बड़वामुख प्राचीन काल के एक महर्षि थे, जिन्होंने समुद्र को बुलाने के लिए उसका आह्वान किया था।
- आह्वान किये जाने पर भी समुद्र नहीं आया।
- इस पर क्रोधित ऋषि ने सागर को चंचल कर दिया।
- प्रस्वेदवत उसे खारा[1] होने का भी शाप दिया।
- बड़वामुख[2] जो अश्वमुख भी कहलाता है, बार-बार समुद्र के जलपान करता है। इसको 'बड़वानल' भी कहते हैं।[3]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 524 |
- ↑ नमकीन
- ↑ समुद्र की अग्नि
- ↑ महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय 342
संबंधित लेख
|