक्ष ने अपनी दस कन्याएँ धर्म को, 13 कश्यप को तथा नक्षत्र रूपी अवशिष्ट कन्याएँ सोम को दीं। एक प्रकार से सोम दक्ष का पिता था और दूसरी ओर जामाता भी बन गया। उन कन्याओं के गर्भ से देव, पक्षी, गौ, गन्धर्व-अप्सरा आदि जन्में। दक्ष ने जब देखा कि अयोनिज सृष्टि का पर्याप्त वर्द्धन नहीं होता, तो उसने स्त्रियों की रचना कर मानव जाति की संख्या (कुल) को बढ़ाने में अभूतपूर्व परिवर्तन उपस्थित किया। वे ही मैथुनी सृष्टि के जन्मदाता बने।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 512 |

  1. ब्रह्मपुराण, 2/33-57

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