रूप सिंह

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रूप सिंह
रूप सिंह
रूप सिंह
पूरा नाम रूप सिंह
जन्म 8 सितंबर, 1908
जन्म भूमि जबलपुर, मध्य प्रदेश
मृत्यु 16 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान ग्वालियर, मध्य प्रदेश
अभिभावक पिता- सोमेश्वर सिंह
कर्म भूमि भारत
खेल-क्षेत्र हॉकी
प्रसिद्धि भारतीय हॉकी खिलाड़ी
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख ध्यानचंद, अशोक कुमार
क़द 06 फुट
अन्य जानकारी बर्लिन ओलंपिक, 1936 में पहले हाफ में जर्मनी की टीम ने बहुत अच्छा खेल दिखाया और भारत को सिर्फ 1-0 से बढ़त लेने दी। ये पहला गोल ध्यानचंद की स्टिक से नहीं बल्कि रूप सिंह की स्टिक से निकला था।

रूप सिंह (अंग्रेज़ी: Roop Singh, जन्म- 8 सितंबर, 1908; मृत्यु- 16 दिसंबर, 1977) भारत के प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी थे। हॉकी की जब भी बात होती है तो मन में सबसे पहला ख्याल 'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद का आता है। हॉकी के इतिहास में सबसे ज्यादा गोल ध्यानचंद के ही नाम हैं। लेकिन एक खिलाड़ी और भी था जो शायद ध्यानचंद जितना मशहूर न हुआ हो लेकिन खुद ध्यानचंद उन्हें अपने से बड़ा खिलाड़ी मानते थे। रूप सिंह जिन्हें भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ी ध्यानचंद के भाई नाम से जाना जाता है। शायद इसी वजह से लोगों ने उन्हें भुला दिया और 'हॉकी के जादूगर' की उपाधि निर्विरोध ध्यानचंद को दे दी गई।

परिचय

महान हॉकी खिलाड़ी रूप सिंह का जन्म 8 सितंबर, 1908 को भले ही जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ, लेकिन कर्मभूमि उनकी ग्वालियर ही बनी। ध्यानचंद का भाई होना रूप सिंह के लिए जितनी खुशकिस्मती की बात थी, उतनी ही बदकिस्मती की भी। उन्हें हमेशा ही ध्यानचंद का भाई कहकर बुलाया गया। जो उतना भी बुरा नहीं है लेकिन जब ताउम्र किसी की परछाई में ही दबकर रह जायें तो दु:ख ज़रूर होता है। रूप सिंह एक शानदार लेफ़्ट-इन प्लेयर थे, जो गेंद को इतनी जोर से मारने में यकीन रखते थे कि गोल पोस्ट में आग लग जाए. ड्रिब्लिंग ऐसी कि गेंद पकड़नी तो क्या देखनी मुश्किल हो और दौड़ ऐसी कि पीछा करने की सोचने से भी पहले आदमी हार मान ले। सर्किल के अन्दर रूप सिंह वही थे, जो रिंग के अन्दर मुहम्मद अली होते थे। उनसे पार पाना किसी के बस की नहीं। शॉर्ट कॉर्नर रूप सिंह के लिए खीर पूड़ी समान थे। देखते ही जुट जाते थे और उनकी कॉर्नर को गोल में तब्दील कर देने की आदत एकदम वैसी ही थी जैसी सचिन तेंदुलकर को सिर सीधा रखते हुए स्ट्रेट ड्राइव मारने की आदत थी। वही सचिन तेंदुलकर जिसने रूप सिंह के नाम वाले स्टेडियम में दुनिया को वन डे मैचों में डबल सेंचुरी मारना सिखाया था।[1]

दो ओलम्पिक में शिरकत

जबलपुर में रूप सिंह, सोमेश्वर सिंह के घर जन्मे थे। उनकी स्टिक से निकले गोलों ने भारत को दो बार (1932 और 1936 में) ओलम्पिक का स्वर्ण मुकुट पहनाया। 1932 में अमेरिका के लॉस एंजिल्स में ओलंपिक खेलों का आयोजन हो रहा था। ब्रिटिश झंडे तले भारत की टीम दूसरी बार मेडल झटकने के इरादे से ओलंपिक में उतर रही थी। ओलंपिक में ध्यानचंद को पहली बार टीम की कमान सौंपी गई। वहीं छोटे भाई रूप सिंह को पहली बार ओलंपिक टीम में शामिल किया गया। 1975 में विश्व विजेता हाकी टीम के सदस्य और ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में रूप सिंह से जुड़ा एक मजेदार किस्सा बताया था। वो बताते हैं, "रूप सिंह ने लॉस एंजिल्स ओलंपिक टीम में चुने जाने पर भी वहाँ जाने से इंकार कर दिया क्योंकि उनके पास कपड़े नहीं थे। मेरे बाबूजी ने उन्हें अपने पैसों से कपड़े ख़रीद कर दिए। उनका एक सूट सिलवाया तब जाकर वो अमेरिका जाने के लिए तैयार हुए।"[2]

