भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस
कांग्रेस | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कांग्रेस (बहुविकल्पी) |
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस
| |
पूरा नाम | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
संक्षेप नाम | कांग्रेस (INC) |
गठन | 28 दिसम्बर, 1885 |
संस्थापक | ए.ओ. ह्यूम |
प्रथम अध्यक्ष | व्योमेश चन्द्र बनर्जी |
वर्तमान अध्यक्ष | सोनिया गाँधी |
मुख्यालय | 24, अकबर रोड, नई दिल्ली |
विचारधारा | लोकलुभावनवाद, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, जनतांत्रिक समाजवाद, सामाजिक लोकतंत्र |
चुनाव चिह्न | हाथ का पंजा |
समाचार पत्र | कांग्रेस संदेश |
गठबंधन | संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) |
युवा संगठन | इंडियन यूथ कांग्रेस |
महिला संगठन | महिला कांग्रेस |
श्रमिक संगठन | इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस |
विद्यार्थी संगठन | नेशनल स्टूडेंट यूनीयन ऑफ इंडिया |
संबंधित लेख | दादाभाई नौरोजी, फ़िरोजशाह मेहता, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, मोतीलाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक |
रंग | आसमानी |
अन्य जानकारी | 'भारतीय राष्ट्रीय संघ' (कांग्रेस की पूर्वगामी संस्था) की स्थापना का विचार सर्वप्रथम लॉर्ड डफ़रिन के दिमाग में आया था। 1916 ई. में लाला लाजपत राय ने 'यंग इण्डिया' में एक लेख में लिखा, 'कांग्रेस लॉर्ड डफ़रिन के दिमाग की उपज है।' |
संसद में सीटों की संख्या
| |
लोकसभा | 44/543 |
राज्यसभा | 72/245 |
आधिकारिक वेबसाइट | भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस |
अद्यतन | 14:21, 21 मई 2014 (IST)
|
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस भारत का सबसे प्राचीन राजनीतिक दल है। इस दल की वर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी है। कांग्रेस दल का युवा संगठन 'भारतीय युवा कांग्रेस' है। 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना 28 दिसम्बर, 1885 ई. में दोपहर बारह बजे बम्बई में 'गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज' के भवन में की गई थी। इसके संस्थापक 'ए.ओ. ह्यूम' थे और प्रथम अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी बनाये गए थे। 'भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस' में कुल 72 सदस्य थे, जिनमें महत्त्वपूर्ण थे- दादाभाई नौरोजी, फ़िरोजशाह मेहता, दीनशा एदलजी वाचा, काशीनाथा तैलंग, वी. राघवाचार्य, एन.जी. चन्द्रावरकर, एस.सुब्रमण्यम आदि। इसी सम्मेलन में दादाभाई नौरोजी के सुझाव पर 'भारतीय राष्ट्रीय संघ' का नाम बदलकर 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' रख दिया गया था। 'भारतीय राष्ट्रीय संघ' (कांग्रेस की पूर्वगामी संस्था) की स्थापना का विचार सर्वप्रथम लॉर्ड डफ़रिन के दिमाग में आया था। कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने हिस्सा नहीं लिया। 1916 ई. में लाला लाजपत राय ने 'यंग इण्डिया' में एक लेख में लिखा, 'कांग्रेस लॉर्ड डफ़रिन के दिमाग की उपज है।'
उद्देश्य
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों में कुछ निम्नलिखित थे-
