शाहू
शाहू
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अन्य नाम | शिवाजी द्वितीय, साधु |
जन्म | 18 मई 1682 |
जन्म भूमि | गांगुली गांव |
मृत्यु तिथि | 15 दिसम्बर 1789 |
मृत्यु स्थान | रंगमहल सतारा |
पिता/माता | शम्भुजी, येसूबाई |
राज्याभिषेक | 22 जनवरी 1708 ई., सतारा |
शासन काल | 1708 ई. 1749 ई. |
संबंधित लेख | शाहजी भोंसले, शिवाजी, शम्भाजी, पेशवा, बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बाजीराव द्वितीय |
अन्य जानकारी | बाजीराव प्रथम तथा बालाजी बाजीराव ने, जो क्रमश: द्वितीय तथा तृतीय पेशवा हुए, शाहू की शक्ति एवं सत्ता का उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में विशेष विस्तार किया। वस्तुत: शाहू ने पेशवा का पद बालाजी विश्वनाथ के वंशजों को पैतृक रूप में दे दिया था। |
शाहू, जिसे 'शिवाजी द्वितीय' के नाम से भी जाना जाता है, छत्रपति शिवाजी का पौत्र तथा शम्भुजी और येसूबाई का पुत्र था। शाहू, शम्भुजी का उत्तराधिकारी था, जिसने राजाराम और ताराबाई के पुत्र शिवाजी तृतीय को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिये विवश किया। बादशाह औरंगज़ेब ने 'शिवाजी द्वितीय' (शाहू) को 'साधु' कहना शुरू किया था, इसी से उसका नाम शाहू हो गया। शाहू ने पेशवा बालाजी विश्वनाथ की सहायता से मराठा साम्राज्य को एक नवीन शक्ति के रूप में संघटित किया था।
मुग़लों का बन्दी
1689 ई. में रायगढ़ महाराष्ट्र के पतन के बाद शाहू, उसकी माँ येसूबाई एवं अन्य महत्त्वपूर्ण मराठा लोगों को क़ैद कर औरंगज़ेब के शिविर में नज़रबन्द कर दिया गया। उस समय शाहू बालक था और वह बन्दी बनाकर मुग़ल दरबार में लाया गया। उसका भी वास्तविक नाम शिवाजी था, किंतु उसे शिवाजी द्वितीय के नाम से जाना जाता था। औरंगज़ेब की दृष्टि में शिवाजी प्रथम कपटी थे। अत: दोनों में भेद करने के लिए उसने शाहू को साधु कहना प्रारम्भ किया और यही 'साधु' शब्द अपभ्रंश रूप में शाहू हो गया। 1707 ई. में औरंगज़ेब की मृत्यु के उपरान्त सम्राट बहादुर शाह प्रथम ने उसे मुक्त कर दिया। अधिक समय तक मुग़ल दरबार में रहने के कारण शाहू का दृष्टिकोण मराठों-सा न होकर मुग़लों जैसा हो गया था। उसके महाराष्ट्र लौटते ही मराठे दो दलों में विभक्त हो गए। एक दल उसका स्वयं का था तथा दूसरा दल इसके चाचा राजाराम के पुत्र शिवाजी तृतीय का समर्थक था।
एकछत्र शासक
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद शाहू अपने कुछ साथियों के साथ वापस महाराष्ट्र आ गया, जहाँ पर परसोजी भोंसले (रघुजी भोंसले तृतीय), भावी पेशवा बालाजी विश्वनाथ और रणोजी सिन्धिया ने उसका साथ दिया। शाहू ने सुयोग्य व्यक्ति बालाजी विश्वनाथ को पेशवा के पद पर आसीन किया। शाहू ने सतारा पर घेरा डालकर वहाँ की तत्कालीन शासिका राजाराम की विधवा पत्नी ताराबाई (शाहू की चाची) के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। ताराबाई ने धनाजी जादव के नेतृत्व में एक सेना को शाहू का मुक़ाबला करने के लिए भेजा। अक्टूबर, 1707 ई. में प्रसिद्ध 'खेड़ा का युद्ध' हुआ, परन्तु कूटनीति का सहारा लेकर शाहू ने जादव को अपनी ओर मिला लिया। ताराबाई ने अपने सभी महत्त्वपूर्ण अधिकारियों के साथ पन्हाला में शरण ली। शाहू ने 22 जनवरी, 1708 ई. को सतारा में अपना राज्याभिषक करवाया। शाहू के नेतृत्व में नवीन मराठा साम्राज्यवाद के प्रवर्तक पेशवा लोग थे, जो छत्रपति शाहू के पैतृक प्रधानमंत्री थे, जिनकी सहायता से शाहू मराठों का एकछत्र शासक बन गया।
पेशवा पद
पेशवा | कार्यकाल |
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बालाजी विश्वनाथ | 1713-1720 ई. |
बाजीराव प्रथम | 1720-1740 ई. |
बालाजी बाजीराव | 1740-1761 ई. |
माधवराव प्रथम | 1761-1772 ई. |
नारायणराव | 1772-1773 ई. |
रघुनाथराव | 1773-1774 ई. |
माधवराव द्वितीय | 1774-1795 ई. |
बाजीराव द्वितीय | 1796-1818 ई. |
'पेशवा' का पद मूलरूप से शिवाजी द्वारा नियुक्त अष्टप्रधानों में से एक था। पेशवा को 'मुख्य प्रधान' भी कहते थे। उसका कार्य सामान्य रीति से प्रजाहित पर ध्यान रखना था। बाजीराव प्रथम तथा बालाजी बाजीराव ने, जो क्रमश: द्वितीय तथा तृतीय पेशवा हुए, शाहू की शक्ति एवं सत्ता का उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में विशेष विस्तार किया। वस्तुत: शाहू ने पेशवा का पद बालाजी विश्वनाथ के वंशजों को पैतृक रूप में दे दिया था और स्वयं राज्यकार्य में विशेष रुचि न लेकर शासन का समस्त भार पेशवाओं पर ही छोड़ दिया। इस नीति के फलस्वरूप राजा नहीं अपितु पेशवा ही मराठा राज्य के सर्वेसर्वा बन गये।
मृत्यु
1749 ई. में शाहू की मृत्यु के बाद पेशवा ही मूल रूप से मराठा साम्राज्य के शासक हो गए। शाहू ने राजाराम और ताराबाई के पौत्र (शिवाजी तृतीय) को अपना दत्तक पुत्र बनाकर उसका नाम राम राजा रखा था। परम्परा के अनुसार राम राजा ने सतारा में अपना दरबार स्थापित किया, किन्तु वह पेशवा के हाथों की कठपुतली ही सिद्ध हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 448।
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