करिश्माई खिलाड़ी

ध्यानचंद, जिन्होंने एक बार अम्पायर से इस बात पर बहस कर ली थी कि गोल पोस्ट की ऊंचाई कम है, जिसकी वजह से उनकी मारी गेंदें बार-बार गोल पोस्ट के ऊपर वाले हिस्से से टकरा कर वापस आ रही थीं। जब नापा गया तो मालूम चला कि ध्यानचंद सही थे। गोल पोस्ट सचमुच नीचा था। इस तरह की करिश्माई विधा के मालिक ध्यानचंद से जब भी रूप सिंह के बारे में बात की गयी, उन्होंने रूप सिंह को अपने से कहीं बेहतर हॉकी प्लेयर बताया। वो कहते थे, "मैं रूप सिंह के आस-पास भी नहीं फटकता"। और ये बात सच भी है। ध्यानचंद को जिन जगहों और एंगलों से गोल मारने में दिक्कत होती थी, उन जगहों से गोल मारने में रूप सिंह का कोई तोड़ नहीं था।[1]

लॉस एंजिल्स ओलंपिक में 4 अगस्त को पहले मैच में भारत ने जापान को एकतरफा मुकाबले में 11-1 से हराया। इस मैच में 4 गोल ध्यानचंद ने किए जबकि 3 गोल रूप सिंह की स्टिक से निकले। दूसरा मैच मेजबान 8 अगस्त को अमेरिका से था। भारत ने इस मैच अमेरिका को उसी के दर्शकों के सामने 24-1 से धो डाला। इस मैच में ध्यानचंद ने 8 गोल किए। लेकिन पहली बार ध्यानचंद को गोल ठोंकने में अपने भाई रूप सिंह से यहां मात मिली क्योंकि रूप ने 10 गोल ठोंके। अपने पहले ही ओलंपिक में 13 गोल करने वाले रूप सिंह सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे और भारत दूसरी बार हॉकी में ओलंपिक गोल्ड मेडल जीतने में सफल हुआ। 1932 के ओलंपिक में भारत ने कुल 35 गोल ठोंके और महज 2 गोल खाए।[2]

बर्लिन ओलंपिक, 1936

भारतीय हॉकी टीम, बर्लिन ओलम्पिक, 1936

लॉस एंजिल्स ओलंपिक को 4 साल बीत चुके थे। इन चार में भारत ने 37 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले जिसमें 34 भारत ने जीते, 2 ड्रा हुये और 2 रद्द हो गये। इतने मैच खेलकर रूप सिंह के हाथों में बिजली जैसी तेजी आ गई थी जिसकी वजह से गेंद उनकी स्टिक से लगकर गोली की तरह निकलती थी। जैसे-जैसे बर्लिन ओलंपिक नजदीक आ रह था वैसे-वैसे उनके खेल में धार बढ़ती ही जा रही थी। उनके शार्ट इतने तेज होते थे कि कई बार डर होता था कि उससे कोई घायल न हो जाए। 1936 बर्लिन ओलंपिक से पहले जर्मनी के अखबारों में भारतीय हॉकी के किस्से छप रहे थे और ध्यानचंद और रूप सिंह का खेल देखने के लिए पूरा जर्मनी बेताब हुआ जा रहा था। ध्यानचंद की कप्तानी में हॉकी टीम ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए जर्मनी के लिए रवाना हुई।

बर्लिन ओलंपिक का आयोजन की तैयारियां जर्मनी ने बड़ी ही धूमधाम से की जा रही थीं। ओलपिंक शुरू होने से 13 दिन पहले 17 जुलाई 1936 को जर्मनी के साथ भारत को प्रैक्टिस मैच खेलना था। इस मैच में भारत ने जर्मनी को 4-1 से हराया। इसके बाद भारत ने सबक लेते हुए ओलंपिक के लीग के पहले मैच में हंगरी को 4-0, फिर अमेरिका को 7-0, जापान को 9-0, सेमीफाइनल में फ्रांस को 10-0 से हराया और बिना गोल खाए हर किसी को हराकर फाइनल में पहुंचा। देश की आजादी को अभी ग्यारह साल बाकी थे लेकिन इत्तेफाकन फाइनल का दिन भी 15 अगस्त का ही था।

