ब्रज घाट
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- सन 1900 के बाद पतित पावनी भागीरथी गंगा तीर्थनगरी गढ़मुक्तेश्वर से रूठ कर दूर होती गयीं, वैसे-वैसे इस तीर्थ नगरी की पावनता, शोभा और आकर्षण तिरोहित होते गए और यह तीर्थ नगरी उजड़ती चली गई, किन्तु करुणामयी गंगा माँ की अनुकम्पा से गढ़मुक्तेश्वर के निकट नये तीर्थ ब्रजघाट का प्रादुर्भाव हुआ।
- ब्रजघाट नवोदित तीर्थस्थल है। यह गढ़मुक्तेश्वर से पूर्व की दिशा में लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर गंगा किनारे स्थित हैं।
- अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में सन् 1900 में यहां गंगा पर रेल का पुल बनवाया था।
- सन 1935 से यहां कुछ देर को रेलगाडी़ रुकने लगी, जिससे यहां गंगा प्रेमियों का आगमन होने लगा. फिर 1960 में दिल्ली - लखनऊ राजमार्ग के लिए सड़क पुल बना।
- यातायात की दोहरी सुविधा होने से गंगा के भक्त गंगा स्नान के लिए यहां आने लगे और पुलों की वजह से ही इस नवोदित तीर्थस्थल का नाम ब्रज घाट पड़ा।
- पहले तो केवल अमावस्या और पूर्णिमा को ही श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आते थे।
- गंगा स्नानार्थियों की सुविधा के लिए दिल्ली के लोगों ने ब्रज घाट पर कुछ धर्मशालायें बनवा दीं। अब यहाँ धीरे-धीरे सैकड़ों मंदिर और धर्मशालायें बन गईं।
- प्रत्येक अमावस्या, पूर्णिमा और पर्व के दिन तो यहां लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करने के लिए आते हैं।
- यहां पर कई प्रसिद्ध मंदिर भी हैं, जिनमें 'वेदांत मंदिर', 'चामुंडा मंदिर' और गंगा किनारे 'फलाहारी बाबा की कुटिया' दर्शनीय हैं।
- सप्तपुरियों में गिनी जाने वाली मायानगरी, हरिद्वार के उत्तराखंड में चले जाने पर उत्तर प्रदेश शासन की हरिद्वार के विकल्प में ब्रज घाट को हरिद्वार जैसा बनाने की योजना है। इसके लिए धन भी स्वीकृत हुआ है तथा योजना के तहत पुराने घाट को तोड़कर नये घाट का निर्माण हुआ है।
- घाट पर ही हरिद्वार जैसा 'घंटाघर' भी बनवाया गया है।
- हरिद्वार की तरह गंगा की आरती भी होने लगी है।
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