मैनाक

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मैनाक पुराणानुसार भारतवर्ष के एक पर्वत का नाम। जब श्रीराम के भक्त हनुमान माता सीता की खोज में बिना विश्राम किए आकाश मार्ग से जा रहे थे, तब समुद्र ने अपने भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से निवेदन किया था कि वह ऊपर उठकर हनुमान को अपनी चोटी पर विश्राम करने के लिए कहे।

  • देवराज इंद्र ने पर्वतों के पर काट डाले थे, इससे डर कर मैनाक समुद्र के भीतर जाकर छिप गया था।[1]
  • मैनाक मेना के गर्भ से उत्पन्न हिमालय का पुत्र कहा जाता है और क्रौंच पर्वत इसका पुत्र है।
  • श्राद्ध आदि कर्मों के लिए मैनाक पर्वत अति पवित्र समझा गया है।[2]
  • सीता की खोज में जा रहे हनुमान को आकाश में बिना विश्राम लिए लगातार उड़ते देखकर समुद्र ने सोचा कि यह प्रभु श्रीराम का कार्य पूरा करने के लिए जा रहे हैं। किसी प्रकार थोड़ी देर के लिए विश्राम दिलाकर इनकी थकान दूर करनी चाहिए। अत: समुद्र ने अपने जल के भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से कहा- "मैनाक! तुम थोड़ी देर के लिए ऊपर उठकर अपनी चोटी पर हनुमान को बिठाकर उनकी थकान दूर करो।"
  • समुद्र का आदेश पाकर मैनाक प्रसन्न होकर हनुमान को विश्राम देने के लिए तुरन्त उनके पास आ पहुँचा। उसने उनसे अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम के लिए निवेदन किया। उसकी बातें सुनकर हनुमान ने कहा- "मैनाक! तुम्हारा कहना ठीक है, लेकिन भगवान श्रीरामचंद्र जी का कार्य पूरा किए बिना मेरे लिए विश्राम करने का कोई प्रश्र ही नहीं उठता।" ऐसा कह कर उन्होंने मैनाक को हाथ से छूकर प्रणाम किया और आगे चल दिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संपादन: राणा प्रसाद शर्मा |पृष्ठ संख्या: 433 |
  2. (भागवतपुराण 5.19.16; ब्रह्माण्डपुराण 2.13.34-5; मत्स्यपुराण 13.6; 121.72; वायुपुराण 30.32; 45.90)

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