हिटलर का आगमन

1936 बर्लिन ओलंपिक हॉकी के फाइनल में भारत का सामना जर्मनी से नहीं बल्कि हिटलर से होना था। वो हिटलर जिसने पूरी दुनिया के दिलों में अपनी तानाशाही से खौफ पैदा कर दिया था। लेकिन एक मामूली दर्जे के भारतीय सिपाही के आगे दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह को घुटने टेकने थे। पूरा स्टेडियम दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था, आखिर खुद हिटलर आज अपनी टीम की हौसला-अफजाई करने आए थे। मुकाबले से ठीक पहले भारतीय हॉकी टीम के कोच पंकज गुप्ता ड्रेसिंग रूम में आए। उन्होंने अपने हाथ में भारत का कांग्रेसी झंडा लिए हुए थे। उन्होंने अपनी टीम के खिलाड़ियों से बातचीत की और एक स्वर में सबने मिलकर वंदे मातरम गाया। हिटलर के खुद इस मैच में आने से इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि यह मैच जर्मनी के लिए कितना मायने रखता था।[2]

हिटलर की मंजूरी मिलने के बाद रेफरी ने टॉस कर सीटी बजाई और फिर खेल शुरू हुआ। पहले हाफ में जर्मनी टीम ने बहुत अच्छा खेल दिखाया और भारत को सिर्फ 1-0 से बढ़त लेने दी। ये पहला गोल भी मेजर ध्यानचंद की स्टिक से नहीं बल्कि रूप सिंह की स्टिक से निकला था। दूसरे हाफ में भारतीय कप्तान ध्यानचंद और रूप सिंह ने असली खेल दिखाने के लिए अपने जूते उतार फेंके और नंगे पांव जर्मनी की धरती पर उसी की टीम से लोहा लेने लगे। रूप सिंह के एक गोल के कारवां को आगे बढ़ाते हुए भारतीय टीम ने लगातार 7 गोल दागे और मैच खत्म होने तक स्कोर 8-1 कर दिया। जर्मनी की टीम हार चुकी थी। लेकिन मैदान में मौजूद हिटलर की आंखें भारत के खिलाड़ी ग्वालियर के कैप्टन रूप सिंह पर ठहर गईं।

म्यूनिख में रूप सिंह मार्ग

रूप सिंह के खेल से प्रभावित हिटलर ने उसी समय जर्मनी के म्यूनिख शहर में एक सड़क का नाम रूप सिंह मार्ग रखने की घोषणा की। लंदन में 2012 में हुए ओलंपिक में भी ध्यानचंद और लेस्ली क्लाडियस के साथ-साथ रूप सिंह के नाम पर एक मेट्रो स्टोशन का नाम रखा गया। ये बात जानकर चौंक जाएंगे कि कैप्टन रूप सिंह सिर्फ हॉकी ही नहीं बल्कि क्रिकेट और लॉन टेनिस के भी अच्छे खिलाड़ी रहे। 1946 में उन्होंने ग्वालियर की तरफ से दिल्ली के खिलाफ रणजी ट्राफी मैच भी खेला था।

रूप सिंह क्रिकेट स्टेडियम

देश के खेलनहार बेशक कैप्टन रूप सिंह को भूल चुके हों पर जर्मनी के म्यूनिख शहर में कैप्टन रूप सिंह मार्ग इस विलक्षण हॉकी खिलाड़ी की आज भी याद दिलाता है। कैप्टन रूप सिंह दुनिया के पहले ऐसे खिलाड़ी रहे, जिनके नाम ग्वालियर में फ्लड लाइटयुक्त क्रिकेट का मैदान है। ग्वालियर के रूप सिंह स्टेडियम में ही सचिन तेंदुलकर ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ क्रिकेट के इतिहास का पहला दोहरा शतक बनाया था, उसी दिन दुनिया ने उन्हें "किक्रेट के भगवान" का दर्जा दिया था।

मृत्यु

हॉकी में ध्यानचंद और रूप दोनों बेजोड़ थे। ध्यानचंद दिमाग तो रूप सिंह दिल से हॉकी खेलते थे। एक कोख के इन सपूतों ने हॉकी में बेशक देश को अपना सर्वस्व दिया हो पर ओलंपिक के हीरो रूप सिंह को कुछ भी नहीं मिला। गुरबत में जीते आखिर रूप सिंह ने 16 दिसम्बर, 1977 को आंखें मूद लीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महान हॉकी खिलाड़ी, जिनका नाम सचिन के 200 रन के साथ जुड़ गया (हिंदी) thelallantop.com। अभिगमन तिथि: 17 अगस्त, 2021।
  2. 2.0 2.1 2.2 एक ही मां की कोख से जन्में थे ध्यानचंद और रूप सिंह (हिंदी) outlookhindi.com। अभिगमन तिथि: 17 अगस्त, 2021।

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