मन्ना डे

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मन्ना डे
मन्ना डे
मन्ना डे
पूरा नाम प्रबोध चन्द्र डे
प्रसिद्ध नाम मन्ना डे
जन्म 1 मई, 1920
जन्म भूमि कोलकाता
मृत्यु 24 अक्टूबर, 2013 (94 वर्ष)
मृत्यु स्थान बंगलोर, कर्नाटक
अभिभावक पूर्ण चंद्र, महामाया डे
पति/पत्नी सुलोचना कुमारन
संतान सुरोमा, सुमिता (दोनों पुत्री)
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र पार्श्वगायक
शिक्षा स्नातक
विद्यालय विद्यासागर कॉलेज, कोलकाता
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री पुरस्कार, पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार
विशेष योगदान शास्त्रीय संगीत को फ़िल्म जगत् में पहचान दिलाने में प्रमुख योगदान रहा।
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्ध गीत 'ये रात भीगी-भीगी' (श्री 420), 'कस्मे वादे प्यार वफा सब' (उपकार), 'लागा चुनरी में दाग़' (दिल ही तो है), 'ज़िंदगी कैसी है पहेली हाय' (आनंद), 'प्यार हुआ इकरार हुआ' (श्री 420), 'यारी है ईमान मेरा यार' (ज़ंजीर) आदि।
अन्य जानकारी मन्ना डे ने अपने पांच दशक के कैरियर में लगभग 3500 गीत गाए।
बाहरी कड़ियाँ मन्ना डे
अद्यतन‎

मन्ना डे (अंग्रेज़ी: Manna Dey, मूल नाम: 'प्रबोध चन्द्र डे', जन्म: 1 मई, 1920 - मृत्यु: 24 अक्टूबर, 2013) भारतीय सिनेमा जगत् में हिन्दी एवं बांग्ला फ़िल्मों के सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक थे। 1950 से 1970 के दशकों में उनकी प्रसिद्धि चरम पर थी। उनके गाए गीतों की संख्या 3500 से भी अधिक है। उन्हें 2007 के प्रतिष्ठित 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' के लिए चुना गया था। भारत सरकार ने उन्हें सन 2005 में कला के क्षेत्र में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था। मन्ना डे ने अपने जीवन के 50 साल मुंबई में बिताये।

जीवन परिचय

प्रबोध चन्द्र डे उर्फ मन्ना डे का जन्म 1 मई 1920 को कोलकाता में हुआ। मन्ना डे के पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे, लेकिन मन्ना डे का रुझान संगीत की ओर था। वह इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहते थे। 'उस्ताद अब्दुल रहमान ख़ान' और 'उस्ताद अमन अली ख़ान' से उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा। मन्ना डे ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा 'के सी डे' से हासिल की।

बचपन

मन्ना डे के बचपन के दिनों का एक दिलचस्प वाकया है। उस्ताद बादल ख़ान और मन्ना डे के चाचा एक बार साथ-साथ रियाज कर रहे थे। तभी बादल ख़ान ने मन्ना डे की आवाज़ सुनी और उनके चाचा से पूछा, यह कौन गा रहा है। जब मन्ना डे को बुलाया गया तो उन्होंने कहा कि बस, ऐसे ही गा लेता हूं। लेकिन बादल ख़ान ने मन्ना डे में छिपी प्रतिभा को पहचान लिया। इसके बाद वह अपने चाचा से संगीत की शिक्षा लेने लगे।[1]

शिक्षा

मन्ना डे ने अपने बचपन की पढ़ाई एक छोटे से स्कूल 'इंदु बाबुर पाठशाला' से की। 'स्कॉटिश चर्च कॉलिजियेट स्कूल' व 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कोलकाता के 'विद्यासागर कॉलेज' से स्नातक की शिक्षा पूरी की। अपने स्कॉटिश चर्च कॉलेज के दिनों में उनकी गायकी की प्रतिभा लोगों के सामने आयी। तब वे अपने साथ के विद्यार्थियों को गाकर सुनाया करते थे और उनका मनोरंजन किया करते थे। यही वो समय था जब उन्होंने तीन साल तक लगातार 'अंतर-महाविद्यालय गायन-प्रतियोगिताओं' में प्रथम स्थान पाया। बचपन से ही मन्ना को कुश्ती, मुक्केबाजी और फुटबॉल का शौक़ रहा और उन्होंने इन सभी खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उनका काफ़ी हँसमुख छवि वाला व्यक्तित्व रहा है और अपने दोस्तों व साथियों के साथ मजाक करते रहते हैं।

