राजगृह
राजगृह | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- राजगृह (बहुविकल्पी) |
राजगृह अथवा राजगीर बिहार में नालंदा ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध शहर एवं अधिसूचित क्षेत्र है। यह कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था, जिससे बाद में मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। राजगीर जिस समय मगध की राजधानी थी, उस समय इसे 'राजगृह' के नाम से जाना जाता था। मथुरा से लेकर राजगृह तक महाजनपद का सुन्दर वर्णन बौद्ध ग्रंथों में प्राप्त होता है। मथुरा से यह रास्ता वैरंजा, सोरेय्य, संक़िस्सा , कान्यकुब्ज होते हुए प्रयाग प्रतिष्ठानपुर जाता था, जहाँ पर गंगा पार करके वाराणसी पहुँचा जाता था। माना जाता है कि भगवान महावीर स्वामी ने वर्षा ऋतु में राजगृह में सर्वाधिक समय व्यतीत किया था। यहाँ प्रथम विश्व बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था। यहाँ जैन व हिन्दुओं के अनेक पवित्र धार्मिक स्थल हैं।
पवित्र स्थल
नालंदा से 19 किमी दूर राजगीर हिन्दू, बौद्ध एवं जैन धर्मों का पवित्र स्थल है, जो प्राचीनकाल में मगध राज्य की राजधानी था और जिसके ध्वंसावशेष यहाँ आज भी विद्यमान है पाटलिपुत्र की स्थापना से पूर्व राजगीर अपने उत्कर्ष के शिखर पर था, जहाँ खण्डहरों के रूप में क़िला, रथों के पथ, स्नानागार, स्तूप और महल मौजूद हैं।
- भगवान बुद्ध ने अपने जीवन के अनेक वर्ष यहाँ व्यतीत किए थे।
- भगवान महावीर ने अपना प्रथम प्रवचन राजगीर के विपुलागिरि नामक स्थान पर प्रारम्भ किया था।
- मुसलमान फ़कीर मख़दूम शाह ने भी इसी स्थान पर साधना की थी, जहाँ उनकी एक मज़ार स्थापित की गई है।
- 2200 फीट लम्बे इस रज्जुमार्ग में 114 कुर्सियाँ हैं।
- राजगीर की सुन्दर घाटी में जापान द्वारा निर्मित आकाशीय रज्जुपथ (रोप वे) की व्यवस्था, जिससे गृद्धकूट पर्वत से रत्नागिरि पर्वत तक आ-जा सकते हैं।
स्थापना
बुद्ध के समकालीन मगध नरेश बिंबिसार ने शिशुनाग अथवा हर्यक वंश के नरेशों की पुरानी राजधानी गिरिव्रज को छोड़कर नई राजधानी उसके निकट ही बसाई थी। पहले गिरिव्रज के पुराने नगर से बाहर उसने अपने प्रासाद बनवाए थे जो राजगृह के नाम से प्रसिद्ध हुए। पीछे अनेक धनिक नागरिकों के बस जाने से राजगृह के नाम से एक नवीन नगर ही बस गया। गिरिव्रज में महाभारत के समय में जरासंध की राजधानी भी रह चुकी थी। राजगृह के निकट वन में जरासंध की बैठक नामक एक बारादरी स्थित है जो महाभारत कालीन ही बताई जाती है। महाभारत वनपर्व[1] में राजगृह का उल्लेख है जिससे महाभारत का यह प्रंसग बौद्धकालीन मालूम होता है।
महाभारत काल में राजगृह तीर्थस्थान के रूप में माना जाता था। आगे के प्रसंग से यह भी सूचित होता है कि मणिनाग तीर्थ राजगृह के अन्तर्गत था। यह संभव है कि उस समय राजगृह का बौद्ध जातकों में कई बार उल्लेख है। मंगल जातक [2] में उल्लेख है कि राजगृह मगध देश में स्थित था। राजगृह के वे स्थान जो बुद्ध के समय में विद्यमान थे और जिनसे उनका संबद्ध रहा था, एक पाली ग्रंथ में इस प्रकार गिनाए गए हैं-
- गृध्रकूट
- गौतम-न्यग्रोध
- चौर प्रपात
- सप्तपर्णिगुहा
- काल शिला शीतवन
- सर्पशौंडिक प्राग्भार
- तपोदाराम
- वेणुवनस्थित कलंदक
- तड़ाक
- जीवन का आम्रवन
- मर्दकुक्षि
- मृगवन।
इनमें से कई स्थानों के खंडहर आज भी देखे जा सकते हैं। बुद्धचरित [3] में गौतम का गंगा को पार करके राजगृह में जाने का वर्णन है।
- जैन ग्रंथ सूत्र कृतांग में राजगृह का संपन्न, धनवान और सुखी नर-नारियों के नगर के रूप में वर्णन है।
- एक अन्य जैन सूत्र, अंतकृत दशांग में राजगृह के पुष्पोद्यानों का उल्लेख है। साथ ही यक्ष मुदगरपानि के मंदिर की भी वहीं स्थिति बताई गई है। भास रचित स्वप्नवासवदत्ता' नामक नाटक में राजगृह का इस तरह उल्लेख है-
' ब्रह्मचारी, भी श्रूयताम्। राजगृहतोअस्मि। श्रुतिविशेषणार्थ वत्सभूमौ लावाणकं नाम ग्रामस्तत्रोषितवानस्मि'।
- युवानच्वांग ने भी राजगृह में कई स्थानों का वर्णन किया है जिनसे गौतम बुद्ध का सम्बंध बताया गया है।
- वाल्मीकि रामायण में गिरिव्रज की पांच पहाड़ियों का तथा सुमागधी नामक नदी का उल्लेख है -
"एषा वसुमती नाम वसोस्तस्य महात्मनः एतेशैलवराः पंच प्रकाशन्ते समंततः।
