राधा-सखिया वार्ता -शिवदीन राम जोशी

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राधिका से मिलने जो गई,
          सखियाँ हंसि के उर रूप निहारो।
ब्रज बालाएं बात करी सो करी,
         सुनी राधिका और विचार विचारो।
ब्रज राज बसे मथुरा सुनरी,
         तेरे पास नहीं वह प्रीतम प्यारो।
प्यारी कहुं कछु खारी न मानिये,
           यो दृग अंजन कौन पे सारो ?
पिव पास नहीं मथुरा बसि हैं,
         वह रूप स्वरूप हृदय हम धारो।
तन है बृज में मन है पिय में,
        श्रीकृष्ण बिना सखी कौन हमारो।
चैन कहाँ ? बैचेन रहूँ ,
        इन नैनन को गुण नेक विचारो।
सुन भैन ये नैन कह्यो नहीं मानत,
          याते कियो इनको मुख कारो।

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