येसूबाई

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येसूबाई छत्रपति शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र शम्भुजी की रानी थी। 'शाहू', जिसे 'शिवाजी द्वितीय' के नाम से भी जाना जाता है, शम्भुजी और येसूबाई का पुत्र था।

  • येसूबाई का बचपन, विवाह, शिक्षा, युवराज्ञी तथा महारानी जीवन, मुग़लों के बंदीवास का जीवन, राजमाता रूप सभी प्रेरणादायी हैं। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था, परंतु उनके कार्यकर्तृत्व को इतिहास ने दर्ज नहीं किया।[1]
  • 'महाराष्ट्र केसरी' के नाम से प्रसिद्ध छत्रपति शिवाजी महाराजा के संस्कारों में येसूबाई परिपूर्ण बनी थीं।
  • वे सुविद्य, सुसंस्कृत, कर्तव्यदक्ष तथा राजनीति कुशल महान् महारानी रहीं।
  • मराठा शासन में 1680 ई. से 1730 ई. तक के अत्यंत संवेदनशील काल में येसूबाई का योगदान महत्वपूर्ण रहा था।
  • शिवाजी के संस्कारों में जिसका व्यक्तित्व गठित तथा विकसित हुआ था, वे येसूबाई अद्वितीय व्यक्तित्व से सम्पन्न थीं।
  • येसूबाई के जीवन में अनेक संकट आए। उन्हें अनेक अवरोधों का सामना करना पड़ा। इस राजघराने की किसी भी स्त्री का जीवन येसूबाई के जीवन जैसा संघर्षपूर्ण नहीं रहा।
  • मराठों की यह रानी लगभग तीस वर्षों तक शत्रु के कब्जे में रहीं, परंतु उन्होंने बड़े धीरज तथा दृढ़ प्रवृत्ति से उस कठिन कालावधि का सामना किया।
  • इतिहास में येसूबाई के जीवन से तुलना करने वाला कोई व्यक्तित्व नहीं मिलता। उन्होंने भोंसले घराने की स्नुषा होने का सम्मान रखा। उनका व्यक्तित्व असाधारण रहा।
  • बा.सी. बेंद्रे ने "छत्रपति संभाजी महाराजा" ग्रंथ में कहा है- "वीर स्नुषा, वीर कन्या ,वीर पत्नी तथा वीर माता के रूप में येसूबाई का कार्य और कर्तृत्व बहुत महान् है। राजनीति में वह इतनी कुशल स्त्री हो गयी कि बादशाह औरंगज़ेब ने भी उनके कार्य का गौरव किया है।"[2]
  • मराठी में महारानी येसूबाई पर केवल दो ही साहित्यिक कृतियाँ-जीवनियाँ लिखी गयी हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महारानी येसूबाई की ऐतिहासिक तथा साहित्यिक प्रतिमा (हिन्दी) रिसर्च गेट। अभिगमन तिथि: 13 जनवरी, 2015।
  2. 1960

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