- देशहित की दिशा में प्रयत्नशील भारतीयों में परस्पर सम्पर्क एवं मित्रता को प्रोत्साहन देना।
- देश के अन्दर धर्म, वंश एवं प्रांत सम्बन्धी विवादों को खत्म कर राष्ट्रीय एकता की भावना को प्रोत्साहित करना।
- शिक्षित वर्ग की पूर्ण सहमति से महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक सामाजिक विषयों पर विचार विमर्श करना।
- यह निश्चित करना कि आने वाले वर्षों में भारतीय जन-कल्याण के लिए किस दिशा में किस आधार पर कार्य किया जाय।
इतिहास
'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' नामक संगठन का आरंभ भारत के अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे लोगों द्वारा किया गया, और यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इसके पहले बाद के कुछ ऐसे अध्यक्ष भी हुये, जिन्होंने विलायत में अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। पहले तीन अध्यक्ष, व्योमेश चन्द्र बैनर्जी, दादा भाई नौरोजी तथा बदरुद्दीन तैयबजी, ब्रिटेन से ही बैरिस्टरी पढ़कर आये थे। जॉर्ज युल तथा सर विलियम बैडरवर्न तो अंग्रेज़ ही थे और यही बात उनके कुछ अन्य अनुयायियों, जैसे कि एलफर्ड बेब तथा सर हेनरी काटन के बारे में भी कही जा सकती है। उन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के उस दौर में शिक्षा प्राप्त की, जबकि इंग्लैंड में लोकतांत्रिक मूल्यों तथा स्वाधीनता का बोलबाला था। कांग्रेस के आरंभिक नेताओं का ब्रिटेन के सुधारवादी (रेडिकल) तथा उदारवादी (लिबरल) नेताओं में पूरा विश्वास था। भारतीय कांग्रेस के संस्थापक भी एक अंग्रेज़ ही थे, जो 15 वर्षों तक कांग्रेस के महासचिव रहे। ऐ. ओ. ह्यूम ब्रिटिश संस्कृति की ही देन थे। इसलिए कांग्रेस का आरंभ से ही प्रयास रहा कि ब्रिटेन के जनमत को प्रभावित करने वाले नेताओं से सदा सम्पर्क बनाये रखा जाये, ताकि भारतीय लोगों के हित के लिए अपेक्षित सुधार कर उन्हें उनके राजनीतिक अधिकार दिलवाने में सहायता मिल सके। यहाँ तक कि वह नेता, जिन्होंने इंग्लैंड में शिक्षा नहीं पाई थी, उनकी भी मान्यता थी कि अंग्रेज़ लोकतंत्र को बहुत चाहते हैं।
मदन मोहन मालवीय ने अपने पहले भाषण में, जो कि उन्होंने 1886 ई. में कलकत्ता में हुये दूसरे कांग्रेस अधिवेशन में दिया था, कहा- "प्रतिनिधिक संस्थाओं के बिना अंग्रेज़ से भला क्या होगा। प्रतिनिधिक संस्थान ब्रिटेन का उतना ही अनिवार्य अंग है, जितना कि उसकी भाषा तथा साहित्य।" कांग्रेस का चौथा अधिवेशन इलाहाबाद में जॉर्ज युल की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें मांग की गई कि एक संसदीय समिति की नियुक्ति की जाये, जो कांग्रेस की 1858 ई. की उद्घोषणा को लागू करने तथा राजनीतिक सुधार स्वीकार करने की मांगों पर विचार करे। यह निर्णय भी किया गया कि संसद के सदस्य ब्रैडला से अनुरोध किया जाये कि वह इसके लिए उन्हें अपना समर्थन दें।