मन्ना डे

परिवार

संगीत ने ही मन्ना डे को अपनी जीवनसाथी 'सुलोचना कुमारन' से मिलवाया था। 18 दिसम्बर 1953 को मन्ना डे ने केरल की सुलोचना कुमारन से विवाह किया। इनकी दो बेटियाँ हुईं। सुरोमा का जन्म 19 अक्टूबर 1956 और सुमिता का 20 जून 1958 को हुआ। दोनों बेटियां सुरोमा और सुमिता गायन के क्षेत्र में नहीं आईं। एक बेटी अमरीका में बसी है।

कैरियर

पहले वे के. सी. डे के साथ थे फिर बाद में सचिन देव बर्मन के सहायक बने। बाद में उन्होंने और भी कई संगीत निर्देशकों के साथ काम किया और फिर अकेले ही संगीत निर्देशन करने लगे। कई फ़िल्मों में संगीत निर्देशन का काम अकेले करते हुए भी मन्ना डे ने उस्ताद अमान अली और उस्ताद अब्दुल रहमान ख़ान से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेना जारी रखा।

गायन का प्रारम्भ

मन्ना डे 1940 के दशक में अपने चाचा के साथ संगीत के क्षेत्र में अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई आ गए। वर्ष 1943 में फ़िल्म 'तमन्ना' में बतौर पार्श्व गायक उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला। हालांकि इससे पहले वह फ़िल्म 'रामराज्य' में कोरस के रूप में गा चुके थे। दिलचस्प बात है कि यही एक एकमात्र फ़िल्म थी जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था। मन्ना डे की प्रतिभा को पहचानने वालों में संगीतकार शंकर जयकिशन का नाम ख़ास तौर पर उल्लेखनीय है। इस जोडी़ ने मन्ना डे से अलग-अलग शैली में गीत गवाए। उन्होंने मन्ना डे से 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम...' जैसे रुमानी गीत और 'केतकी गुलाब जूही...' जैसे शास्त्रीय राग पर आधारित गीत भी गवाए। दिलचस्प बात है कि शुरुआत में मन्ना डे ने यह गीत गाने से मना कर दिया था।[1]

पहला गाना

मन्ना डे ने 1943 की फ़िल्म "तमन्ना" से पार्श्व गायन के क्षेत्र में क़दम रखा। संगीत निर्देशन किया था कॄष्णचंद्र डे ने और मन्ना के साथ थीं सुरैया। 1950 की "मशाल" में उन्होंने एकल गीत "ऊपर गगन विशाल" गाया जिसको संगीत की मधुर धुनों से सजाया था सचिन देव बर्मन ने। 1952 में मन्ना डे ने बंगाली और मराठी फ़िल्म में गाना गाया। ये दोनों फ़िल्म एक ही नाम "अमर भूपाली" और एक ही कहानी पर आधारित थीं। इसके बाद उन्होंने पार्श्वगायन में अपने पैर जमा लिये।[2]

गायन में विभिन्नता

मन्ना डे को अपने कैरियर के शुरुआती दौर में अधिक प्रसिद्धी नहीं मिली। इसकी मुख्य वजह यह रही कि उनकी सधी हुई आवाज़ किसी गायक पर फिट नहीं बैठती थी। यही कारण है कि एक जमाने में वह हास्य अभिनेता महमूद और चरित्र अभिनेता प्राण के लिए गीत गाने को मजबूर थे। प्राण के लिए उन्होंने फ़िल्म 'उपकार' में 'कस्मे वादे प्यार वफा...' और ज़ंजीर में 'यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी...' जैसे गीत गाए। उसी दौर में उन्होंने फ़िल्म 'पडो़सन' में हास्य अभिनेता महमूद के लिए एक चतुर नार... गीत गाया तो उन्हें महमूद की आवाज़ समझा जाने लगा। आमतौर पर पहले माना जाता था कि मन्ना डे केवल शास्त्रीय गीत ही गा सकते हैं, लेकिन बाद में उन्होंने 'ऐ मेरे प्यारे वतन'..., 'ओ मेरी जोहरा जबीं'..., 'ये रात भीगी भीगी'..., 'ना तो कारवां की तलाश है'... और 'ए भाई जरा देख के चलो'... जैसे गीत गाकर आलोचकों का मुंह सदा के लिए बंद कर दिया।[2]

