बृहदनन्तवीर्य

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आचार्य बृहदनन्तवीर्य

  • ये विक्रम संवत 9वीं शती के प्रतिभा सम्पन्न तार्किक हैं।
  • इन्होंने अकलंकदेव के 'सिद्धिविनिश्चय' और 'प्रमाणसंग्रह' इन दो न्याय-ग्रन्थों पर विशाल व्याख्याएँ लिखी हैं।
  • सिद्धिविनिश्चय पर लिखी 'सिद्धिविनिश्चयालंकार' व्याख्या उपलब्ध है, परन्तु प्रमाणसंग्रह पर लिखा 'प्रमाणसंग्रहभाष्य' अनुपलब्ध है।
  • इसका उल्लेख स्वयं अनन्तवीर्य ने 'सिद्धिविनिश्चयालंकार' में अनेक स्थलों पर विशेष जानने के लिए किया है।
  • इससे उसका महत्त्व जान पड़ता है।
  • अन्वेषकों को इसका पता लगाना चाहिए।
  • इन्होंने अकलंकदेव के पदों का जिस कुशलता और बुद्धिमत्ता से मर्म खोला है उसे देखकर आचार्य वादिराज[1] और प्रभाचन्द्र[2] कहते हैं कि 'यदि अनन्तवीर्य अकलंक के दुरूह एवं जटिल पदों का मर्मोद्घाटन न करते तो उनके गूढ़ पदों का अर्थ समझने में हम असमर्थ रहते।
  • उनके द्वारा किये गये व्याख्यानों के आधार से ही हम (प्रभाचन्द्र और वादिराज, क्रमश: लघीयस्त्रय की व्याख्या (लघीयस्त्रयालंकार- न्यायकुमुदचन्द्र) एवं न्यायविनिश्चय की टीका (न्यायविनिश्चयालंकार अथवा न्यायविनिश्चय विवरण) लिख सके हैं।[3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ई. 1025
  2. ई. 1953
  3. वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट प्रकाशन, 1977

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