चार्ल्स ब्रैडला ने 1889 ई. में 'बम्बई कांग्रेस अधिवेशन' में भाग लिया तथा सर विलियम बेडरवर्न को अध्यक्ष चुना गया। इस अधिवेशन में ब्रैडला को एक मानपत्र भेंट किया गया, जिसे सर विलियम रेडरवर्न ने पढ़ा। इसी अधिवेशन में वह संकल्प स्वीकार किया गया, जिसमें कहा गया है, "कि यह अधिवेशन सर विलियम बेडरवर्न, बार्ट तथा मैसर्ज डब्ल्यू एस. केनी, एम. पी., डब्ल्यू. एस. ब्राईट मैकलारिन एम.पी., जे.ई. इलियस एम.पी., दादाभाई नौरोजी तथा जॉर्ज युल की समिति, जिसके पास अपनी संस्था बढ़ाने की शक्ति होगी, के रूप में नियुक्ति की पुष्टि करता है तथा यह समिति नेशनल कांग्रेस एजेंसी के कार्य संचालन तथा नियंत्रण के बारे में दिशा-निर्देश देती रहेगी तथा उन महानुभावों का धन्यवाद करती है तथा उनके साथ ही डब्ल्यू. दिग्बे, सी.आई.सी. सचिव का भारत को दी जाने वाली सेवा के लिए धन्यवाद करती है।"
इस संकल्प से पता चलता है कि समिति कांग्रेस के पांचवे अधिवेशन से पहले भी कार्यरत रही होगी और यह 20वीं शताब्दी के दूसरे दशक तक कार्यरत रही, जब तक कि महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में कलकत्ता में 1920 ई. के विशेष अधिवेशन में अपना असहयोग आंदोलन का संकप पारित करवाने में सफल नहीं हो गये। यह समिति इतनी सशक्त होती चली गई कि दादाभाई नौरोजी ने, 1906 ई. में कलकत्ता में होने वाले अपने अध्यक्षीय भाषण में इस तथ्य का उल्लेख करते हुये कहा कि "भारतीय संसदीय कमेटी के सदस्यों की संख्या 200 तक पहुंच गई है।" लेबर सदस्यों, आयरिश नेशनल सदस्यों तथा रेडीकल सदस्यों की हमारे साथ पूर्ण सहानुभूति है। हम इसे भारत का एक सशक्त अंग बनाना चाहते हैं। हमने देखा है कि सभी दलों के लोग चाहे वह लेबर पार्टी के हरें सर छेमरेक्रेटिक पार्टी के हों, ब्रिटिश नेशनल पार्टी के, या फिर उग्र-सुधारवादी (रेडिकल) या उदारबादी (लिबरल) सभी भारत के मामलों में गहरी दिलचस्पी लेते हैं।"[1]
संस्था | स्थापना वर्ष | स्थान | संस्थापक/सदस्य | उद्देश्य |
---|---|---|---|---|
हिन्दू कॉलेज | 1817 ई. | कलकत्ता | पश्चिम के उदारवादी दर्शन का ज्ञान प्राप्त करना | |
साधारण ज्ञान सभा | 1838 ई. | पश्चिम बंगाल | सरकारी विभागों में हो रहे भ्रष्टाचार, समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता आदि के बारे में विचार विमर्श कर समस्या का हल करना। | |
बंगाल ज़मींदार सभा (लैण्ड होल्डर्स सोसाइटी) | 1838 ई. | कलकत्ता | द्वारका नाथ टैगोर के प्रयासों से | जमींदारों के हितों की देखभाल करना। पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा के जमींदारों की यह संस्था आधुनिक भारत की पहली सार्वजनिक एवं राजनीतिक संस्था थी। |
बंगाल ब्रिटिश एसोसिएशन | 1843 ई. | सार्वजनिक हितों की रक्षा करना | ||
ब्रिटिश इण्डियन एसोसिएशन | 28 अक्टूबर, 1851 | कलकत्ता | राजेन्द्र लाल मित्र, राधाकान्त देव (अध्यक्ष), देवेन्द्र नाथ टैगोर (महासचिव), हरिश्चन्द्र मुखर्जी आदि। | भारत के लिए राजनीतिक अधिकारों की मांग करना। यह संस्था लैण्ड होल्डर्स सोसइटी एवं बंगाल ब्रिटिश एसोसिएशन के आपस में विलय के बाद बनी। भारत के राजनीतिक अधिकारों की मांग करने वाली यह प्रथम संस्था थी। |