आत्मकथा

वर्ष 2005 में 'आनंदा प्रकाशन' ने बंगाली उनकी आत्मकथा "जिबोनेर जलासोघोरे" प्रकाशित की। उनकी आत्मकथा को अंग्रेज़ी में पैंगुइन बुक्स ने "Memories Alive" के नाम से छापा तो हिन्दी में इसी प्रकाशन की ओर से "यादें जी उठी" के नाम से प्रकाशित की। मराठी संस्करण "जिबोनेर जलासाघोरे" साहित्य प्रसार केंद्र, पुणे द्वारा प्रकाशित किया गया।[2]

वृत्तचित्र

मन्ना डे के जीवन पर आधारित "जिबोनेरे जलासोघोरे" नामक एक अंग्रेज़ी वृत्तचित्र 30 अप्रॅल 2008 को नंदन, कोलकाता में रिलीज़ हुआ। इसका निर्माण "मन्ना डे संगीत अकादमी द्वारा" किया गया। इसका निर्देशन किया डॉ. सारूपा सान्याल और विपणन का काम सम्भाला सा रे गा मा (एच.एम.वी) ने।[2]

मन्ना डे के प्रसिद्ध गीत

हिंदी के अलावा बांग्ला और मराठी गीत भी गाए हैं। मन्ना ने अंतिम फ़िल्मी गीत 'प्रहार' फ़िल्म के लिए गाया था। मन्ना दा ने हरिवंश राय बच्चन की 'मधुशाला' को भी अपनी आवाज़ दी है जो काफ़ी लोकप्रिय है। मन्ना डे के गाये कुछ प्रसिद्ध गीत निम्नलिखित हैं-

  • ये रात भीगी-भीगी (श्री 420)
  • कस्मे वादे प्यार वफा सब (उपकार)
  • लागा चुनरी में दाग़ (दिल ही तो है)
  • ज़िंदगी कैसी है पहली हाय (आनंद)
  • प्यार हुआ इकरार हुआ (श्री 420)
  • ऐ मेरी जोहरां जबी (वक़्त)
  • ऐ मेरे प्यारे वतन (काबुलीवाला)
  • पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई (मेरी सूरत तेरी आँखें)
  • यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी (ज़ंजीर)
  • इक चतुर नार करके सिंगार (पड़ोसन)
  • तू प्यार का सागर है (सीमा)। [3]

मन्ना डे की गायकी के मुरीद

रफ़ी और किशोर कुमार के साथ मन्ना डे

कुछ लोगों को प्रतिभाशाली होने के बावजूद वो मान-सम्मान या श्रेय नहीं मिलता, जिसके कि वे हकदार होते हैं। हिंदी फ़िल्म संगीत में इस दृष्टि से देखा जाए तो मन्ना डे का नाम सबसे पहले आता है। मन्ना ने जिस दौर में गीत गाए, उस दौर में हर संगीतकार का कोई न कोई प्रिय गायक था, जो फ़िल्म के अधिकांश गीत उससे गवाता था। मन्ना डे की प्रतिभा के सभी कायल थे, लेकिन सहायक हीरो, कॉमेडियन, भिखारी, साधु पर कोई गीत फ़िल्माना हो तो मन्ना डे को याद किया जाता था। मन्ना डे ठहरे सीधे-सरल आदमी, जो गाना मिलता उसे गा देते। ये उनकी प्रतिभा का कमाल है कि उन गीतों को भी लोकप्रियता मिली। [3]

