शांता दुर्गा मंदिर, गोवा

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शांता दुर्गा मंदिर पणजी, गोवा की राजधानी से 33 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ के देवता को स्थानीय लोग 'शांतेरी' भी कहते हैं। इन्हें शांतेरी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये देवी श्रीविष्णु, शिवजी के बीच शांति करवाने प्रकट हुई थीं। देवी के दोनों हाथों में दो सांप हैं, जो विष्णु और शिव का प्रतीक हैं। ये कोंकण के सारस्वत लोगों, कर्हाडे ब्राह्मण और भंडारी लोगों की कुल देवी हैं।

इतिहास

शांता दुर्गा का आदि स्थल तिरहुत (मिथिला) है। जब परशुराम अपने यज्ञ के लिए तिरहुत से ब्राह्मणों को लाए, तब यह ब्राह्मण अपनी आराध्य मूर्ति भी साथ ले आए। यहां के कोसी गांव में दुर्गा जी की स्थापना हुई, किंतु पुर्तग़ाली जब यहां आए और अत्याचार करने लगे; तब देवी की मूर्ति कैवल्यपुर में लाकर स्थापित कर दी गई। अब इस स्थान को 'कवले' ग्राम कहा जाता है। देवी का मंदिर विशाल है और इसकी बड़ी मान्यता है। यहां सभी पर्व पर महोत्सव होते हैं।[1]

मंदिर परिसर

मंदिर को पुर्तग़ालियो ने 1564 ई. ने ध्वंश कर दिया था। आज का यह मंदिर मराठों ने सतारा के छत्रपति शाहू महाराज के नेतृत्व में बनवाया। यह मंदिर पहाड़ी के ढलान पर स्थित है और इसके चारों ओर हरा भरा क्षेत्र है। इस मंदिर में एक मुख्य मंदिर तथा तीन छोटे मंदिर अन्य देवताओं को अर्पित हैं। मंदिर में एक त्रिकोणी आकर की छत है। इस मंदिर के स्तम्भ तथा फर्श को कश्मीरी पत्थरों से बनाया गया है। मंदिर में एक भव्य कुण्ड, दीप स्तम्भ तथा यात्रियों का निवास स्थान भी है।

वास्तुकला

भारतीय तथा पुर्तग़ाली वास्तुशैली के मिलाप से बना यह मंदिर अपने त्रिकोणी शिखर के लिए जाना जाता है। सभामंडप की खिड़कियाँ रोम की वास्तुकला को दर्शाती हैं, जिनमें रंगीन कांच लगे हुए हैं। इन काँचों के रंग गहरे लाल, पीले, नीले और हरे रंग के हैं। इस मंदिर के झाड़ फ़ानूस, द्वार के निकट के स्तम्भ, गोलाकार गुबंद और लाल, हल्के लाल और सफ़ेद रंग में रंगा यह मंदिर एक शांत और सुन्दर रूप दर्शाता है। इस मंदिर की एक और विशेष दर्शनीय बात है एक सुनहरी पालकी जिसमें देवी की यात्रा निकलती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कल्याण विशेषांक तीर्थ अंक, पृष्ठ संख्या 112

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