महात्मा गाँधी तथा सत्याग्रह
महात्मा गाँधी तथा सत्याग्रह
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पूरा नाम | मोहनदास करमचंद गाँधी |
अन्य नाम | बापू, महात्मा जी |
जन्म | 2 अक्तूबर, 1869 |
जन्म भूमि | पोरबंदर, गुजरात |
मृत्यु | 30 जनवरी, 1948 |
मृत्यु स्थान | नई दिल्ली |
मृत्यु कारण | हत्या |
अभिभावक | करमचंद गाँधी, पुतलीबाई |
पति/पत्नी | कस्तूरबा गाँधी |
संतान | हरिलाल, मनिलाल, रामदास, देवदास |
स्मारक | राजघाट (दिल्ली), बिरला हाउस (दिल्ली) आदि। |
पार्टी | काँग्रेस |
शिक्षा | बैरिस्टर |
विद्यालय | बंबई यूनिवर्सिटी, सामलदास कॉलेज |
संबंधित लेख | गाँधी युग, असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन, दांडी मार्च, व्यक्तिगत सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, ख़िलाफ़त आन्दोलन |
सन 1914 में गाँधी जी भारत लौट आये। देशवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया और उन्हें महात्मा पुकारना शुरू कर दिया। उन्होंने अगले चार वर्ष भारतीय स्थिति का अध्ययन करने तथा स्वयं को, उन लोगों को तैयार करने में बिताये जो सत्याग्रह के द्वारा भारत में प्रचलित सामाजिक व राजनीतिक बुराइयों को हटाने में उनका अनुगमन करना चाहते थे। इस दौरान गाँधी जी मूक पर्यवेक्षक नहीं रहे। 1915 से 1918 तक के काल में गाँधी जी भारतीय राजनीति की परिधि पर अनिश्चितता से मंडराते रहे। इस काल में उन्होंने किसी भी राजनीतिक आंदोलन में शामिल होने से इंकार कर दिया।
सत्याग्रह आन्दोलन
प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन के प्रयासों, यहाँ तक कि भारत की ब्रिटिश फ़ौज में सिपाहियों की भर्ती का भी समर्थन किया। साथ ही वह ब्रिटिश अधिकारियों की उद्दंडता भरी हरकतों की आलोचना भी करते थे तथा उन्होंने बिहार व गुजरात के किसानों के उत्पीड़न का मामला भी उठाया। फ़रवरी 1919 में रॉलेक्ट एक्ट पर, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को बिना मुक़दमा चलाए जेल भेजने का प्रावधान था, उन्होंने अंग्रेज़ों का विरोध किया। गाँधी जी ने सत्याग्रह आन्दोलन की घोषणा की।
इसके परिणामस्वरूप एक ऐसा राजनीतिक भूचाल आया, जिसने 1919 के बसंत में समूचे उपमहाद्वीप को झकझोर दिया। हिंसा भड़क उठी, जिसके बाद ब्रिटिश नेतृत्व में सैनिकों ने अमृतसर में जलियांवाला बाग़ की एक सभा में शामिल लोगों पर गोलियाँ बरसाकर लगभग 400 भारतीयों का मार डाला और मार्शल लॉ लगा दिया गया। इसने गाँधी जी को अपना रुख़ बदलने के लिए प्रेरित किया, लेकिन एक साल के भीतर ही वह एक बार फिर उग्र तेवर में आ गए। उनका कहना था कि ब्रिटिश अदालतों तथा स्कूल और कॉलेजों का बहिष्कार करें तथा सरकार के साथ असहयोग करके उसे पूरी तरह अपंग बना दें।
गाँधी जी ने वर्ष 1917-1918 के दौरान बिहार के चम्पारण नामक स्थान के खेतों में पहली बार भारत में सत्याग्रह का प्रयोग किया। यहाँ अकाल के समय ग़रीब किसानों को अपने जीवित रहने के लिए ज़रूरी खाद्य फ़सलें उगाने के स्थान पर नील की खेती करने के लिए ज़ोर डाला जा रहा था। उन्हें अपनी पैदावार का कम मूल्य दिया जा रहा था और उन पर भारी करों का दबाव था। गाँधी जी ने उस गांव का विस्तृत अध्ययन किया और जमींदारों के विरुद्ध विरोध का आयोजन किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनके कारावास में डाले जाने के बाद और अधिक प्रदर्शन किए गए। जल्दी ही गाँधी जी को छोड़ दिया गया और जमींदारों ने किसानों के पक्ष में एक करारनामे पर हस्ताक्षर किए, जिससे उनकी स्थिति में सुधार आया।
