मुग़लकालीन भाषा साहित्य
अखिल भारतीय स्तर पर सरकारी काम-काज तथा अन्य बातों के लिए फ़ारसी तथा संस्कृत भाषाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका तथा भक्ति आन्दोलन के प्रभाव से प्रान्तीय भाषाओं का विकास हो चुका था। प्रान्तीय भाषाओं के विकास का एक और कारण स्थानीय तथा प्रान्तीय राजाओं द्वारा दिया गया संरक्षण तथा प्रोत्साहन था। सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में ये धाराएँ जारी रहीं। अकबर के काल तक उत्तरी भारत में फ़ारसी के अलावा स्थानीय भाषा (हिंदवी) में काग़ज़ात को रखना बन्द ही कर दिया गया। इसके बावजूद सत्रहवीं शताब्दी में दक्कन के राज्यों के पतन तक उनमें स्थानीय भाषाओं में दस्तावेज़ों को रखने की परम्परा जारी रही।
फ़ारसी भाषा का प्रचलन
क्रमांक | पुस्तक | लेखक |
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1. | बाबरनामा | बाबर |
2. | तारीख़-ए-अलफ़ी | मुल्ला दाउद |
3. | आइना-ए-अकबरी, अकबरनामा | अबुल फज़ल |
4. | मुंतख़ाब अत तवारीख़ | बदायूँनी |
5. | तबकात-ए-अकबरी | निजामुद्दीन अहमद |
6. | हुमायूँनामा | गुलबदन बेगम |
7. | तारीख़-ए-शेरशाही | अब्बास खाँ सरवानी |
8. | मखजन अफ़ग़ानी | नियामतुल्ला |
9. | पादशाहनामा | अब्दुल हमीद लाहौरी |
10. | फ़तवा-ए-आलमगीरी | औरंगज़ेब |
11. | आलमगीरनामा | मिर्ज़ा मुहम्मद काजिम शिराजी |
12. | खुलासा-उल-तवारीख़ | सुआन राय खत्री |
13. | फ़ुतुहात-ए-आलमगीरी | ईश्वरदास |
14. | नुस्खा-ए-दिलकुशा | मुहम्म्द साफी |
15. | पद्मावत | मलिक मुहम्मद जायसी |
16. | सूरसागर | सूरदास |
17. | रामचरितमानस | तुलसीदास |
18. | मासर-ए-जहाँगीरी | ख्वाजा कामगार |
19. | शाहजहाँनामा | इनायत ख़ान |
20. | मकज्जम-ए-अफ़ग़ानी | नियामत उल्ला |
21. | प्रेम वाटिका | रसखान |
22. | तुजुक-ए-बाबरी | बाबर |
फ़ारसी गद्य तथा पद्य अकबर के शासनकाल में अपने शिखर पर थे। उस काल के महान् लेखक और विद्वान् तथा इतिहासकार अबुल फ़ज़ल ने गद्य की ऐसी शैली प्रचलित की, जिसका कई पीढ़ियों ने अनुसरण किया। उस काल का प्रमुख कवि फ़ैज़ी, अबुल फ़ज़ल का भाई था, और उसने अकबर के अनुवाद विभाग में बड़ी सहायता की। उसके निरीक्षण में महाभारत का अनुवाद भी किया गया। उस काल के फ़ारसी के दो अन्य प्रमुख कवि 'उत्बी' तथा 'नज़ोरी' थे। इनका जन्म ईरान में हुआ था, पर ये उन विद्वानों और कवियों में थे, जो बड़ी संख्या में उस काल में ईरान से भारत आए थे और जिन्होंने मुग़ल दरबार को इस्लामी जगत् का एक प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र बना दिया था। फ़ारसी साहित्य के विकास में हिन्दुओं ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस काल में साहित्यिक तथा ऐतिहासिक कृतियों के अलावा फ़ारसी भाषा के कई प्रसिद्ध विश्वकोष भी तैयार किए गए।
इस काल में यद्यपि संस्कृत की कोई मूल अथवा महत्त्वपूर्ण कृति की रचना नहीं की गई, इस भाषा में रचित कृतियों की संख्या काफ़ी बड़ी थी। पहले की तरह दक्षिण तथा पूर्वी भारत में अधिकतर कृतियाँ स्थानीय राजाओं के संरक्षण में रची गईं, पर कुछ कृतियाँ उन ब्राह्मणों की थीं, जो सम्राटों के अनुवाद विभाग में नियुक्त थे।
