वभ्रुवाहन अर्जुन के पुत्र का नाम था। यह मणिपुर के राजा चित्रवाहन की राजकुमारी चित्रांगदा के गर्भ से उत्पन्न हुआ था।[1]
- जब वनवासी अर्जुन मणिपुर पहुंचे तो वे राजकुमारी चित्रांगदा के रूप पर मुग्ध हो गये। उन्होंने नरेश से उसकी कन्या मांगी।
- राजा चित्रवाहन ने अर्जुन से चित्रांगदा का विवाह करना इस शर्त पर स्वीकार कर लिया कि उसका पुत्र चित्रवाहन के पास ही रहेगा, क्योंकि पूर्व युग में उसके पूर्वजों में प्रभंजन नामक राजा हुए थे। उन्होंने पुत्र की कामना से तपस्या की थी, भगवान शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्त करने का वरदान देते हुए यह भी कहा था कि हर पीढ़ी में एक ही संतान हुआ करेगी। अत: चित्रवाहन की संतान वह कन्या ही थी। अर्जुन ने शर्त स्वीकार करके उससे विवाह कर लिया।
- चित्रांगदा के पुत्र का नाम 'वभ्रुवाहन' रखा गया। पुत्र-जन्म के उपरांत उसके पालन का भार चित्रांगदा पर छोड़कर अर्जुन ने विदा ली। चलने से पूर्व अर्जुन ने कहा कि- "कालांतर में युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ करेंगे, तभी चित्रांगदा अपने पिता के साथ इन्द्रप्रस्थ आ जाय। वहां अर्जुन के सभी संबंधियों से मिलने का सुयोग मिल जायेगा।[2]
- अश्वमेध यज्ञ के संदर्भ में अर्जुन मणिपुर पहुंचे तो वभ्रुवाहन ने उनका स्वागत किया। वभ्रुवाहन को युद्ध-सज्जा में न देखकर अर्जुन क्रुद्ध हो उठे। उन्होंने यह क्षत्रियोचित नहीं माना तथा पुत्र को युद्ध के लिए ललकारा। उलूपी[3] ने भी अपने सौतेले पुत्र वभ्रुवाहन को युद्ध के लिए प्रेरित किया।
- युद्ध में अर्जुन अपने ही बेटे के हाथों मारे गये। चित्रांगदा उलूपी पर बहुत रुष्ट हुई। उलूपी ने संजीवनी मणि से अर्जुन को पुनर्जीवित किया तथा बताया कि वह एक बार गंगा तट पर गयी थी। वहां वसु नामक देवता गणों का गंगा से वार्तालाप हुआ था और उन्होंने यह शाप दिया था कि गंगापुत्र भीष्म को शिखंडी की आड़ से मारने के कारण अर्जुन अपने पुत्र के हाथों भूमिसात होंगे, तभी पापमुक्त हो पायेंगे। इसी कारण से उलूपी ने भी वभ्रुवाहन को लड़ने के लिए प्रेरित किया था।[4]
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टीका टिप्पणी
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