ललिता वकील

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ललिता वकील
ललिता वकील
पूरा नाम ललिता वकील
जन्म 14 अप्रैल, 1954
जन्म भूमि सपड़ी मोहल्ला, चंबा, हिमाचल प्रदेश
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हस्तशिल्प
शिक्षा डिप्लोमा, आईआईटी चंबा (1978-80)
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 2022

नारी शक्ति पुरस्कार, 2018
शिल्प गुरु सम्मान, 2012

नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी ललिता वकील को पद्म श्री हस्तशिल्पी होने के कारण मिला, लेकिन हस्तशिल्पी के साथ-साथ वह सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। वह घर पर बेकार बैठने वाली महिलाओं और लड़कियों को बुला-बुलाकर लाती हैं और उन्हें चंबा रुमाल बनाने में लगाती हैं।
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ललिता वकील (अंग्रेज़ी: Lalita Vakil, जन्म- 14 अप्रैल, 1954) हिमाचल प्रदेश की ऐसी महिला हैं जिन्हें 'चम्बा रुमाल' के संरक्षण और देश-विदेश में उसे पहचान दिलाने हेतु साल 2022 में 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया है। उन्होंने बचपन से ही चंबा रुमाल के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम करना शुरू किया था। उनको तीन बार राष्ट्रपति अवार्ड भी मिल चुका है। 45 वर्षों से ललिता वकील ने चंबा रुमाल की हस्तकला को जीवित रखने तथा अन्य लोगों तक इसे पहुंचाने में विशेष योगदान दिया है। बकौल ललिता चंबा रुमाल की कला को आने वाली पीढ़ियों को भी रूबरू करवाने के लिए वे अपने घर में निशुल्क लड़कियों को कला की बारीकियां सिखाती हैं।

परिचय

14 अप्रैल, 1954 को चंबा के सपड़ी मोहल्ला में जन्मी ललिता वकील ने चंबा रुमाल को देश-विदेश में नई पहचान दिलाई है। उन्होंने 1970 में चंबा से उच्च शिक्षा प्राप्त की। 1978-1980 में आईआईटी चंबा से डिप्लोमा किया। साल 2006 में चंबा रुमाल की कढ़ाई की प्रदर्शनी के लिए जर्मनी गई और 2011 में कनाडा में कैनेडियन ट्यूलिप फेस्टिवल में भाग लिया। ललिता वकील चंबा रुमाल के संरक्षण और संवर्धन के लिए 45 सालों से काम कर रही हैं। दरअसल, चंबा रुमाल अपनी अद्भुत कला और शानदार कशीदाकारी के कारण लोकप्रिय है। चंबा रुमाल की कारीगरी मलमल, सिल्क और कॉटन के कपड़ों पर की जाती है। निर्धन परिवार में पैदा हुईं ललिता वकील की शादी एक डॉक्टर से हुई। पेशे से डॉक्टर पति ने कभी भी ललिता को सोशल वर्क और चंबा रुमाल के लिए काम करने से नहीं रोका और उनका पूरा सहयोग किया।

प्रेरक व्यक्तित्व

बेशक ललिता वकील को पद्म श्री हस्तशिल्पी होने के कारण मिला, लेकिन हस्तशिल्पी के साथ-साथ वह सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। वह घर पर बेकार बैठने वाली महिलाओं और लड़कियों को बुला-बुलाकर लाती हैं और उन्हें चंबा रुमाल बनाने में लगाती हैं। उनकी प्रेरणा से आज दर्जनों महिलाएं और लड़कियां चंबा रुमाल बनाकर अपने घर की आजीविका चला रही हैं। ललिता वकील साधन संपन्न लोगों और अपने एनआरआई जेठ-जठानी की वित्तीय मदद से गरीब बच्चों को पढ़ाने में भी मदद करती हैं। फेल होने के बाद घर बैठने वाली बच्चियों को उन्होंने दोबारा से पढ़ाई शुरू करने के लिए प्रेरित किया। खास बात यह है कि उन्होंने कभी भी अपने सामाजिक कार्यों का दिखावा नहीं किया।

चंबा रुमाल

चंबा रुमाल अपनी अद्भुत कला और शानदार कशीदाकारी के कारण देश के अलावा विदेशी में भी लोकप्रिय है। चंबा रुमाल की कारीगरी मलमल, सिल्क और कॉटन के कपड़ों पर की जाती है। इसके तहत श्री कृष्णलीला को बहुत ही सुंदर ढंग से रुमाल के ऊपर दोनों तरफ कढ़ाई कर उकेरा जाता है। महाभारत युद्ध, गीत गोविंद से लेकर कई मनमोहक दृश्यों को इसमें बड़ी संजीदगी के साथ बनाया जाता है। चंबा रुमाल पर की गई कढ़ाई ऐसी होती है कि दोनों तरफ एक जैसी कढ़ाई के बेल बूटे बनकर उभरते हैं।

राष्ट्रपति पुरस्कार

चंबा रुमाल को नई बुलंदियों पर पहुंचाने वाली ललिता वकील को 2018 में 'नारी शक्ति पुरस्कार' से नवाजा जा चुका है। यह पुरस्कार राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने प्रदान किया था। इससे पहले ललिता को 1993 में तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा और 2012 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 'शिल्प गुरु सम्मान' दे चुके हैं। अपने पूरे जीवन में उन्हें 25 से 30 अवार्ड मिल चुके हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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