  • प्रसिद्ध गीतकार प्रेम धवन ने मन्ना डे के बारे में कहा था कि 'मन्ना डे हर रेंज में गीत गाने में सक्षम है। जब वह ऊंचा सुर लगाते है तो ऐसा लगता है कि सारा आसमान उनके साथ गा रहा है, जब वो नीचा सुर लगाते है तो लगता है उसमें पाताल जितनी गहराई है और यदि वह मध्यम सुर लगाते है तो लगता है उनके साथ सारी धरती झूम रही है।' मन्ना डे केवल शब्दों को ही नहीं गाते थे, अपने गायन से वह शब्द के पीछे छिपे भाव को भी ख़ूबसूरती से सामने लाते थे। शायद यही कारण है कि प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिए मन्ना डे का चयन किया।
  • प्रसिद्ध संगीतकार अनिल विश्वास ने एक बार कहा था कि 'मन्ना डे हर वह गीत गा सकते हैं जो मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश ने गाए हों। लेकिन इनमें कोई भी मन्ना डे के हर गीत को नहीं गा सकता।'
  • आवाज़ की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफ़ी ने एक बार कहा था कि 'आप लोग मेरे गीत सुनते हैं, लेकिन यदि मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूंगा कि मैं मन्ना डे के गीतों को ही सुनता हूं।'
  • महेंद्र कपूर ने कहा 'हम सभी उन्हें आज भी मन्ना दा के नाम से ही पुकारते हैं। शास्त्रीय गायकी में उनका कोई सानी नहीं। निर्माता को जब भी शास्त्रीय गायक की ज़रूरत होती थी, वे सबसे पहले गीत मन्ना दा से ही गवाना चाहते थे। यह अलग बात है कि दादा बहुत ज्यादा गीत नहीं गाते थे। मुझे भी उनके साथ बहुत ज्यादा गीत गाने का अवसर नहीं मिला, लेकिन जो भी गाया, सभी हिट हुए।'

सम्मान और पुरस्कार

मन्ना डे ने अपने पांच दशक के कैरियर में लगभग 3500 गीत गाए। भारत सरकार ने मन्ना डे को संगीत के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान के लिए पद्म भूषण और पद्मश्री सम्मान से नवाजा। इसके अलावा 1969 में 'मेरे हज़ूर' और 1971 में बांग्ला फ़िल्म 'निशि पद्मा' के लिए 'सर्वश्रेष्ठ गायक' का राष्ट्रीय पुरस्कार भी उन्हें दिया गया। उन्हें मध्यप्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा और बांग्लादेश की सरकारों ने भी विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा है।[4] मन्ना डे के संगीत के सुरीले सफर में एक नया अध्याय तब जुड़ गया जब फ़िल्मों में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें फ़िल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

निधन

मन्ना डे का लंबी बीमारी के बाद बंगलोर शहर के एक अस्पताल में 24 अक्टूबर 2013 को सुबह तड़के निधन हो गया। 94 वर्षीय मन्ना डे को पांच माह पहले सांस संबंधी समस्याओं की वजह से नारायण हृदयालय में भर्ती कराया गया था। उन्होंने तड़के 3 : 50 मिनट पर अंतिम सांस ली। उनके परिवार के सदस्यों ने बताया कि अंतिम समय में मन्ना डे के पास उनकी पुत्री शुमिता देव और उनके दामाद ज्ञानरंजन देव मौजूद थे। मन्ना डे की दो बेटियां हैं। एक बेटी अमेरिका में रहती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 सबसे जुदा है मन्ना डे की गायकी का अंदाज़ (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) लाइव हिन्दुस्तान डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 26 अप्रॅल, 2011।
  2. 2.0 2.1 2.2 2.3 यादें जी उठी....मन्ना डे के संग (हिंदी) आवाज़ ब्लॉग। अभिगमन तिथि: 22 अप्रॅल, 2012।
  3. 3.0 3.1 मन्ना डे : तू प्यार का सागर है (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 26 अप्रॅल, 2011।
  4. रफी भी मुरीद थे मन्ना डे की गायिकी के (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 22 अप्रॅल, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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