बीजापुर
बीजापुर उत्तरी कर्नाटक (भूतपूर्व मैसूर) राज्य का एक शहर है। बीजापुर नगर का प्राचीन नाम 'विजयपुर' कहा जाता है। मध्य कालीन मुस्लिम स्थापत्य कला का यह महत्त्वपूर्ण स्थल, पहले विजयपुर कहलाता था। बहमनी राजवंश की प्रांतीय राजधानी बनने से पहले, 1294 तक, एक शाताब्दी से भी अधिक समय तक यादव वंश के अंतर्गत यह एक महत्त्वपूर्ण नगर था।
स्थापना
बहमनी राजवंश के पतन के बाद बने 5 नये राज्यों में बीजापुर का विशेष स्थान था। इस स्वतंत्र राज्य की स्थापना 1489 ई. में यूसुफ़ आदिलशाह ने की। यह धार्मिक रूप से सहिष्णु एवं न्यायप्रिय शासक था। इसके दरबार में ईरान, मध्य एशिया, तुर्किस्तान से विद्वानों का आना-जाना लगा रहता था। इसके बाद के 3 उत्तराधिकारी 'इस्माईल आदिलशाह' (1510 सें 1534 ई.), 'इब्राहिम आदिलशाह' (1535 से 1558 ई.), 'अली आदिलशाह प्रथम' (1558 से 1580) अयोग्य थे। इब्राहिम आदिलशाह ने फ़ारसी के स्थान पर 'हिन्दवी' (दक्कनी उर्दू) को राजभाषा बनाया और शासन में अनेक हिन्दुओं को नियुक्त किया। अली आदिलशाह का विवाह अहमदनगर के 'हुसैन निज़ामशाह' की पुत्री चाँदबीबी से हुआ था।
इतिहास
बीजापुर 'शोलापुर-हुबली रेलपथ' पर शोलापुर से 68 मील दूर स्थित है। 11वीं शती के बौद्ध अवशेष हाल ही की खोज में यहाँ प्राप्त हुए हैं, जिससे इस स्थान का इतिहास पूर्व-मध्यकाल तक पहुँचता है। किंतु बीजापुर का जो अब तक इतिहास ज्ञात है, वह प्रायः 1489 ई. से 1686 तक के काल के अंदर ही सीमित है। इन दो सौ वर्षों में बीजापुर में आदिलशाही वंश के सुल्तानों का आधिपत्य था। इस वंश का प्रथम सुल्तान 'यूसुफ़ आदिल ख़ाँ' था, जो 'अल्तूनिया' का निवासी था। इसने बहमनी राज्य के नष्ट-भ्रष्ट होने पर यहाँ स्वाधीन रियासत स्थापित की। बीजापुर का निर्माण तालीकोटा के युद्ध (1556 ई.) के पश्चात् विजय नगर के ध्वंसावशेषों की सामग्री से किया गया था। आदिलशाही सुल्तान शिया थे, और ईरान की संस्कृति के प्रेमी थे। इसीलिए उनकी इमारतों में विशालता और उदारता की छाप दिखाई पड़ती है।
मराठों और शिवाजी की ऐतिहासिक गाथाओं के संबंध में बीजापुर का नाम बराबर सुनाई देता है। बीजापुर के सुल्तान की सेनाओं को कई बार शिवाजी ने परास्त करके अपने छिने हुए क़िले वापस ले लिए थे। बीजापुर के सरदार अफ़ज़ल ख़ाँ को प्रतापगढ़ के क़िले के पास शिवाजी ने बड़े कौशल से मारकर मराठा इतिहास में अभूतपूर्व ख्याति प्राप्त की थी। 1686 ई. में मुग़ल सम्राट और औरंगज़ेब ने बीजापुर की स्वतंत्र राज्यसत्ता का अंत कर दिया और तत्पश्चात् बीजापुर मुग़ल साम्राज्य का एक अंग बन गया।
उद्योग और व्यापार
उद्योगों में कपास की ओटाई, तिलहन की मिलें, साबुन, रसायन और रंगरेज़ी से संबंधित उद्योग शामिल हैं।
उल्लेखनीय इमारतें
गोल गुम्बद
