विरजा

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विरजा एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- विरजा (बहुविकल्पी)

विरजा को भगवान श्रीकृष्ण की एक प्रेमिका सखी कहा गया है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' के 'श्रीकृष्ण जन्मखण्ड' के अनुसार गोलोक में एक बार श्रीकृष्ण राधाजी की अनुपस्थिति में विरजा के पास चले गये। जब राधा को पता चला तो उन्होंने कृष्ण को अपशब्द कहे। इसी समय राधा ने कृष्ण के सखा श्रीदामा को भी राक्षस होने का शाप दिया। श्रीदामा ने भी राधा को शाप दिया कि उसका भी कृष्ण से सौ वर्षों के लिए वियोग हो जायेगा।

प्रसंग

एक अन्य प्रसंग के अनुसार श्रीकृष्ण की तीन पत्नियाँ हुईं- राधा, विजया (विरजा) और भूदेवी। इन तीनो में श्रीकृष्ण को राधा ही अधिक प्रिय हैं। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण एकांत कुंज में कोटि चन्द्रमाओं की सी कांति वाली विरजा के साथ विहार कर रहे थे। तभी एक सखी ने राधा से आकर कहा- "कृष्ण विरजा के साथ हैं। तब राधिका मन ही मन कुछ खिन्न हो गईं और सौ योजन विस्तृत, सौ योजन ऊँचे, और करोड़ों अश्वनियों से जुते सूर्य के तुल्य कान्तिमान रथ पर, जो सुवर्ण कलशों से मण्डित था, दस अरब सखियों के साथ आरूढ़ होकर तत्काल कृष्ण को देखने के लिए गईं। उस निकुंज के द्वार पर कृष्ण द्वारा नियुक्त महाबली श्रीदामा पहरा दे रहे थे। उन्होंने राधा को अन्दर जाने से मना कर दिया। बाहर सखियों की आवाज़ सुनकर कृष्ण वहाँ से अंतर्धान हो गए। राधा के भय से विरजा भी सहसा नदी के रूप में परिणत हो कोटि योजन विस्तृत गोलोक मे उसके चारो ओर प्रवाहित होने लगीं। कृष्ण वहाँ से चले गए और विरजा नदी रूप में परिणत हो गई। यह देखकर राधा अपने कुंज को लौट गईं।

राधा तथा श्रीदामा का शाप

विरजा को श्रीकृष्ण ने शीघ्र ही अपने वर के प्रभाव से मूर्तिमती और विमल वस्त्राभूषणों से विभूषित दिव्य नारी बना दिया और फिर राधा को विरह दुःख से व्यथित जानकर श्यामसुन्दर कृष्ण स्वयं श्रीदामा के साथ उनके निकुंज में आये। निकुंज के द्वार पर सखा के साथ आये हुए प्राणवल्लभ की ओर देखकर राधा मानवती हो उनसे बोली- "हरे! वहीं चले जाओ! जहाँ तुम्हारा नया नेह जुड़ा है। जाओ, उसी कुंज में रहो! मुझसे आपको क्या मतलब?" यह बात सुनकर भगवान विरजा के निकुंज में चले गए। तब श्रीकृष्ण के मित्र श्रीदामा ने राधा से रोषपूर्वक कहा- "राधे! श्रीकृष्ण साक्षात् परिपूर्ण भगवान हैं। वे स्वय असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति ओर गौलोक के स्वामी हैं। वे तुम जैसी करोडों शक्तियों को बना सकते हैं। उनकी तुम निंदा करती हो? ऐसा मान न करो।" इस पर राधा बोली- "मुर्ख! अपनी माता की निंदा करता है। तू राक्षस हो जा और गोलोक से बाहर चला जा।" श्रीदामा बोला- "शुभे! श्रीकृष्ण सदा तुम्हारे अनुकूल रहते हैं। इसलिए तुम्हें मान हो गया है। अतः परिपूर्णतम परमात्मा श्रीकृष्ण से भूतल पर तुम्हारा सौ वर्षों के लिए वियोग हो जायेगा।"[1]

इस प्रकार परस्पर एक-दूसरे को शाप देकर राधा और श्रीदामा अत्यंत चिंता में डूब गए। तब श्रीकृष्ण वहाँ प्रकट हुए। उन्होंने कहा- "राधे! !मैं अपने निगम स्वरूप वचन को तो त्याग सकता हूँ, किन्तु भक्त की बात अन्यथा करने में सर्वथा असमर्थ हूँ। राधे! तुम शोक मत करो। मेरी बात सुनो। वियोग काल में भी प्रतिमास एक बार तुम्हें मेरा दर्शन हुआ करेगा। बारह कल्प में भूतल का भार उतारने मैं तुम्हारे साथ पृथ्वी पर चलूँगा। श्रीदामा, तुम अपने एक अंश से असुर हो जाओ। वैवस्वत मन्वंतर में रासमंडल में आकर जब तुम मेरी अवहेलना करोगे, तब मेरे हाथ से तुम्हारा वध होगा, फिर तुम अपने पूर्ववत शरीर को प्राप्त कर लोगे। इस प्रकार श्रीदामा ने यक्ष लोक में सुधन के घर जन्म लिया। वह 'शंखचूड़' नाम से विख्यात हो यक्षराज कुबेर का सेवक हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विरजा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 जून, 2013।

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