विभाण्डक पुराण उल्लेखानुसार एक ऋषि थे, जो कश्यप के पुत्र तथा ऋष्यश्रृंग के पिता थ। संसार से विरक्त हो वे अपने पुत्र को लेकर जंगल में रहते थे।[1][2]
- श्रीराम की बड़ी बहन शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋष्यश्रृंग से हुआ था। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ।
- एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फ़सल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपाद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। अपने भक्त की बेइज्जती पर गुस्साए इन्द्र ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋष्यश्रृंग को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्न का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपाद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शांता का हाथ ऋष्यश्रृंग को देने का फैसला किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवतपुराण 11.8.18; महाभारत वनपर्व 110.23,32-39
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पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 468, परिशिष्ट 'क' |
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