महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 42 श्लोक 15-28

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द्विचत्वारिंश (42) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: द्विचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 15-28 का हिन्दी अनुवाद

कुन्ती कुमार अर्जुन अत्यन्त बलशाली,महान् अस्त्रधारी,समुद्र के समान दुर्लंघ्य,भयंकर,बाण समूहों की धारा बहाने वाले और बहुसंख्यक भूपालों को डुबो देने वाले हैं;तथापि मैं समुद्र को रोकने वाली तट भूमि के समान अपने बाणों द्वारा अर्जुन को बल पूर्वक रोकूँगा और उनका वेग सहन करूँगा। आज मैं युद्ध में जिनके समान इस समय किसी दूसरे मनुष्य को नहीं मानता,जो हाथ में धनुष लेकर रण भूमि में देवताओं और असुरों को भी परास्त कर सकते हैं,उन्हीं वीर अर्जुन के साथ मेरा अत्यन्त घोर युद्ध होगा;उसे तुम देखना। अत्यन्त मानी पाण्डुपुत्र अर्जुन युद्ध की ठच्दा से महान् दिव्यास्त्रों द्वारा मेरे सामने आयेंगे। उस समय मैं अपने अस्त्रों द्वारा उनके अस्त्र का निवारण करके युद्ध स्थल में उत्तम बाणों से कुन्ती पुत्र अर्जुन को मार गिराऊँगा। सहस्त्रों किरणों वाले सूर्य के सदृश प्रकाशित हो सम्पूर्ण दिशाओं को ताप देते हुए भयंकर वीर अर्जुन को मैं अपने बाणों द्वारा उसी प्रकार अत्यन्त आच्छादित कर दूँगा,जैसे मेघ आन्धकार नाशक सूर्यदेव को ढक देते हैं। जैसे प्रलयकाल का मेघ इस जगत् को दग्ध करने वाले तेजस्वी एवं प्रज्वलित धूममयी शिखा वाले संवर्तक अग्नि को बुझा देते है,उसी प्रकार मैं मेघ बनकर बाणों की वर्षा द्वारा युद्ध में अग्निरूपी अर्जुन को शान्त कर दूँगा। तीखे दाढ़ों वाले विषधर सर्प के समान दुर्धर्ष,अप्रमेय,अग्नि के समान प्रभावशाली तथा क्रोध से प्रज्वलित अपने महान् शत्रु कुन्तीपुत्र अर्जुन को मैं भल्लों द्वारा शान्त कर दूँगा। वृक्षों को तोड़-उखाड़ देने वाली वायु के समान प्रमथनशील,बलवान्,प्रहारकुशल,तोड़ फोड़ करने वाले तथा अमर्षशील क्रुद्ध अर्जुन का वेग आज मैं युद्ध स्थल में हिमालय पर्वत के समान अचल रहकर सहन करूँगा। रथ के मार्गों पर विचरने में कुशल,शक्तिशाली,समरांगण में सदा महान् भार वहन करने वाले,संसार के समस्त धनुर्धरों में श्रेष्ठ,प्रमुख वीर अर्जुन का आज युद्ध स्थल में डटकर सामना करूँगा। युद्ध में जिनके समान धनुर्धर मैं दूसरे किसी मनुष्य को नहीं मानता,जिन्होंने इस सारी पृथ्वी पर विजय पायी है,आज समरांगण उन्हीं से भिड़कर मैं बलपूर्वक युद्ध करूँगा। जिन सव्यसाची अर्जुन ने खाण्डव वन में देवताओं सहित समस्त प्राणियों को जीत लिया था,उनके साथ मेरे सिवा दूसरा कौन मनुष्य,जो अपने जीवन की रक्षा रिना चाहता हो,युद्ध की इच्छा करेगा। श्वेतवाहन अर्जुन मानी,अस्त्रवेत्ता,सिद्धहस्त,दिव्यास्त्रों के ज्ञाता और शत्रुओं को मथ डालने वाले हैं। आज मैं अपने पैने बाणों द्वारा उन्हीं अतिरथी वीर अर्जुन का मस्तक धड़ से काट लूँगा। शल्य ! मैं रणभूमि में मृत्यु अथवा विजय को सामने रखकर इन धनंजय के साथ युद्ध करूँगा। मेरे सिवा दूसरा कोई मनुष्य ऐसा नहीं है,जो इन्द्र के समान पराक्रमी पाण्डुपुत्र अर्जुन के साथ एकमात्र रथ के द्वारा युद्ध कर सके। मैं इस युद्ध स्थल में क्षत्रियों के समाज में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ पाण्डुपुत्र अर्जुन के उत्साह का वर्णन कर सकता हूँ। तुम्हारे मन में तो मूढ़ता भरी हुई है। तुम मूर्ख हो। फिर तुमने मुझसे अर्जुन के पुरुषार्थ का हठपूर्वक वर्णन क्यों किया है ? जो अप्रिय,निष्ठुर,क्षुद्र हृदय और क्षमाशून्य मनुष्य क्षमाशील पुरुषों की निन्दा करता है;ऐसे सौ-सौ मनुष्यों का मैं वध कर सकता हूँ;परंतु कालयोग से क्षमा भाव द्वारा मैं यह सब कुछ सह लेता हूँ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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