इण्डियन एसोसिएशन | 26 जुलाई, 1876 | इल्बर्ट हाल, कलकत्ता | सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, आनन्द मोहन बोस | शिक्षित मध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व करना एवं सार्वजनिक कार्यो में उनकी दिलचस्पी पैदा करना। कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठनों में यह सबसे महत्त्वपूर्ण संगठन था। इस संगठन ने 1876 मेंनागरिक सेवा परीक्षा की आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष करने पर ब्रिटिश भारत सरकार के ख़िलाफ़ एक बड़ा आंदोलन चलाया। प्रो. हीरालाल के अनुसार सुरेन्द्र नाथ बनर्जी का राजनीतिक जीवन ‘इण्डियन सिविल आंदोलन’ से आरम्भ हुआ जो कि ‘इण्डियन नेशनल कांग्रेस’ जैसे अधिक व्यापक राजनीतिक आंदोलन का अग्रसर बना। |
बम्बई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन | 1885 | मुम्बई | फिरोजशाह मेहता, बदरुद्दीन तैयबजी, के.टी. तैलंग आदि। | भारत में सिविल सर्विस परीक्षा को आयोजित करना एवं सरकारी पदों पर भारतीयों की नियुक्ति कराना आदि। बम्बई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन को पहले ‘बाम्बे एसोसिएशन’ के नाम से जाना जाता था। इसकी स्थापना 1852 ई. में की गई थी। |
ईस्ट इंडिया एसोसिएशन | 1866 ई. | लंदन | दादा भाई नौरोजी | तत्कालीन भारतीय समस्याओं पर विचार करना तथा ब्रिटिश जनमत को प्रभावित करना। |
मद्रास नेटिव एसोसिएशन | 1852 | मद्रास | इस संस्था ने 1857 ई. के विद्रोहों की निंदा की। अतः इसे जनसमर्थन नहीं प्राप्त हो सका, जिससे शीघ्र ही इसका अस्तित्व समाप्त हो गया। | |
मद्रास महाजन सभा | मई, 1884 | मद्रास | स्थानीय संगठनों व संस्थाओं के कार्यो को समन्वित करना। | |
पूना सार्वजनिक सभा | 1876 ई. | पुणे | महादेव गोविन्द रानाडे | जनता में राजनीतिक चेतना का जागरण करना एवं महाराष्ट्र में समाज सुधार करना आदि। |
इण्डिया लीग | 1875 | शिशिर कुमार घोष | भारतीय जनमानस में राष्ट्रयता की भावना को फैलाना वं उन्हें राजनीतिक शिक्षा प्रदान करना आदि। |
1838 में कलकत्ता में स्थापित लैंड होल्डर्स सोसाइटी भारत की प्रथम राजनीतिक संस्था थी जो द्वारकानाथ टैगोर के प्रयासों से स्थापित हुई। संस्था का उद्देश्य जमींदारों के हितों की रक्षा करना था। संस्था के अन्य मुख्य नेता प्रसन्न कुमार ठाकुर, राजा राधाकान्त देव आदि थे।
- बंगाल ब्रिटिश एसोसिएशन
इसकी स्थापना कलकत्ता में हुई थी। इसकी स्थापना में द्वारकानाथ टैगोर की भूमिका अग्रणी थी। इस संस्था के सदस्य अंग्रेज़ भी थे। अंग्रेज़ जार्ज थाम्पसन ने संस्था की अध्यक्षता की थी।
गरम दल और नरम दल
भारत की आज़ादी से पूर्व 1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमों में विभाजित हो गई। जिसमें एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरू थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरू चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजों के साथ कोई संयोजक सरकार बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेज़ों के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। और इस तरह कांग्रेस के दो हिस्से हो गए एक नरम दल और एक गरम दल। गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरू।[2] लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेज़ों के साथ रहते थे। उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय अंग्रेज़ों से समझौते में रहते थे। वन्दे मातरम से अंग्रेज़ों को बहुत चिढ़ होती थी। नरम दल वाले गरम दल को चिढ़ाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन गण मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम"। नरम दल वाले अंग्रेज़ों के समर्थक थे और अंग्रेज़ों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेज़ों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे।[3] इन्हें भी देखें: गरम दल एवं नरम दल