बीजापुर में आदिलशाही शासन के समय की अनेक उल्लेखनीय इमारतें हैं जो उसकी तत्कालीन समृद्धि की परिचायक हैं। यहाँ की सभी इमारतें प्राचीन क़िले या पुराने नगर के अंदर स्थित हैं। गोल गुम्बद मुहम्मद आदिलशाह (1626-1656) का मक़बरा है। इसके फर्श का क्षेत्रफल 18337 वर्गफुट है जो रोम के पेथिंयन सेंट पीटर-गिर्जे के गुम्बद से कुछ ही छोटा है। इसकी ऊँचाई फर्श से 175 फुट है और इसकी छत में लगभग 130 फुट वर्ग स्थान घिरा हुआ है। इस गुंबद का चाप आश्चर्यजनक रीति से विशाल है। दीवारों पर इसके धक्के की शक्ति को कम करने के लिए गुम्बद में भारी निलंबित संरचनाएं बनी हैं, जिससे गुम्बद का भार भीतर की ओर रहे। यह गुम्बद शायद संसार की सबसे बड़ी उपजाप वीथि है। जिसमें सूक्ष्म शब्द भी एक सिरे से दूसरे तक आसानी से सुना जा सकता है।
इब्राहीम रौज़ा
इब्राहिम द्वितीय (1580-1627) का रौजा मलिक सदल नामक ईरानी वास्तु विशारद का बनाया हुआ है। गोलगुंबज के विपरीत इसकी विशेषता विशालता अथवा भव्यता में नहीं वरन् पत्थर की सूक्ष्म कारीगरी तथा तक्षणशिल्प में है। इसमें खिड़कियों की जालियाँ अरबी अक्षरों के रूप में काटी गई हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें जो पत्थर लगे हैं वे बिना किसी आधार के टिके हैं। कुछ वास्तुविदों का कहना है कि भवन का निर्माणशिल्प सर्वोत्कृष्ट कोटी का है।
जामा मस्जिद
जामा मस्जिद 1576 ई. में बननी शुरू हुई थी। 1686 ई. में औरंगज़ेब ने इसमें अभिवृद्धि की किंतु यह अपूर्ण ही रह गई है। इसके फर्श में 2250 आयत बने हैं। इसकी ऊँचाई 240 फुट और चौड़ाई 130 फुट है। इसमें लंबे बल में पाँच और चौड़े बल में 9 दालान हैं। मध्य का स्थान विशाल गुम्बद से ढका है। जिसकी भीतरी चौड़ाई 96 फुट है। प्रांगड़ पूर्व–पश्चिम 187 फुट है। इसमें उत्तर-दक्षिण की ओर एक बरामदा है। पूर्व के कोने में दो मीनारें बनाई जाने वाली थी, किंतु केवल उत्तरी मीनार ही प्रारंभ हो सकी।
गगन महल
गगन महल (1561 ई.) का केंन्द्रीय चाप भी 61 फुट चौड़ा है किंतु यह इमारत अब खंडहर हो गई है। इसकी लकड़ी की छत को मराठों ने निकाल लिया था।
असर महल
असर मुबारक महल भी मुख्यतः काष्ठ निर्मित है। सम्मुखीन भाग खुला हुआ है। छत दो काष्ठ स्तम्भों पर आधारित है। इसके भीतर भी लकड़ी का अलंकरण है और चित्रकारी की हुई है।
मिहतर महल
मिहतर महल में जो एक मसजिद का प्रवेश द्वार है, पत्थर की नक़्क़ाशी का सुंदर काम प्रदर्शित है। खिड़कियों के पत्थरों पर अनोखे बेल बूटे और कंगनियों के आधार-पाषाणों पर मनोहर नक़्क़ाशी, इस भवन की अन्य विशेषताएँ हैं।
अन्य इमारतें
बीजापुर की अन्य इमारतों में बुखारा मसजिद, अदालत महल, याकूत दबाली की मसजिद, खवास ख़ाँ और मसजिद, छोटा चीनी महल और अर्श-महल उल्लेखनीय है। बीजापुर की वास्तुकला आगरा और दिल्ली की मुग़लशैली से भिन्न है। किंतु मौलिकता और निर्माण कौशल में उससे किसी अंग में न्यून नहीं। यहाँ की इमारतों में हिन्दू प्रभाव लगभग नहीं के बराबर है। किंतु ईरानी निर्माण शिल्प की छाप इनकी विशाल तथा विस्तीर्ण संरचनाओं में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
जनसंख्या
बीजापुर की जनसंख्या (2001) शहर में 2,45,946 है। और बीजापुर ज़िले में कुल जनसंख्या 18,08,863 है।
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