शहीद

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शहीद (अंग्रेज़ी: Martyr - मार्टियर) अरबी भाषा का शब्द है। इस शब्द का प्रयोग उस व्यक्ति के लिए किया जाता है, जिसकी मौत एक सज़ा के तौर पर हुई हो, जिसने धर्म के लिए त्याग से इनकार कर दिया हो या फिर वह व्यक्ति जो अपनी धार्मिक या राजनीतिक आस्था के लिए मारा गया हो।

इतिहास

'शहादत' शब्द को अंग्रेज़ी में 'Martyrdom' और 'शहीद' को 'Martyr' कहते हैं। अग्रेजी की डिक्शनरी Merriam Webster में 'Martyrdom' शब्द की परिभाषा दी गई है, जिसके अनुसार जो व्यक्ति किसी अहम वजह, मुख्य तौर पर धार्मिक विश्वास के लिए अपनी जान देता है उसे शहीद कहते हैं। इस शब्द का जुड़ाव शुरुआत से ही ईसाई धर्म से रहा है। ईसाई धर्म के शुरुआती 200 वर्षों की बात करें जब ईसा मसीह की हत्या कर दी गई थी तो ईसाईयों को रोमन साम्राज्य में बहुत यातनाएं दी जाती थीं। ऐसे में इन यातनाओं से मरने वालों को शहीद कहा जाता था।[1]

यह शब्द मुख्य रूप से प्राचीन ग्रीक का शब्द है, बाइबिल जो कि मूल रूप से प्राचीन ग्रीक में लिखी गई थी, उसमें इस शब्द का जिक्र है; लेकिन बाद में इस शब्द का इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता था जो धर्म के लिए अपनी जान देते थे।

अरबी भाषा का शब्द

शहीद शब्द की बात करें तो 7वीं सदी में इस्लाम के आने के बाद इस शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा था। क़ुरान में भी इस शब्द का इस्तेमाल किया गया है, यह अरबी शब्द है। इस्लामिक लड़ाई में जो लोग जाने देते थे, उन्हें शहीद कहा जाने लगा था। सुन्नी इस्लाम में धर्म के लिए जान देने वालों को शहीद का दर्जा दिया जाने लगा था। कर्बला की लड़ाई में चौथे खलीफा अली और उनके बैटे हुसैन की कुर्बानी को इस्लाम धर्म में सबसे बड़ी शहादत माना जाता है और इसी के बाद से हर वर्ष मुहर्रम में लोग उनकी शहादत का मातम मनाते हैं। ऐसे में शहीद शब्द का इस्तेमाल मुख्य रूप से धर्म की लड़ाई और इस्लाम में किया जाता है।

भारत में शहीद शब्द का इतिहास

21वीं सदी में शहीद शब्द अरबी भाषा से भारत पहुंचा और यह उर्दू और हिन्दी भाषा में इस्तेमाल होने लगा। 20वीं और 21वीं शताब्दी में इस शब्द का इस्तेमाल मुख्य रूप से राष्ट्रवादी प्रतिरोध आंदोलनों के लिए होने लगा। फिलिस्तीन और इजरायल के बीच काफी लंबे समय से संघर्ष चल रहा है और फिलिस्तीन में शहीद शब्द का काफी इस्तेमाल होता है। हिंदी भाषा में भी इस शब्द का इस्तेमाल होने लगा। भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी शहीद शब्द का इस्तेमाल किया जाता था। आज भी शहीद भगत सिंह, शहीद राजगुरु, शहीद सुखदेव कहा जाता है।[1]

भारत सरकार और सेना

भारतीय सेना और रक्षा मंत्रालय कई बार यह साफ कर चुका है कि सेना की नियमावली में कहीं भी Martyr या शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। लिहाजा अगर सैनिक लड़ाई के दौरान मारा जाता है तो उसे battle casualty कहा जाता है। जब कोई पुलिसकर्मी लड़ाई के दौरान मारा जाता है तो उसे गृह मंत्रालय operation casualty कहती है। यह सवाल संसद में भी उठा था और 22 दिसंबर, 2015 में गृह मंत्रालय की ओर से केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू की ओर से लिखित जवाब दिया गया था। जिसमें कहा गया था कि शहीद या Martyr शब्द का प्रयोग ना तो सेना और ना ही केंद्रीय सशस्त्र बल के लिए किया जाता है। यही नहीं 2017 में इसको लेकर एक आरटीआई भी की गई थी और यह मामला सीआईसी तक गया था, जिसमें रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने कहा था कि हम शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं करते हैं।

संविधान की मूल भावना के विरुद्ध

यह समझना अहम है कि भारत के जवानों के बलिदान के लिए ज्यादातर हिन्दी भाषा में 'वीरगति' या फिर 'सर्वोच्च बलिदान' शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि देश के लिए जान देना किसी भी नागरिक के लिए सर्वोच्च बलिदान होता है। यही नहीं भारत के संविधान के अनुसार हम एक सेक्युलर देश हैं और हमारे देश का कोई धर्म विशेष नहीं है, लिहाजा शहीद और Martyr शब्द का इस्तेमाल ना सिर्फ नियमों बल्कि संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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