शाण्डिल्य कश्यपवंशी महर्षि देवल के पुत्र थे, जो रघुवंशीय दिलीप के पुरोहित थे। शतानीक के 'पुत्रेष्टि यज्ञ' में ये प्रधान ऋत्विक तथा त्रिशंकु के यज्ञ में होता थे। 'शाण्डिल्य' नाम गोत्रसूची में है, अत: पुराण आदि में शाण्डिल्य नाम से जो कथाएँ मिलती हैं, वे सब एक व्यक्ति की नहीं हो सकतीं।
- छांदोग्य' और 'बृहदारण्यक उपनिषद' में शाण्डिल्य का प्रसंग है।
- 'पंचरात्र' की परंपरा में शाण्डिल्य आचार्य प्रामाणिक पुरुष माने जाते हैं।
- 'शाण्डिल्यसंहिता' प्रचलित है; 'शाण्डिल्य भक्तिसूत्र' भी प्रचलित है। इसी प्रकार 'शाण्डिल्योपनिषद' नाम का एक ग्रंथ भी है, जो बहुत प्राचीन ज्ञात नहीं होता।
- युधिष्ठिर की सभा में विद्यमान ऋषियों में शाण्डिल्य का नाम भी है। राजा सुमंतु ने इनको प्रचुर दान दिया था, यह महाभारत, अनुशासन पर्व[1] से जाना जाता है।
- महाभारत, अनुशासन पर्व[2] से जाना जाता है कि शाण्डिल्य ऋषि ने बैलगाड़ी के दान को श्रेष्ठ दान कहा था।
- शाण्डिल्य नामक आचार्य अन्य शास्त्रों में भी स्मृत हुए हैं। 'हेमाद्रि' के 'लक्षणप्रकाश' में शाण्डिल्य को आयुर्वेदाचार्य कहा गया है।
- विभिन्न व्याख्यान ग्रंथों से पता चलता है कि इनके नाम से एक 'गृह्यसूत्र' एवं एक 'स्मृतियाँ ग्रन्थ' भी था।
- शाण्डिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं, जो इन बारह गांवों से प्रभुत्व रखते थे-
- सांडी
- सोहगौरा
- संरयाँ
- श्रीजन
- धतूरा
- भगराइच
- बलूआ
- हरदी
- झूडीयाँ
- उनवलियाँ
- लोनापार
- कटियारी
- उपरोक्त बारह गांवों से आज चारों तरफ़ इनका विकास हुआ। ये सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। इनका गोत्र श्री मुख शाण्डिल्य- त्रि -प्रवर है, श्री मुख शाण्डिल्य में घरानों का प्रचलन है, जिसमें 'राम घराना', 'कृष्ण घराना', 'नाथ घराना', 'मणी घराना' है। इन चारों का उदय सोहगौरा, गोरखपुर से है, जहाँ आज भी इन चारों का अस्तित्व कायम है।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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