संगीतमय रचना तथा अनुवाद
इस काल में क्षेत्रीय भाषाओं में परिपक्वता आई तथा उत्कृष्ट संगीतमय काव्य की रचना हुई। बंगाली, उड़िया, हिन्दी, राजस्थानी तथा गुजराती भाषाओं के काव्य में इस काल में राधा-कृष्ण तथा कृष्ण और गोपीयों की लीला तथा भागवत की कहानियों का काफ़ी प्रयोग किया गया। राम पर आधारित कई भक्ति गीतों की रचना की गई तथा रामायण और महाभारत का क्षेत्रीय भाषाओं, विशेषकर उनमें, जिनमें इनका अनुवाद पहले नहीं हुआ था, में अनुवाद किया गया। कुछ फ़ारसी कृतियों का भी अनुवाद किया गया। इस कार्य में हिन्दू तथा मुसलमान, दोनों ने योगदान दिया। अलाओल ने बंगला में अपनी रचनाएँ भी कीं और साथ में मुसलमान सूफ़ी सन्त द्वारा रचित हिन्दी काव्य 'पद्मावत' का अनुवाद भी किया। इस काव्य में मलिक मुहम्मद जायसी ने अलाउद्दीन ख़िलजी के चित्तौड़ अभियान को आधार बनाकर आत्मा तथा परमात्मा के सम्बन्ध में सूफ़ी विचारों, और माया के बारे में हिन्दू शास्त्रों के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया।
ब्रज भाषा को प्रोत्साहन
मध्यकालीन भारत में मुग़ल सम्राटों तथा हिन्दू राजाओं ने आगरा तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषा ब्रज को भी प्रेत्साहन प्रदान किया। अकबर के काल से मुग़ल राजदरबार में हिन्दू कवि भी रहने लगे। एक प्रमुख मुग़ल सरदार अब्दुलरहीम ख़ान-ए-ख़ाना ने अपने भक्तिकाव्य में मानवीय सम्बन्धों के बारे में फ़ारसी विचारों का भी समन्वय किया। इस प्रकार फ़ारसी तथा हिन्दी की साहित्यिक परम्पराएँ एक-दूसरे से प्रभावित हुईं। इस काल के सबसे प्रमुख हिन्दी कवि तुलसीदास थे। जिन्होंने उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों में बोले जाने वाली अवधी भाषा में एक महाकाव्य की रचना की, जिसके नायक राम थे। उन्होंने एक ऐसी जाति व्यवस्था का अनुमोदन किया, जिसमें जाति, जन्म के आधार पर नहीं, वरन् मानव के व्यक्तिगत गुणों पर आधारित थी। तुलसीदास वास्तव में मानवतावादी कवि थे। जिन्होंने पारिवारिक मूल्यों को महत्व दिया और यह बताया कि मुक्ति का मार्ग हर व्यक्ति के लिए सम्भव है और यह मार्ग राम के प्रति पूर्ण भक्ति है।
एकनाथ का कथन
दक्षिण भारत में मलयालम में भी साहित्यिक परम्परा आरम्भ हुई। एकनाथ और तुकाराम ने मराठी भाषा को शिखर पर पहुँचा दिया। मराठी भाषा की महत्ता बताते हुए एकनाथ कहते हैं- "यदि संस्कृत ईश्वर की देन है, तो क्या प्राकृत चोर तथा उच्चकों ने दी है। यह बातें मात्र घमंड और भ्रम पर आधारित हैं। ईश्वर किसी भी भाषा का पक्षपाती नहीं। इसके लिए संस्कृत तथा प्राकृत एकसमान हैं। मेरी भाषा मराठी के माध्यम से उच्च से उच्च विचार व्यक्त किए जा सकते हैं और यह आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण है।"
- इस उक्ति में क्षेत्रीय भाषाओं के रचनाकारों का गर्व स्पष्ट है तथा इसमें इन भाषाओं में लिखने वालों का आत्मविश्वास तथा उनका गर्व भी परिलक्षित होता है। सिक्ख गुरुओं की रचनाओं ने पंजाबी भाषा में नये प्राण फूँक दिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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