सुमागधीनदी रम्या मागधान् विश्रुताअययौपंचानां शैलमुख्यानां मध्ये मालेव शोभते।"
- इन पहाड़ियों के नाम महाभारत में ये है [4] -
- पांडर
- विपुल
- वाराहक
- चैत्यक
- मांतग
- पालि साहित्य में इन्हें वेभार, पांडव, वेपुल्ल, गिझकूट और इसिगिलि कहा गया है, किंतु महाभारत में इन्हीं पहाड़ियों को निम्न नाम से जाना जाता है-
- विपुल
- वराह
- वृषभ
- ॠषिगिरि
- चैत्यक
- किंतु महाभारत सभापर्व में इन्हीं पहाड़ियों को विपुल, वराह, वृषभ, ॠषिगिरि तथा चैत्यक कहा गया है। [5]
- इनके वर्तमान नाम ये हैं-
- वैभार
- विपुल
- रत्न
- छत्ता
- सोनागिरि
- जैन कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने राजगृह में 14 वर्षकाल बिताए थे।
महोत्सव
प्रतिवर्ष 24 से 26 अक्टूबर तक राजगीर महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें मगध के इतिहास की झलक गीत, संगीत और नृत्य के माध्यम से प्रख्यात कलाकारों द्वारा प्रस्तुत की जाती है, जिसे देश विदेश के हज़ारों पर्यटक पहुँचते हैं।
राजगीर की पहाड़ियाँ
राजगीर की पहाड़ियाँ विश्व प्रसिद्ध है। पहाड़ी, 388 मीटर, मध्य बिहार राज्य, यह दक्षिण गंगा के मैदान के विस्तार को भंग करती है और जलोढ़ मिट्टी के समुद्र में द्वीप की तरह प्रकट होती है। स्फटिक, क्वार्टज शैल खंडों से बनी यह पहाड़ी दक्षिण-पश्चिमी दिशा में मगरमच्छ के मुँह की तरह और अलियानी घाटी उसकी जीभ की तरह निकली हुई है।
पर्यटन
राजगीर गर्म झरनों के लिए जाना जाता है। यह वनाच्छादित भी है और इसके गर्म पानी के सोते आसपास के खुशनुमा क्षेत्रों का आनन्द उठाने वाले पर्यटकों के लिए मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। शीतकाल में भ्रमण और स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। यह हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के लिए ऐतिहासिक और धार्मिक केन्द्र भी है।
विशेषता
- पहाड़ी पर समानान्तर कटक मिलते हैं, राजगीर गाँव के दक्षिण में कटकों के बीच स्थित घाटी में राजगृह (राजकीय आवास) स्थित है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह महाभारत में वर्णित मगध के पौराणिक राजा जरासंध का आवास था।
- पहाड़ियों की चोटी पर 40 किलोमीटर के दायरे में बाहरी प्राचीरें देखी जा सकती हैं। ये लगभग पाँच मीटर मोटे और बिना तराशे विशाल पत्थरों से बनी है। ये भग्नावशेष दीवारें सामान्यतः छठी शताब्दी ई. पू. की हैं। एक महत्त्वपूर्ण बौद्ध और जैन तीर्थस्थल के रूप में राजगीर की पहाड़ियाँ गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित हैं। जिन्होंने कई बार यहाँ उपदेश दिए।
- भूतपूर्व गिरधरकूट या गिद्ध शिखर, जो अब 'छतगिरि' कहलाती है, बुद्ध की प्रिय विश्रामस्थली थी। बैभर पहाड़ी, जिसका मूल नाम वैभवगिरि है, की मीनारों में से एक की पहचान पिप्पला का पाषाणगृहपिप्पला के पाषाणगृह के रूप में की गई है। जिसमें गौतम बुद्ध रहे थे। बैभर पहाड़ी के अनेक स्थलों के साथ पहचानी गई सत्तपन्नी गुफ़ा और पहाड़ी तलहटी में स्थित सोनभंड़ार गुफ़ा में बौद्ध मत की 543 ई. पू. में आयोजित धर्मसभा में सभी धार्मिक सिद्धांतों को अभिलिखित किया गया था।
- तीसरी और चौथी शताब्दी में जैनों द्वारा सोनभंडार गुफ़ा में उत्खनन कार्य किया गया था।
- घाटी के मध्य में हुए उत्खनन से एक गोलाकार देवालय का पता चला, जो पाँचवीं शताब्दी की विष्णु और नटराज शिव समेत अनेक देवताओं की महीन चूना-पत्थर से बनी विलक्षण मूर्तियों से अलंकृत हैं।
- घाटी के आसपास की पहाड़ियों में अनेक आधुनिक जैन मन्दिर हैं, हिन्दू देवालयों से घिरी घाटी में गर्म पानी के सोते भी हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 'ततो राजगृहं गच्छेत् तीर्थसेवी नराधिप'। - महाभारत वनपर्व 84,104
- ↑ मंगल जातक सं. 87
- ↑ ' स राजवत्सः पृथुपीन वक्षास्तौसव्यमंत्राधिकृतौ विहाय, उत्तीर्य गंगां प्रचलत्तरंगां श्रीमदगृहं राजगृहं जगाम'।- बुद्धचरित, 10,1
- ↑ दाक्षिणात्य पाठ- पांडरे विपुले चैव तथा वाराहकेअपि च, चैत्यक च गिरिश्रेष्ठे मांतगे च शिलोच्चये'-महाभारत सभा. 21,
- ↑ वैहारौ विपुलो शैलो वराहो वृषभस्तथा, तथा ॠषिगिरिस्तात शुभाश्चैत्यक पंचमा।- महाभारत, सभा. 21,2