मैं तो एक ऐसे राष्ट्रपति की कल्पना करता हूँ जो नाई या मोची का धन्धा करके अपना निर्वाह करता हो और साथ ही राष्ट्र की बागडोर भी अपने हाथों में थामे हुए हो। -महात्मा गाँधी
इस सफलता से प्रेरणा लेकर महात्मा गाँधी ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए किए जाने वाले अन्य अभियानों में सत्याग्रह और अहिंसा के विरोध जारी रखे, जैसे कि 'असहयोग आंदोलन', 'नागरिक अवज्ञा आंदोलन', 'दांडी यात्रा' तथा 'भारत छोड़ो आंदोलन', गाँधी जी के प्रयासों से अंत में भारत को 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता मिली।
रॉलेक्ट एक्ट क़ानून
गाँधी जी के इस आह्वान पर रॉलेक्ट एक्ट क़ानून के विरोध में बम्बई तथा देश के सभी प्रमुख नगरों में 30 मार्च 1919 को और 6 अप्रैल 1919 को हड़ताल हुई। हड़ताल के दिन सभी शहरों का जीवन ठप्प हो गया। व्यापार बंद रहा और अंग्रेज़ अफ़सर असहाय से देखते रहे। इस हड़ताल ने असहयोग के हथियार की शक्ति पूरी तरह प्रकट कर दी। सन् 1920 में गाँधी जी कांग्रेस के नेता बन गये और उनके निर्देश और उनकी प्रेरणा से हज़ारों भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार के साथ पूर्ण सम्बन्ध-विच्छेद कर लिया। हज़ारों असहयोगियों को ब्रिटिश जेलों में ठूँस दिया गया और लाखों लोगों पर सरकारी अधिकारियों ने बर्बर अत्याचार किये।
ब्रिटिश सरकार के इस दमनचक्र के कारण लोग अहिंसक न रह सके और कई स्थानों पर हिंसा भड़क उठी। हिंसा का इस तरह भड़क उठना गाँधी जी को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने स्वीकार किया कि अहिंसा के अनुशासन में बाँधे बिना लोगों को असहयोग आंदोलन के लिए प्रेरित कर उन्होंने 'हिमालय जैसी भूल की है' और यह सोचकर उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। अहिंसक असहयोग आंदोलन के फलस्वरूप जिस स्वराज्य को गाँधी जी ने एक वर्ष के अंदर लाने का वादा किया था, वह नहीं आ सका। फिर भी लोग आंदोलन की विफलता की ओर ध्यान नहीं देना चाहते थे, क्योंकि असलियत में देखा जाए तो इस अहिंसक असहयोग आंदोलन को जबरदस्त सफलता हासिल हुई। उसने भारतीयों के मन से ब्रिटिश तोपों, संगीनों और जेलों का ख़ौफ़ निकालकर उन्हें निडर बना दिया, जिससे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिल गयी। भारत में ब्रिटिश शासन के दिन अब इने-गिने रह गये। फिर भी अभी संघर्ष कठिन और लम्बा था। सन् 1922 में गाँधी जी को राजद्रोह के अभियोग में गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर मुक़दमा चलाया गया और एक मधुरभाषी ब्रिटिश जज ने उन्हें छह वर्ष की क़ैद की सज़ा दी। सन् 1924 में अपेंडिसाइटिस की बीमारी की वजह से उन्हें रिहा कर दिया गया।
महात्मा गाँधी तथा सत्याग्रह |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- महात्मा गाँधी साक्षात्कार विडियो
- महात्मा गाँधी भाषण विडियो
- डाक टिकटों में गाँधी
- डाक-टिकटों पर भी छाये गाँधी जी
- डाक टिकटों में मोहन से महात्मा तक का सफर
- गाँधी दर्शन की प्रासंगिकता - प्रोफ्सर महावीर सरन जैन
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