स्थापना दिवस
भारतीयों के सबसे बड़े इस राजनीतिक संगठन की स्थापना 28 दिसम्बर, 1885 ई. को की गयी। इसका पहला अधिवेशन बम्बई में कलकत्ता हाईकोर्ट के बैरेस्टर उमेशचन्द्र बनर्जी की अध्यक्षता में हुआ। कहा जाता है कि वाइसराय लॉर्ड डफ़रिन (1884-88 ई.) ने कांग्रेस की स्थापना का अप्रत्यक्ष रीति से समर्थन किया। यह सही है कि एक अवकाश प्राप्त अंग्रेज़ अधिकारी एनल आक्टेवियन ह्यूम कांग्रेस का जन्मदाता था और 1912 ई. में उसकी मृत्यु हो जाने पर कांग्रेस ने उसे अपना 'जन्मदाता और संस्थापक' घोषित किया था। गोखले के अनुसार 1885 ई. में ह्यूम के सिवा और कोई व्यक्ति कांग्रेस की स्थापना नहीं कर सकता था। परन्तु वस्तुस्थिति यह प्रतीत होती है, जैसा कि सी.वाई. चिन्तामणि का मत है, राजनीतिक उद्देश्यों से राष्ट्रीय सम्मेलन का विचार कई व्यक्तियों के मन में उठा था और वह 1885 ई. में चरितार्थ हुआ।
प्रस्ताव
सम्मेलन में लाये गये कुल 9 प्रस्तावों के द्वारा संगठन ने अपनी मांगे सरकार के सम्मुख प्रस्तुत की। ये प्रस्ताव निम्नलिखित थे-
- भारतीय शासन विधान की जांच के लिए एक 'रायल कमीशन' को नियुक्त किया जाय।
- इंग्लैड में कार्यरत 'इण्डिया कौंसिल' को समाप्त किया जाय।
- प्रान्तीय तथा केन्द्रीय व्यवस्थापिका का विस्तार किया जाय।
- 'इण्डियन सिविल सर्विस' (भारतीय प्रशासनिक सेवा) परीक्षा का आयोजन भारत एवं इंग्लैण्ड दोनों स्थानों पर किया जाय।
- इस परीक्षा की उम्र सीमा अधिकतम 19 से बढ़ाकर 23 वर्ष की जाय।
- सैन्य व्यय में कटौती की जाय।
- बर्मा, जिस पर अधिकार कर लेने की आलोचना की गई थी, को अलग किया जाय।
- समस्त प्रस्तावों को सभी प्रदेशों की सभी राजनीतिक संस्थाओं को भेजा जाय, जिससे वे इनके क्रियान्वयन की मांग कर सकें।
- कांग्रेस का अगला सम्मलेन कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में बुलाया जाय।
कांग्रेस की स्थापना का सच
28 दिसम्बर, 1885 ई. को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अवकाश प्राप्त आई.सी.एस. अधिकारी स्कॉटलैंड निवासी ऐलन ओक्टोवियन ह्यूम (ए.ओ. ह्यूम) ने 'थियोसोफ़िकल सोसाइटी' के मात्र 72 राजनीतिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से की थी। यह अखिल भारतीय स्तर पर राष्ट्रवाद की पहली सुनियोजित अभिव्यक्ति थी। आखिर इन 72 लोगो ने कांग्रेस की स्थापना क्यों की और इसके लिए यही समय क्यों चुना? यह प्रश्न के साथ एक मिथक अरसे से जुड़ा है, और वह मिथक अपने आप में काफ़ी मज़बूती रखता है। 'सेफ़्टी वाल्ट' (सुरक्षा वाल्व) का यह मिथक पिछली कई पीढ़ियों से विद्यार्थियों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के जेहन में घुट्टी में पिलाया जा रहा है। लेकिन जब इतिहास की गहराईयों को झाँकते हैं, तो पता चलेगा कि इस मिथक में उतना दम नहीं है, जितना कि आमतौर पर इसके बारे में माना जाता है। मिथक यह है कि ए.