भानुमान

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भानुमान पौराणिक महाकाव्य महाभारत के भीष्म पर्व के अनुसार कलिंग देश के एक राजा का नाम था, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ा था। इसका वध युद्धभूमि में महाबलि भीमसेन के हाथों हुआ।[1][2]

भीमसेन से सामना

महाभारत युद्ध में जब भीमसेन ने कलिंग राजकुमार शक्रदेव को मार डाला, तब अपने पुत्र को मारा गया देख कलिंगराज ने कई हज़ार रथों के द्वारा भीमसेन की सम्पूर्ण दिशाओं को रोक दिया। भीमसेन ने अत्यन्त वेगशाली एवं भारी ओर विशाल गदा को वहीं छोड़कर अत्यन्त भयंकर कर्म करने की इच्छा से तलवार खींच ली तथा ऋषभ के चमडे़ की बनी हुई अनुपम ढाल हाथ में ले ली। उस ढाल में सुवर्णमय नक्षत्र और अर्धचन्द्र के आकाश की फुलियां जड़ी हुई थीं। इधर क्रोध में भरे हुए कलिंगराज ने धनुष की प्रत्यंचा को रगड़कर सर्प के समान विषैला एक भयंकर बाण हाथ में लिया और भीमसेन के वध की इच्छा से उन पर चलाया। भीमसेन ने अपने विशाल खड्ग से उसके वेगपूर्वक चलाये हुए तीखे बाण के दो टुकडे़ कर दिये और कलिंगों की सेना को भयभीत करते हुए हर्ष में भरकर बड़े जोर से सिंहनाद किया।[3]

वीरगति

तब कलिंगराज भानुसेन ने रणक्षेत्र में अत्यन्त कुपित हो भीमसेन पर तुरन्त ही चौदह तोमरों का प्रहार किया, जिन्हें सान पर चढ़ाकर तेज किया गया था। वे तोमर अभी भीमसेन तक पहुंच ही नहीं पाये थे कि उन महाबाहु पाण्डुकुमार ने बिना किसी घबराहट के अपनी अच्छी तलवार से सहसा उन्हें आकाश में ही काट डाला। इस प्रकार पुरुषश्रेष्ठ भीमसेन ने रणक्षेत्र में उन चौदह तोमरों को काटकर भानुमान पर धावा किया। यह देख भानुमान ने अपने बाणों की वर्षा से भीमसेन को आच्छादित करके आकाश को प्रतिध्वनित करते हुए बड़े जोर से गर्जना की। भीमसेन उस महासमर में भानुमान की वह गर्जना न सह सके। उन्होंने और भी अधिक जोर से सिंह के समान दहाड़ना आरम्भ किया। उनकी उस गर्जना से कलिंगों की वह विशाल वाहिनी संत्रस्त हो उठी। उन सैनिकों ने भीमसेन को युद्ध में मनुष्य नहीं, कोई देवता समझा। तदनन्तर महाबाहु भीमसेन जोर-जोर से गर्जना करके हाथ में तलवार लिये वेगपूर्वक उछलकर गजराज के दांतों के सहारे उसके मस्तक पर चढ़ गये। इतने ही में कलिंग राजकुमार ने उनके ऊपर शक्ति चलायी, किंतु भीमसेन ने उनके दो टुकड़े कर दिये और अपने विशाल खड्ग से भानुमान के शरीर को बीच से काट डाला। इस प्रकार गजारूढ़ होकर युद्ध करने वाले कलिंग राजकुमार को मारकर शत्रुदमन भीमसेन ने भार सहने में समर्थ अपनी भारी तलवार को उस हाथी के कंधे पर भी मारा। कंधा कट जाने से वह गजयूथपति चिंघाड़ता हुआ समुद्र वेग से भग्न होकर गिरने वाले शिखरयुक्त पर्वत के समान धराशायी हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत भीष्म पर्व 54,33-39
  2. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 374 |
  3. महाभारत भीष्म पर्व, अध्याय 54, श्लोक 21-42

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