ओ. ह्यूम और उनके 72 साथियों ने अंग्रेज़ सरकार के इशारे पर ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। उस समय के मौजूदा वाइसराय लॉर्ड डफ़रिन के निर्देश, मार्गदर्शन और सलाह पर ही हयूम ने इस संगठन को जन्म दिया था, ताकि 1857 की क्रान्ति की विफलता के बाद भारतीय जनता में पनपते असंतोष को हिंसा के ज्वालामुखी के रूप में बहलाने और फूटने से रोका जा सके, और असतोष की वाष्प’ को सौम्य, सुरक्षित, शान्तिपूर्ण और संवैधानिक विकास या ‘सैफ्टी वाल्व’ उपलब्ध कराया जा सकें। ‘यंग इंडिया’ में 1961 प्रकाशित अपने लेख में गरमपथी नेता लालालाजपत राय ने ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल कांग्रेस की नरमपंथी पक्ष पर प्रहार करने के लिये किया था। इस पर लंम्बी चर्चा करते हुए लाला जी ने अपने लेख में लिखा था कि "कांग्रेस लॉर्ड डफ़रिन के दिमाग की उपज है।" इसके बाद अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने लिखा था कि "कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य राजनीतिक आज़ादी हासिल करने से कही ज़्यादा यह था कि उस समय ब्रिटिश साम्राज्य पर आसन्न खतरो से उसे बचाया जा सकें।" यही नहीं उदारवादी सी. एफ. एंड्रूज और गिरजा मुखर्जी ने भी 1938 ई. में प्रकाशित ‘भारत में कांग्रेस का उदय और विकास में सुरक्षता बाल्ब’ की बात पूरी तरह स्वीकार की थी।
1939 ई. में 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' के संचालक एम.एस. गोलवलकर ने भी कांग्रेस की धर्म-निरपेक्षता के कारण उसे गैर-राष्ट्रवादी ठहराने के लिए ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अपने परचे ‘वी’ (हम) में कहा था कि हिन्दू राष्ट्रीय चेतना को उन लोगो ने तबाह कर दिया, जो राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं।' गोलवलकर के अनुसार, ह्यूम कॉटर्न और वेडरबर्न द्वारा 1885 ई. में तय की गई नीतियाँ ही ज़िम्मेदार थीं- इन लोगो ने उस समय उबल रहे राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़ सुरक्षा वाल्व के तौर पर कांग्रेस की स्थापना की थी।[4]
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन और उनके अध्यक्ष
क्र.सं. | अधिवेशन | स्थान | अध्यक्ष |
---|---|---|---|
1 | 1885 (28 दिसम्बर) | बम्बई | व्योमेश चन्द्र बनर्जी |
2 | 1886 (28 दिसम्बर) | कलकत्ता | दादाभाई नौरोजी |
3 | 1887 (27-28 दिसम्बर) | मद्रास | सैयद बदरुद्दीन तैयबजी |
4 | 1888 (28-29 दिसम्बर) | इलाहाबाद | जॉर्ज यूल |
5 | 1889 (27-28 दिसम्बर) | बम्बई | सर विलियम वैडरबर्न |
6 | 1890 (28-29 दिसम्बर) | कलकत्ता | फिरोजशाह मेहता |
7 | 1891 (26-27 दिसम्बर) | नागपुर | आनन्द चार्लू |
8 | 1892 (28-29 दिसम्बर) | इलाहाबाद | व्योमेश चन्द्र बनर्जी |
9 | 1893 (27-28 दिसम्बर) | लाहौर | दादाभाई नौरोजी |
10 | 1894 (27-28 दिसम्बर) | मद्रास | अल्फ्रेड वेब |
11 | 1895 (28-29 दिसम्बर) | पूना | सुरेन्द्र नाथ बनर्जी |
12 | 1896 ()27-28 दिसम्बर | कलकत्ता | एम.ए.सयानी |
13 | 1897 (28-29 दिसम्बर) | अमरावती | एम.सी.शंकरन |
14 | 1898 (27-28 दिसम्बर) | मद्रास | आनंद मोहन बोस |
15 | 1899 (27-28 दिसम्बर) | लखनऊ | रमेश चंद्र दत्त |
16 | 1900 (27-28 दिसम्बर) | लाहौर | एन.जी.चन्द्रावरकर |
17 | 1901 (27-28 दिसम्बर) | कलकत्ता | दिनशा ई.वाचा |
18 | 1902 (27-28 दिसम्बर) | अहमदाबाद | सुरेन्द्रनाथ बनर्जी |
19 | 1903 (28-30 दिसम्बर) | मद्रास | लाल मोहन घोष |
20 | 1904 (26-28 दिसम्बर) | बम्बई | सर हेनरी कॉटन |
21 | 1905 (27-30 दिसम्बर) | बनारस | गोपालकृष्ण गोखले |
22 | 1906 (26-29 दिसम्बर) | कलकत्ता | दादाभाई नौरोजी |
23 | 1907 (26-27 दिसम्बर) | सूरत | रासबिहारी घोष |
24 | 1908 (29-30 दिसम्बर) | मद्रास | रासबिहारी घोष |
25 | 1909 (27-29 दिसम्बर) | लाहौर | मदनमोहन मालवीय |
26 | 1910 (28-29 दिसम्बर) | इलाहाबाद | विलियम वेडरबर्न |
27 | 1911 (26-28 दिसम्बर) | कलकत्ता | बिशन नारायण धर |
28 | 1912 (27-28 दिसम्बर) | बांकीपुर | आर.एन.मधुकर |
29 | 1913 (26-28 दिसम्बर) | कराची | नबाब सैयद मुहम्मद |
30 | 1914 (28-30 दिसम्बर) | मद्रास | भूपेन्द्रनाथ बसु |
31 | 1915 (27-30 दिसम्बर) | बम्बई | एस.पी.सिन्हा |
32 | 1916 (26-30 दिसम्बर) | लखनऊ | अम्बिका चरण मजूमदार |
33 | 1917 (28-29 दिसम्बर) | कलकत्ता | एनी बेसेन्ट |
34 | 1918 (26-31 दिसम्बर) | दिल्ली | मदनमोहन मालवीय |
35 | 1919 (27-28 दिसम्बर) | अमृतसर | मोतीलाल नेहरू |
36 | 1920 (26-31 दिसम्बर) | नागपुर | सी.विजयाराघवाचार्य |
37 | 1921 (27-28 दिसम्बर) | अहमदाबाद | सी.आर.दास |
38 | 1922 (26-31 दिसम्बर) | गया | सी.आर.दास |
39 | 1923 (28-31 दिसम्बर) | काकीनाडा | मौलाना मुहम्मद अली |
40 | 1924 (26-27 दिसम्बर) | बेलगाँव | महात्मा गाँधी |
41 | 1925 (26-28 दिसम्बर) | कानपुर | सरोजिनी नायडू |
42 | 1926 (26-28 दिसम्बर) | गुवाहाटी | एस.श्रीनिवास आयंगर |
43 | 1927 (26-27 दिसम्बर) | मद्रास | एम.ए.अंसारी |
44 | 1928 (28-31 दिसम्बर) | कलकत्ता | मोतीलाल नेहरू |
45 | 1929 (29-31 दिसम्बर) | लाहौर | जवाहरलाल नेहरू |
46 | 1931 (29 मार्च) | करांची | वल्लभभाई पटेल |
47 | 1932 (24 अप्रैल) | दिल्ली | अमृत रणछोड दास सेठ |
48 | 1933 (1 अप्रैल) | कलकत्ता | श्रीमती एन.सेन गुप्ता |
49 | 1934 (26-28 अक्टूबर) | बम्बई | डॉ राजेन्द्र प्रसाद |
50 | 1936 (12-14 दिसम्बर) | लखनऊ | जवाहरलाल नेहरू |
51 | 1937 (27-28 दिसम्बर) | फैजपुर | जवाहरलाल नेहरू |
52 | 1938 (19-21 फरवरी) | हरिपुरा | सुभाष चंद्र बोस |
53 | 1939 (10 मार्च) | त्रिपुरा | सुभाष चंद्र बोस |
54 | 1940 (17-19 मार्च) | रामगढ | मौलाना अबुल कलाम आज़ाद |
55 | 1946 (23 नवम्बर) | मेरठ | जे.बी.कृपलानी |
56 | 1947 | दिल्ली | डॉ राजेन्द्र प्रसाद |
57 | 1948 (18-19 दिसम्बर) | जयपुर | डॉ पट्टाभि सीतारमैया |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास (हिन्दी) (पी.एच.पी) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस। अभिगमन तिथि: 30 दिसंबर, 2010।
- ↑ गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे
- ↑ वन्दे मातरम Vs जन गण मन (हिंदी) घर बैठे समाज सेवा के तरीके (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 11 दिसम्बर, 2012।
- ↑ कांग्रेस की स्थापना का सच (हिन्दी) (पी.एच.पी) प्रवक्ता डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 30 दिसंबर, 2010।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख